कर्म चन्द केसर
बिपत्या और बिमारी लिख।
अपणी ह्कीकत सारी लिख।
ठग्गी , चोरी , जारी लिख।
किसनैं करी गद़्दारी लिख।
फरज,परण अर दया-धरम,
सबनैं बारी – बारी लिख।
बावन गज के दाम्मण की,
कली-कली तौं न्यारी लिख।
राम करै जो सब आच्छा,
सुख हळका दुक्ख भारी लिख।
लाज्जो सै लाचार घणी,
बेबस हुई बच्यारी लिख।
नफा देखकै बात करैं,
रिश्ते बणे बज्यारी लिख।
भरी पड़ी सै जो ‘केसर’,
सुपन्याँ की अलमारी लिख।
धरम= मानव धर्म ( मानवता
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इसे कसुत्ते मौके आए कई दफा।
काम बिगड़ग्ये बणे-बणाए कई दफा।
दुखड़े आए बिना बुलाए कई दफा,
फेर बी कोनी हम घबराए कई दफा।
आप्पे कुआं खोद जो पाणी पी लें थे,
वैं बी देक्खे मनैं तिसाए कई दफा।
काम करया ना बिन रिसवत उस बाबू नैं,
दफ्तर के थे चक्कर लाए कई दफा।
जिनकी खात्तर उमर गाळदे सै माणस,
वैं बी होज्याँ करैं पराए कई दफा।
खाकै रुखी – सूखी पाणी पी सोग्ये,
अह़्मनैं कोन्या लोग संदाए कई दफा।
गम की गठड़ी धर राक्खी थी पेटी म्हं,
आप्पे खुलग्ये ताळे लाए कई दफा।
ओच्छी हरकत देख -देखकै माणस की,
पशु – पखेरु बी शरमाए कई दफा।
जीण-मरण के दाइये ला लें सैं केसर,
बैरी बणजैं माँ के जाए कई दफा ।