कहां तक बहेगी ऐसे ‘ज्ञान’ की अविरल धारा
निर्मल रानी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 9 नवंबर 2025 को उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित फ़ॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में 25वें राज्य स्थापना दिवस के मुख्य समारोह को सम्बोधित किया । ग़ौर तलब है कि उत्तराखंड का गठन 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर हुआ था। इस समारोह में पीएम मोदी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को राज्य की आध्यात्मिक धरोहर से जोड़कर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयास किया। कार्यक्रम को सफल बनाने के मक़सद से इस आयोजन में भाग लेने हेतु प्रदेश के अनेक शिक्षण संस्थानों के छात्रों को लाने की व्यवस्था की गयी थी।
प्रधानमंत्री ने यहाँ अपने संबोधन में युवाओं से आह्वान किया कि वे ‘प्राचीन ज्ञान’ को आधुनिक विज्ञान से जोड़ें। निश्चित रूप से योग व आयुर्वेद जैसी प्राचीन भारतीय ज्ञान सम्बन्धी कई बातें ऐसी हैं जिन पर देश को गर्व है। परन्तु वास्तविक प्राचीन भारतीय ज्ञान की आड़ में पौराणिक कथाओं से प्राप्त ज्ञान को आज के वैज्ञानिक युग में ‘ज्ञान ‘ बताते हुये छात्रों को ‘भ्रमित’ करना,यह कहाँ तक उचित है ?
प्रधानमंत्री सहित देश के कई ज़िम्मेदार लोगों द्वारा समय समय पर देश के भविष्य के कर्णधार छात्रों व युवाओं को सम्बोधित करते हुये ऐसी अनेक बातें की जा चुकी हैं जिनका न केवल मज़ाक़ उड़ाया गया बल्कि एक बड़े वैज्ञानिक व शिक्षित वर्ग द्वारा इसका खंडन भी किया गया।
याद कीजिये अक्टूबर 2014 में जब ‘रन फ़ॉर यूनिटी’ कार्यक्रम के संदर्भ में मुंबई के एक अस्पताल में चिकित्सकों और पेशेवरों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि ” भगवान गणेश के सिर पर हाथी का सिर लगाना प्राचीन भारत में प्लास्टिक सर्जरी का प्रमाण है। हमारे देश ने चिकित्सा विज्ञान में जो हासिल किया था, उस पर गर्व महसूस कर सकते हैं।
हम गणेश जी को पूजते हैं, जिनके सिर पर हाथी का सिर लगाया गया था। यह प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत थी।”
मोदी के इस बयान की न केवल विपक्षी दलों द्वारा बल्कि वैज्ञानिकों द्वारा भी तीखी आलोचना की गयी थी। इस आलोचना का कारण यह था कि मोदी का कथन पूर्णतः अवैज्ञानिक व तर्कहीन था क्योंकि गणेश हिंदू पौराणिक कथा के चरित्र हैं यह कोई ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं। जबकि प्लास्टिक सर्जरी का आधुनिक विकास 19वीं सदी में जोसेफ़ कार्प्यू जैसे ब्रिटिश डॉक्टरों द्वारा किया गया था। परन्तु हाथी के सिर का मानव शरीर पर प्रत्यारोपण जैसा कोई पुरातात्विक या चिकित्सकीय प्रमाण क़तई नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी का यह प्रयास मिथक को इतिहास बनाने का प्रयास है, जोकि सरासर विज्ञान-विरोधी है।
इसी तरह मोदी ने ऐसी ही ‘ज्ञान गंगा’ बहाने वाली एक पुस्तक की प्रशंसा करते हुए पुस्तक प्रस्तावना में लिखा ‘कि प्राचीन भारत में टेस्ट-ट्यूब बेबी, स्टेम सेल तकनीक, हवाई जहाज़ और न्यूक्लियर तकनीक आदि मौजूद थी जोकि “प्राचीन ज्ञान” का प्रमाण थी। इन बातों को भी दुनिया के एक बड़े शिक्षित व वैज्ञानिक वर्ग ने ख़ारिज किया क्योंकि यह भी अवैज्ञानिक व तर्कहीन दावे थे और यह सभी दावे वेदों और महाभारत की कथाओं व उनकी व्याख्या पर आधारित हैं। इन दावों का भी कोई भौतिक साक्ष्य जैसे अवशेष या यंत्र आदि उपलब्ध नहीं है ।
