जयपाल की पांच प्रेम कविताएं
1.
शिकायत
वह लिखती रही प्रेम-पत्र
करती रही शिकायत
जवाब भी मिलता रहा
साथ में मिलती रही शिकायत भी
पर होता रहा इंतजार
इस सबके बावजूद
या यूं कहिए
बची रही शिकायत
बचा रहा इंतजार
बचा रहा प्रेम भी !
2.
प्रेम
प्रेम पर लिखा गया बहुत
कहा भी गया बहुत
पर हर बार रह गया
कुछ अनकहा
कुछ अनलिखा
कुछ रहस्यमयी सा
क्या था वह
जो रह गया हर बार ही
क्या करोगे जानकर !
3.
औरत और पतंग
औरत पतंग बनकर
उड़ लेती है हवा में
हंस लेती है बादलों के साथ
नाच लेती है
अंग-संग उड़ते पक्षियों के
आदमी की नजर बचाकर !
4.
प्रेम से मुठभेड़
उन्होंने प्रेम-विवाह किया था
वे हर किसी को प्यार करते थे
उनका प्यार कुछ था ही ऐसा
दुःख दर्द में शामिल होते थे
इंसानियत के लिए प्रतिबद्ध
अन्याय के खिलाफ मर मिटने को तैयार
कहते थे इस दुनिया को बदल कर रहेंगे
हर कोई करेगा एक दूसरे से प्यार
ऐसी दुनिया बनाएंगे
कि सब रहेंगे प्रेम से
एक दिन वे निकल पड़े
दुनिया में प्रेम भरने
फिर एक दिन पता चला
पुलिस मुठभेड़ में मारे गए !
5.
तुम
प्रिये !
एक दिन धूप को देखा
हंसते-हँसाते,
खिलते-खिलखिलाते
खेलते हुए बच्चों संग लुका-छिपी
कूदते-फांदते-उछलते हुए
गुनगुनाते हुए पहाड़ी गीत
प्रिये !
फिर एक दिन धूप को देखा
गुमसुम बेजान सी
बर्फ सी जमी हुई
बंद मकान सी
पत्र-विहीन शाखा सी
प्रिये !
यह धूप थी या तुम थी …!
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