जयपाल की दो कविताएँ

जयपाल की दो कविताएँ

1.

सर्दी आ गई है

 

सर्दी आ गई है

कहा एक बूढ़े आदमी ने अपने आप से

 

एक हवा का झोंका आया

बच्चे ने फटाक से खिड़की बंद कर दी

 

उधर दादी अम्मा ने दो-तीन बार संदूक खोला है

उसे फिर बंद कर दिया है

 

नौकर रामदीन इस हफ्ते कुछ ज़्यादा जी खाँस गया है

उसने दवा की कुछ खाली शीशियां सहेज कर रख ली हैं

 

दुकान के बाहर रखी रज़ाइयों को मुड़ मुड़ कर देखते हुए

दो मज़दूर आपस में टकरा गए

 

2.

जिंदगी का सूरज

 

खिलखिलाते खेलते बच्चे

हवा, धूप, छांव , रिमझिम-फुहार , बारिश के साथ

 

दाना दाना होते पिता

गेहूं,धान ,मकई ज्वार, बाजरा, सरसों के साथ

 

पानी पानी होती मांए

कुएं ,बावड़ी , तालाब , नदी-नहरों के साथ

 

सपने सजाती लड़कियां

किताबों,कापियों,चिड़ियों,घोंसलों, पेड़ों और हवाओं के साथ

 

धरती पर उग रहा है ज़िंदगी का सूरज !

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