सच्चाई यह है कि आधुनिक IVF 1978 में विकसित हुआ जबकि हवाई जहाज़ का आविष्कार 1903 में हुआ। प्रधानमंत्री इस तरह की अनेक बातें कर चुके हैं जोकि पूरी तरह से अवैज्ञानिक व तर्कहीन है तथा इतिहास में उनके कोई प्रमाण भी नहीं मिलते।
इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 26 फ़रवरी 2019 को भारतीय वायु सेना द्वारा बालाकोट एयर स्ट्राइक के संदर्भ में दिए गये अपने एक साक्षात्कार में यह दावा करते हैं कि उन्होंने सलाह दी कि “ख़राब मौसम और बादलों का फ़ायदा उठाते हुए भारतीय विमानों को पाकिस्तानी रडार से बचाया जा सकता है, क्योंकि बादल हैं तो रडार से बच सकते हैं”। बालाकोट हमले की रणनीति पर चर्चा के दौरान आये मोदी के इस ‘ज्ञान ‘ का भी काफ़ी मज़ाक़ उड़ाया गया था और विशेषज्ञों ने इसे तकनीकी रूप से ग़लत बताया, क्योंकि सामान्यतः रडार बादलों से प्रभावित नहीं होते।
इसी तरह वे बायोगैस के महत्व को समझाने के लिए किसी चाय वाले की कहानी गढ़कर बताने लगते हैं कि ‘एक छोटे शहर में नाले के पास चाय बेचने वाले व्यक्ति ने नाले से निकलने वाली मीथेन गैस का उपयोग चाय बनाने के लिए किस तरह किया। तो कभी किसी किसान की ‘कहानी’ सुना डालते हैं जिसने रसोई के कचरे और गोबर से बायोगैस बनाकर पंप इंजन चलाया।
दरअसल जब से भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई है तभी से प्रधानमंत्री सहित ऊँचे ओहदे पर बैठे अनेक लोग इस तरह की अवैज्ञानिक व तर्कहीन बातें कर हमारे देश के छात्रों का भविष्य चौपट करने पर तुले हुये हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि यह लोग हिंदूवादी विचार के अशिक्षित लोगों को ख़ुश करने के फेर में यह भूल जाते हैं कि यह उस अगली पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय बना रहे हैं जो भविष्य में देश की बागडोर संभालने वाली है।
कभी केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश के ऊना ज़िले के पीएम श्री नवोदय विद्यालय में राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के अवसर पर छात्रों के साथ संवाद के दौरान यह ‘ज्ञान’ साँझा करते सुनाई देते हैं कि ‘हनुमान जी पहले अंतरिक्ष यात्री थे’। जबकि ऐतिहासिक रूप से पहले अंतरिक्ष यात्री सोवियत संघ के यूरी गागरिन थे। ठाकुर के इस दावे को भी मिथक और अवैज्ञानिक व तर्कहीन बताते हुये ख़ूब आलोचना की गयी थी ।
इसी तरह राजस्थान हाईकोर्ट के जज न्यायमूर्ति महेश चंद्र शर्मा ने अपने रिटायरमेंट के अंतिम दिन मई 2017 को मीडिया से बातचीत में अपनी ‘ज्ञानगंगा’ बहाई। उन्होंने कहा कि “मोर आजीवन ब्रह्मचारी रहता है। इसके जो आंसू आते हैं, मोरनी उसे चुगकर गर्भवती होती है।” उसी समय पक्षी विशेषज्ञों ने इसे ग़लत व कोरा झूठ बताया था । क्योंकि मोर और मोरनी भी अन्य पक्षियों की ही तरह सामान्य संभोग से ही प्रजनन करते हैं।
सवाल यह है कि आज सूचना व संचार के आधुनिक युग में ख़ासकर ए आई के दौर में ऐसी निरर्थक तर्कहीन व अवैज्ञानिक बातें कर यह ‘महाज्ञानी लोग’ देश के युवाओं के भविष्य को कब तक अंधकारमय बनाते रहेंगे ? और कहां तक बहेगी ऐसे ‘ज्ञान’ की ‘अविरल धारा ‘ ?
