बात बेबात
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
विजय शंकर पांडेय
देश में महंगाई बेलगाम है, पर यह बयान पूरी तरह काबू में। बीजेपी नेता नवनीत राणा ने जनसंख्या नीति को सीधे-सीधे “डिलीवरी रूम” में पहुंचा दिया है। उनका कहना है—“अगर वो 19 बच्चे करते हैं, तो हम हिंदुओं को 4 बच्चे तो पैदा करने ही चाहिए।” भाजपा नेत्री का बयान सोशल मीडिया पर वायरल तो हो ही रहा है, चैनल भी धड़ल्ले से उनका बयान प्रसारित कर रहे हैं।
हैरानी बस इतनी है कि यह आदेश जारी करने वाली नवनीत जी खुद दो बच्चों पर ही लोकतांत्रिक विराम लगा चुकी हैं। शायद बाकी दो बच्चे फ़ाइल में पेंडिंग हों, जैसे सरकारी परियोजनाएं।
आज के दौर में बच्चा पालना कोई भावनात्मक फैसला नहीं, पूरा बजट भाषण है। दूध का डिब्बा देखकर बच्चा नहीं, पिता रो देता है। स्कूल की फीस ऐसी है कि बच्चा नर्सरी में नहीं, सीधा EMI में जाता है। ऐसे में चार बच्चे पैदा करना साहस नहीं, शेयर मार्केट में बिना रिसर्च निवेश जैसा है।
नेताओं के लिए बच्चे पैदा करना आसान है—एक बयान दीजिए, बाकी जनता से निचोड़ लेंगे। आम आदमी पूछता है, “रोटी, कपड़ा, मकान कौन देगा?” जवाब आता है—“देशभक्ति।”
देशभक्ति अब इतनी शक्तिशाली हो चुकी है कि उससे गैस सिलेंडर भी भर सकता है और स्कूल की फीस भी चुकाई जा सकती है—बस आम आदमी को यकीन होना चाहिए।
वैसे भी, नेताओं के बच्चे विदेश में पढ़ते हैं, जनता के बच्चे भविष्य में। फर्क बस इतना है कि नेताओं का भविष्य पहले से सुरक्षित है, और जनता का भविष्य पूरी तरह से राम भरोसे।

लेखक- विजय शंकर पांडेय
