कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा दिवस मनाया गया 

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा दिवस मनाया गया

 

आज कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में भाषा एवं कलां संकाय के अन्तर्गत चल रहा उर्दू विभाग ने आज भारतीय भाषा दिवस मनाया ।यह दिवस भारतीय भाषा को जीवंत करने के लिए मनाया जाता है ‌कार्यक्रम का मंच संचालन आरजू ने किया । डा सुभाष गर्ग ने कहा कि भाषा मानव के उन्नत बनने की दिशा में प्रथम कदम कहा जा सकता है। आरंभ में संकेतों की भाषा रही होगी जो कालांतर में शब्द संवाद में परिवर्तित हुई। हर परिस्थिति परिवेश एक दूसरे से अपरिचित और भिन्न था इसलिए हर मानव समूह ने अपने ढ़ंग से कुछ शब्द संकेत बनाये। एक-दूसरे से कुछ मील से हजारों मील तक की दूरी में रह रहे समूहों द्वारा विकसित किये गये इन संकेतों और शब्दों में एकरूपता का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। अतः हर कबीले की अपनी भाषा होना स्वाभाविक है उर्दू विभाग के शिक्षक मनजीत सिंह ने कहा कि भाषा को संस्कृति की संवेदन तंत्रिका भी कहा जा सकता है। क्योंकि उससे जुड़ा हर शब्द अपने साथ एक लंबा इतिहास लेकर चलता है। विभिन्न अवसरों पर प्रयुक्त होने वाले शब्द, संवाद, गीत उस भाषा और उसे मानने वाले समाज की संस्कृति के परिचायक है। सांस्कृतिक भिन्नता होगी तो भाषा और उसके शब्दों और उसे अभिव्यक्त करने के ढ़ंग में भिन्नता होना संभव है। इसलिए हर बोली अथवा भाषा महत्वपूर्ण है क्योंकि वह एक विशिष्ट संस्कृति की वाहिका है। उसका संरक्षण होना ही चाहिए। संस्कृति की प्राणवायु बनकर उसे विकसित करने में जिस लोक गीतों से लोककथाओं और लोक परम्पराओं का अतुलनीय योगदान है, वे हमारी भाषायी विविधता में समाहित है। अनुवाद विभाग से डा रश्मि प्रभा ने विशेष रूप से यह कहा कि कि सभी भारतीय भाषाओं की साहित्यिक पृष्ठभूमि प्रायः समान है। संत काव्य की समान प्रवृत्ति है। हमारे संविधान की आठवीं सूची में असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू शामिल हैं। वास्तव में भारत की सभी भाषाएं राष्ट्रीय भाषाएं हैं।आधुनिकता के दौर में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए सम्पर्क, संवाद बढ़ा है इसलिए एक-दूसरे की भाषा सीखना परिस्थितियों की मांग है। यह सत्य है कि किसी के लिए भी विश्व तो दूर अपने देश की सभी बोलियां-भाषाएं सीखना संभव नहीं है इसलिए एक सम्पर्क भाषा की आवश्यकता महसूस हुई। यह सत्य है कि किसी भी भाषा को सब पर थोपा नहीं जा सकता लेकिन विदेशी भाषा अंग्रेजी कभी भी सम्पर्क भाषा नहीं हो सकती। उर्दू के पूर्व छात्र रामलाल ने कहा कि भाषा और संस्कृति की तरह भाषा एवं शिक्षा का गर्भनाल का संबंध है। एक बच्चा सर्वप्रथम अपने परिवार और परिवेश की भाषा सीखता है। अभी उसका मस्तिष्क इतना विकसित नहीं होता कि वह एक साथ अनेक भाषाएं सीख सके। इसीलिए दुनियाभर के चिंतक, शिक्षा-शास्त्री और अनुभवी शिक्षकों का मत है कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए। वह उस भाषा में सिखाएं हुए को बेहतर ढ़ंग से सीखता है। कार्यक्रम में सुमन बाला , कहकशां अख्तर,दर्शनशास्त्र विभाग से खुशबू, अश्विनी,यामीन, आरजू,साहिल आदि ने हिस्सा लिया ‌।

 

 

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