मजदूरों को अधिकार विहीन बनाने वाली चार श्रम संहिताएं
मुनेश त्यागी
भारत की संयुक्त केंद्रीय मजदूर संघर्ष समिति, जिसमें अधिकांश किसान संगठन भी शामिल हैं, के आह्वान पर 9 जुलाई 2025 को अखिल भारतीय भारत बंद का आह्वान किया गया है और जिसमें अधिकांश मजदूर यूनियन और किसान संगठन और दूसरे प्रगतिशील, जनवादी, धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी दलों के लोग भी शामिल हैं। तीन चार श्रम संहिताओं का इतना बड़ा खौफ है कि इसमें भारतीय मजदूर संघ के लोग भी शामिल हो गए हैं। उनका कहना है कि अगर उन्होंने इन मजदूर विरोधी कानूनों का विरोध नहीं किया तो मजदूर उनका बहिष्कार कर देंगे।
कोरोना काल में मोदी सरकार ने अपने पूंजीपति आकाओं के इशारे पर मजदूरों के हितों में बने पुराने 144 श्रम कानूनों को एक ही झटके में खत्म करके, देश और दुनिया के मालिकान को और पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए चार श्रम सहिताएं बनाने बनाई हैं। मोदी सरकार ने पूंजीपतियों की मांग पर, उन को खुश करने के लिए, श्रम कानूनों को लचीला बनाने के नाम पर यह सब किया है और संसद में बिना बहस कराये ही इन्हें पास करा लिया है।
इन नए कानूनों के चलते 74 परसेंट मजदूरों को उनके मालिकों द्वारा जब चाहे तब काम से निकाला जा सकता है। अब उन्हें मालिकान के रहमों करम पर ही काम करना पड़ेगा। अब ट्रेड यूनियन बनाना भी लगभग असंभव हो गया है। इन चार कानूनों के लागू होने के बाद, अब सेवायोजक किसी भी कार्य को करने के लिए ठेका मजदूर लगा सकता है।
योगी सरकार पहले ही उत्तर प्रदेश में 38 श्रम कानूनों के में से 35 श्रम कानूनों को अगले तीन साल के लिए स्थगित करके मजदूरों के अधिकारों और सुविधाओं को छीन चुकी है। नए चार श्रम कानून मजदूर वर्ग पर एक भयंकर हमला है। श्रम कानूनों के खत्म होने से मजदूरों को संगठित होने और अपने हकों के लिए आवाज उठाने के अधिकार नहीं रहे हैं। काम के घंटे 8 की जगह 12 कर दिए गए हैं। अब मजदूरों को 4 घंटे आदि काम का कोई डबल टाइम नहीं मिलेगा। अब न्यूनतम वेतन की कोई गारंटी नहीं रह गई है, अब मजदूरों को कोई बोनस नहीं दिया जाएगा। कुल मिलाकर सरकार की नीतियों ने मजदूर को आधुनिक गुलाम बना दिया है और पूरे के पूरे पूंजीपति वर्ग की बल्ले बल्ले हो गई है।
नये कानून बनने से स्थाई नौकरी खत्म हो गई है। अपना टर्म न बढ़ाने के लिए अब मजदूर श्रम न्यायालय की शरण में भी नहीं जा सकता है। फिक्स टर्म वाला मजदूर, अब यूनियन का सदस्य नहीं बन पाएगा क्योंकि मालिक उसे दोबारा काम पर नहीं रखेगा। अब अपने ऊपर होने वाले निर्मम शोषण और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने पर, मालिक उसे काम से निकाल देगा। ऐसी स्थिति में मजदूरों के पास अपनी लड़ाई लड़ने का, कोई कानूनी अधिकार भी नहीं रह गया है।
सरकार ने पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए मजदूर की परिभाषा बदल दी है। उनके यूनियन बनाने और अपने हकों के लिए आवाज उठाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अब ₹18000 मासिक पाने वाले को “मजदूर” और इससे ऊपर वाले को “कर्मचारी” कहा जाएगा। अब ठेकेदार और मैनेजर दोनों को मालिक बना दिया गया है। मजदूरों की एकता तोड़ने के लिए और उनके हकों की लड़ाई को कमजोर करने के लिए, समझौते की परिभाषा को बदल दिया गया है। अब इसे सामूहिक की जगह व्यक्तिगत बना दिया गया है।
यहां पर एक वाजिब सवाल बनता है कि आखिर मोदी सरकार ने श्रम कानूनों को किसके कहने पर बदला है और किसके कहने पर चार श्रम संहिताएं बनाई हैं? यहां पर यह बताना सबसे ज्यादा जरूरी है कि इन कानूनों को बनाने के लिए सरकार ने किसी भी ट्रेड यूनियन, या केंद्रीय कर्मचारियों की फैडरेशनों या श्रम कानून विशेषज्ञों से कोई विचार-विमर्श नहीं किया है। सरकार ने इन कानूनों को बड़े बड़े मालिकान को लाभ पहुंचाने के लिए, सिर्फ और सिर्फ पूंजीपति वर्ग और मालिकान को लाभ पहुंचाने के लिए उनके इशारे और उनके कहने पर संशोधित किया है।
