डीयू के पूर्व प्राध्यापक हनी बाबू को हाई कोर्ट या अधीनस्थ अदालत जाएः सुप्रीम कोर्ट

डीयू के पूर्व प्राध्यापक हनी बाबू को हाई कोर्ट या अधीनस्थ अदालत जाएः सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली विश्वविद्यालय(डीयू) के पूर्व प्राध्यापक हनी बाबू को एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में जमानत के लिए मुंबई उच्च न्यायालय या अधीनस्थ अदालत का रुख करने को कहा है।

न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति पी बी वराले की पीठ ने बाबू की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा था कि उनकी पिछली अपील वापस लेने से हाई कोर्ट को उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई करने से नहीं रोका गया है।

बाबू ने पिछले साल तीन मई को इस मामले में शीर्ष अदालत से अपनी जमानत याचिका वापस ले ली थी क्योंकि उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया था।

उस समय उनके वकील ने कहा था कि हाई कोर्ट ने मामले में पांच सह-आरोपियों को जमानत दे दी है।

बाबू ने जब हाई कोर्ट का रुख किया, तो न्यायालय ने कहा कि याचिका वापस लेने की अनुमति देने संबंधी शीर्ष अदालत के आदेश ने उन्हें हाई कोर्ट का रुख करने की छूट नहीं दी है और उन्हें शीर्ष अदालत से स्पष्टीकरण मांगने के लिए कहा।

बाबू के वकील ने बुधवार को दलील दी कि उन्होंने विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में पांच साल बिताये हैं और उन्होंने हाई कोर्ट का रुख करने के लिए शीर्ष अदालत से विशेष अनुमति याचिका वापस ले ली।

एनआईए के वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह अर्जी विचारणीय नहीं है और एनआईए अदालत में नयी जमानत याचिका दायर की जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट एक अपीलीय न्यायालय है और यह मामला गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के आरोपों से संबंधित है।

इसके बाद पीठ ने कहा, ‘‘आपका मुख्य आधार यह है कि कुछ अन्य आरोपियों को जमानत दी गई है, उस पर भी अधीनस्थ अदालत द्वारा विचार किया जा सकता है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह हाई कोर्ट को उनकी जमानत याचिका पर विचार करने का निर्देश नहीं दे सकती और बाबू को पिछले साल वापस ली गई अपनी पिछली अपील को आगे बढ़ाने की छूट प्रदान की।

हाई कोर्ट ने 19 सितंबर 2022 को उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

एनआईए ने बाबू पर प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) संगठन के नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों और विचारधारा के प्रचार-प्रसार में सह-षडयंत्रकारी होने का आरोप लगाया है।

बाबू को इस मामले में जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और वर्तमान में वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं।

यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिये गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस का दावा है कि इसके अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क उठी।

हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हुए थे।

मामले में एक दर्जन से अधिक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को नामजद आरोपी बनाया गया है, जिसकी जांच शुरू में पुणे पुलिस और अब एनआईए कर रही है।

बाबू ने अपनी याचिका में कहा था कि विशेष अदालत ने यह मानकर ‘‘त्रुटि’’ की है कि उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया साक्ष्य मौजूद हैं।

एनआईए ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए दलील दी थी कि बाबू नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थे और सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते थे।