जयपाल
घेर लो किसी भी देश को
बरसा दो बम
कर दो नेस्तनाबूद
आतंकवादी घोषित कर दो उसे
फहरा दो विजय पताका
सीमाओं को सील कर दो
बिजली-पानी काट दो
राशन की सप्लाई बंद कर दो
राहत सामग्री के ट्रक तैयार रखो
राख कर दो हस्पतालों को
आदमी के चिथड़े उड़ा दो
भेज दो एंबुलेंस की गाड़ियां
दवाईयों के जहाज रवाना कर दो
बच्चों पर बम बरसा दो
स्कूलों को मलबे में बदल डालो
शिक्षा के लिए बजट जारी कर दो
बचे खुचे लोगों को कहो
वे भाग जाएं जहां तक भाग सकते हैं
जहां जहां वे जाएं
वहां वहां स्थापित करो शरणार्थी कैंप
विस्थापितों को शरण दो
अरे ओ ! दुनिया के महान देशो !
जला डालो इंसानियत का इतिहास
पूंजी का इतिहास रच दो
फोड़ दो सबकी आंखें
काट डालो सबकी जुबां
जड़ दो बंदिशें हवाओं पर
टैंकों पर लोकतंत्र लिख दो।
कवि का परिचय
-जयपाल हरियाणा के अंबाला में रहते हैं। पंजाब में अध्यापक थे। अब सेवा निवृत्त हो चुके हैं। साहित्यिक संगठनों जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ और हरियाणा लेखक मंच में सक्रिय हैं। एक कविता संग्रह *दरवाजों के बाहर आधार प्रकाशन से प्रकाशित। इसी संग्रह पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शोध-कार्य किया गया। इसके अलावा *देस हरियाणा पत्रिका के संपादक मंडल में* हैैं। लगातार लेखन में सक्रिय।