पश्चिम बंगाल में विधायकों को सत्र के दौरान भीतर-बाहर जाते समय लगानी होगी हाजिरी

 

पश्चिम बंगाल

सांसद और विधायक संसद और विधानसभा के सत्रों में उपस्थिति को लेकर कितने गंभीर रहते हैं यह किसी से छुपा नहीं है। सत्रों के लाइव प्रसारणों के दौरान इसे लेकर माननीयों की गंभीरता सामने दिख जाती है। जबकि यही एक मौका होता है जहां पर अपने क्षेत्र की जनता से संबंधित मुद्दों को न सिर्फ उठाया जा सकता है बल्कि उसका जवाब भी मंत्रियों को देना पड़ता है। फिर भी अपने इस उत्तरदायित्व के प्रति सांसद/विधायक जागरूक और सजग नहीं रहते। यह भूमिका देने का मेरा उद्देश्य पश्चिम बंगाल की एक घटना का उल्लेख करना है। शुक्रवार से पश्चिम बंगाल विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने अपने विधायकों, मंत्रियों को सत्र में शामिल होने का निर्देश दिया है।

आदेश सदन में मौजूदगी तक होता तो विशेष बात नहीं होती, सभी पार्टियां समय-समय पर अपने विधायकों- सांसदों को ऐसे आदेश जारी करती हैं। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि टीएमसी ने अपने विधायकों को न सिर्फ सदन में मौजूद रहने का निर्देश जारी किया है बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए मंत्री शोभनदेव चट्टो के दफ्तर एक रजिस्टर रख दिया और सभी को उस पर हस्ताक्षर कर समय का उल्लेख करना होगा कि किस समय वे विधानसभा में पहुंचे। बांग्ला दैनिक आनंद बाजार में प्रकाशित खबर के मुताबिक शुक्रवार को लाइन लगाकर मंत्रियों से लेकर विधायकों ने समय का उल्लेख करते हुए हाजिरी लगाई। अब इसकी प्रतिक्रिया कैसी आनी थी इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

राज्य के शहरी विकास मंत्री फिरहाद हाकिम ने हाजिरी लगाने के आदेश पर असंतोष जताया। उन्होंने कहा, ” क्या हम स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे हैं ! पार्टी ने कहा तो हस्ताक्षर कर दिया। किन्तु इससे मैं सहमत नहीं हूं। ” राज्य के कानून मंत्री मलय घटक की पत्रिक्रिया सामान्य होते हुए भी प्रश्नवाचक थी, ” 11साल से विधानसभा में हूं लेकिन अब तक एक दिन भी गैरहाजिर नहीं रहा।” केवल इतना ही नहीं है, मंत्री कब बाहर निकले, उस समय का उल्लेख करते हुए दोबारा हस्ताक्षर करना पड़ेगा। अर्थात इससे यह पता चल जाएगा कि कौन मंत्री कितनी देर तक विधानसभा में मौजूद रहा। अखबार की वेबसाइट बताती है कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर ही यह नियम शुरू किया गया है।

तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा द्वारा अपने विधायकों, मंत्रियों के लिए जारी किया गया यह निर्देश सामान्य रूप से आश्वस्तिकर कहा जा सकता है। कोई तो ऐसी राजनीतिक पार्टी है जो चाहती है कि उसके विधायक सत्र के दौरान सदन में मौजूद रहें। यह दबाव बनाने के लिए ही हस्ताक्षर के साथ बाहर निकलते समय भी हस्ताक्षर और समय का उल्लेख करने को कहा गया है। हस्ताक्षर के दबाव में वे सदन में समय गुजारेंगे और जनता के मुद्दों से परिचित हो सकेंगे। सदन में बैठेंगे तो वे सवाल करेंगे और सवाल के लिए अपने इलाके से जुड़कर उनकी समस्याओं की जानकारी हासिल करेंगे। दूसरी तरफ इससे पता चलता है कि संसद और विधानसभा में पहुंच रहे जनप्रतिनिधियों के सरोकार कितने बदल गए हैं। जनता के मसलों को लेकर लड़ना जिनका उत्तरदायित्व होता है, अगर वह संसद या विधानसभा के अधिवेशनों में हिस्सा नहीं लेंगे तो अपनी बात कैसे संबंधित मंत्री और जनता तक पहुंचा सकेंगे। अगर दूसरे राजनीतिक दल भी तृणमूल कांग्रेस की तरह ऐसी कोई व्यवस्था बना सकें जिससे उनके चुने हुए प्रतिनिधि विधानसभा के सत्र के दौरान सदन में मौजूद रहें तो हालात ही बदलते देर नहीं लगेगी।