जनवादी लेखक संघ ने पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी के जावेद अख्तर का कार्यक्रम रद्द करने पर चिंता जताई
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कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों के दबाव में लिया निर्णय, हिंदी सिनेमा में उर्दू का महत्व विषय पर केंद्रित उत्सव में जावेद थे मुख्य अतिथि
यह चिंताजनक है कि पश्चिम बंगाल की राज्य-संपोषित उर्दू अकादमी ने कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों के दबाव में अपने उस कार्यक्रम को रद्द कर दिया जिसमें जावेद अख्तर अतिथि के तौर पर आमंत्रित थे। यह चार दिन का उत्सव हिंदी सिनेमा में उर्दू के महत्त्व पर केंद्रित था।30 अगस्त को, इस कार्यक्रम के शुरू होने से ठीक एक दिन पहले, इसे रद्द किये जाने की सूचना देते हुए अकादमी की सचिव नुज़हत ज़ैनब ने अनुपेक्षणीय हालात को इसका कारण बताया। यह बात अब गोपनीय नहीं है कि वे हालात क्या थे। अकादमी के स्रोतों के अनुसार यह फ़ैसला सरकारी स्तर पर लिया गया और उसका कारण था, जमीयत उलेमा-ए-हिन्द और वहाईं फाउंडेशन की आपत्ति। जावेद अख्तर खुद को नास्तिक कहते हैं, इस बात पर इन कट्टरपंथी संगठनों को सख्त़ एतराज़ है और वे नहीं चाहते कि ऐसे व्यक्ति को उर्दू अकादमी अपने मेहमान के तौर पर आमंत्रित करे।
जनवादी लेखक संघ के केंद्रीय संगठन द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि उर्दू अकादमी कोई धार्मिक संस्था नहीं है। यह भाषा और साहित्य के फ़रोग के लिए बनी हुई संस्था है। ऐसी संस्था को अगर एक दक़ियानूस धार्मिक संगठन यह बताने लगे कि उसे किन लोगों को बुलाना चाहिए और किन्हें नहीं, और उसकी यह समझाइश सरकारी स्तर पर मान्य भी होने लगे, तो यह अत्यंत चिंता का विषय है। पश्चिम बंगाल में जो घटना-विकास सामने आया है, वह न सिर्फ़ इस तरह की अकादमियों की स्वायत्तता का माखौल उड़ाता है, बल्कि धर्मनिरपेक्षता और वैज्ञानिक सोच के हमारे संवैधानिक उसूलों को भी बेमानी ठहराता है। इन उसूलों पर आरएसएस-भाजपा के हमलों की निरंतरता में ही पश्चिम बंगाल सरकार के ऐसे रवैये को भी देखा जाना चाहिए। जनवादी लेखक संघ कट्टरपंथियों के दबाव में इस तरह कार्यक्रम को रद्द किये जाने की भर्त्सना करता है।