गीता शर्मा की कविता – मन करता है

 

मेरा मन करता है

दूर कहीं चले जाने का

सब कुछ छोड़ कर

बचपन में जाने का

 

मन करता है

आसमान की खुली हवा में उड़ जाने का

ज़िम्मेदारियों की बोझ को फेंककर

जी भरकर सो जाने का

 

मन करता है

कभी अपने बचपन में वापस जाने का

दिन भर खेलना

और रात को बेफिक्र सो जाने का

 

मन करता है

किसी की बातें ना सुनकर

अपनी बात सुनाने का

दूर कहीं नदी किनारे बैठकर पक्षियों की आवाज सुन कर गुनगुनाने का

 

मन करता है

माँ बाप के साथ बैठ कर खाना खाने का

सारे दिन की बातें उन्हें सुनाने का

 

मन करता है

दूर कहीं चले जाने का

जिम्मेदरियों की परवाह न करके अपना नाम कमाने का

 

मेरा मन करता है

कहीं सुदूर चली जाऊं

निर्जन टापू पर वक्त बिताऊं

अपने ही ख्वाबों में खो जाऊं

 

मन करता है

इधर उधर तितली सी उड़ूँ

हिरणी सी जंगल में कुलांचे भरूं

सामने हो सिंह या सियार

लेकिन किसी से न डरूं।