इन कानूनों से मजदूर वर्ग का, पूरे मजदूरों का, कोई लाभ नहीं होने वाला है, उनका कोई भला नहीं होने वाला है। इन चार श्रम संहिताओं के लागू होने पर मजदूर सिर्फ और सिर्फ आधुनिक गुलाम बन कर रह जाएगा। इन चार नए कानूनों ने मजदूरों को अपनी यूनियन बनाने की अधिकार से लगभग वंचित कर दिया है। क्योंकि इन कानूनों के लागू होने के बाद किसी प्रतिष्ठान या करखाने में यूनियन बनाना लगभग असंभव हो गया है। कानूनी हकों को मांगने और मनवाने के लिए हड़ताल के अधिकार पर लगभग रोक लगा दी गई है। पहले अगर मजदूर कोई गैर कानूनी हड़ताल करते थे तो उन पर मामूली सा अर्थ दंड लगाया जाता था, मगर अब गैरकानूनी हड़ताल करने पर मजदूरों को 2 साल की सजा और 1 लाख का अर्थदंड लगाने का प्रावधान किया गया है। पहले श्रम कानूनों का उल्लंघन करने वाले मालिकों को सजा का प्रावधान था, मगर इन नए कानूनों में मालिकों की सजा का प्रावधान खत्म कर दिया गया है। इन नए कानूनों में सामाजिक सुरक्षा संहिता के तहत जो जो कानून शामिल किए गए हैं, उनमें मजदूरों के हितों का बहुत बड़े पैमाने पर कुठाराघात किया गया है और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं और मुहावजे को लगभग खत्म कर दिया गया है।
इन नए कानूनों के लागू होने के बाद मजदूरों को वहां पहुंचा दिया गया है जहां वे आजादी मिलने से पहले थे, क्योंकि आजादी से पहले मजदूरों को लगभग कोई कानूनी अधिकार नहीं था। इन कानूनों के लागू होने के बाद, मजदूर वर्ग उसी दशा में पहुंच गया जाएगा। पुराने 144 श्रम कानून जो करोड़ों मजदूरों ने बलिदान करके हासिल किए थे और सरकारों पर दबाव डालकर बनवाए थे, वर्तमान सरकार ने उन समस्त श्रम कानूनों को खत्म कर दिया है और धोखा देने के लिए इन श्रम कानूनों को लाई है जिससे मजदूरों का कोई भला नहीं होने वाला है। कानून के नाम पर यह मजदूर वर्ग के साथ सबसे बड़ा धोखा है।
इन मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं के पूरे प्रारूप को देखकर यह सुनिश्चित हो गया है कि सरकार केवल पूंजी पत्तियों को लाभ पहुंचाना चाहती है। उसे मजदूरों के हितों की रक्षा से कुछ लेना देना नहीं है और भारतीय संविधान में मजदूर वर्ग की सुरक्षा के लिए जो प्रावधान किए गए हैं, सरकार ने उन सबको छीन लिया है। इन मजदूर विरोधी कानूनों को लेकर देश की जनता ने 9 जुलाई 2025 को जिस देशव्यापी हड़ताल और भारत बंद का आह्वान किया है, वह एकदम सही और जायज है और समय की सबसे बड़ी पुकार है। इसके अलावा भारत की शोषित जनता के पास कोई विकल्प नहीं रह गया है।
वर्तमान हालात में मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए यह जरूरी हो गया है कि सरकार श्रम संहिताओं में मजदूर विरोधी बदलावों को वापस ले और उनमें मजदूरों के हितों में जरूरी बदलाव करे। सभी मजदूरों को 25000 रुपए प्रतिमाह न्यूनतम वेतन दिया जाए और समान काम का समान वेतन कानून बनाए जाए। निजीकरण और ठेका प्रथा पर तुरंत रोक लगाई जाए। 8 घंटे के काम का कार्य दिवस शक्ति से लागू किया जाए। 8 घंटे से ज्यादा काम करने वाले मजदूरों को डबल ओवर टाइम दिया जाए और संगठित और असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले सभी मजदूरों और कर्मचारियों को ग्रेच्युटी, मातृत्व लाभ, बीमा, भविष्य निधि, पेंशन स्कीम और ईएसआई जैसी बुनियादी और जरूरी योजनाओं का लाभ दिया जाए, और मालिकों द्वारा श्रमिकों के अनाप-शनाप शोषण और मुनाफाखोरी पर तुरंत रोक लगाई जाए और इन मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को तुरंत वापस लिया जाए। मजदूर वर्ग की शोषण से मुक्ति और तत्काल राहत के लिए, इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं है।