हरियाणाः जूझते जुझारू लोग -35
ऊर्जा से लैस – सूरजभान खोखर
सत्यपाल सिवाच
सर्वकर्मचारी संघ हरियाणा की पहली एक्शन कमेटी के ग्यारह सदस्यों में शामिल रहे सूरजभान खोखर को आप अब भी कहीं न कहीं सक्रिय रूप में काम में जुटा पाएंगे। जिला रोहतक के गांव कन्साला में श्रीमती सुधीदेवी और सूबेदार सरदारा राम के बेटे सूरजभान अब भी सक्रिय और जागरूक ढंग से काम कर रहे हैं। हाल में वे रोहतक के सेक्टर चार के मकान न. 552 में रहते हैं। वास्तव में उनका यह ठिकाना भी सार्वजनिक स्थान ही बना हुआ है। उनका जन्म 20 जून 1954 को हुआ था वे चार बहनें और छह भाई हैं। उन्होंने बी.ए.1 तक शिक्षा प्राप्त की।
सूरजभान नहर पटवार ट्रेनिंग के आधार पर 05 फरवरी 1974 को सिंचाई विभाग में नहरी पटवारी लगा। उसी साल 29 नवंबर 1974 में उन्हें सरप्लस कर दिया गया। इसके बाद 07दिसंबर 1974 को बेटरमेंट स्कीम के तहत समायोजित किया गया। उसके बाद 03दिसंबर 1976 को एम.आई.टी.सी. नियुक्ति मिली। बाद में 05 जनवरी 1990 को राजस्व विभाग में रेवेन्यू पटवारी के समायोजित किया गया जहाँ से 30 जून 2012 को सेवानिवृत्त हुए।
सन् 1974-76 तक नहर पटवारी व ए.आर.सी. संगठन में सक्रिय रहे और उसका उपाध्यक्ष बने। सन् 1978 से 1985 तक एम.आई.टी.सी. में पटवारी – ए.आर.सी. एसोसिएशन बनाई और निगम के तमाम कर्मचारियों को लामबंद करने के लिए ऑल इम्प्लाइज एच.एस.एम.आई.टी.सी. का गठन किया और उसका अध्यक्ष बने। राजस्व विभाग में जाने के बाद रिवन्यू पटवार-कानूननगो यूनियन में सक्रिय रहे। सर्वकर्मचारी संघ बनने पर एक्शन कमेटी का सदस्य बनाया गया और सन् 1988 में उसका उपाध्यक्ष चुना गया। उनका बचपन से ही न्यायप्रिय स्वभाव था। जहाँ कहीं भी अन्याय महसूस होता उसे देखकर बेचैन हो जाते थे। जैसे ही नौकरी में आए तो कर्मचारियों को संगठित करने में प्रवृत्त हो गए।
राजस्व पटवार यूनियन में आने पर नेतृत्व मतभेद हो गए। संगठन के खर्च का भुगतान भी नहीं किया गया। सर्वकर्मचारी संघ की ओर से भी हस्तक्षेप नहीं हो पाया तो उन्होंने अलग यूनियन बना ली। इसके बावजूद मैं आन्दोलन समर्थक बने रहे।
संघ के बनने से पहले ही रोहतक के कर्मचारी 26.फरवरी 1986 को अखिल भारतीय हड़ताल में शामिल हुए थे। उसके उत्पीड़न के खिलाफ इन्होंने आवाज उठाई। उसमें दो सौ से अधिक कर्मचारी जेल में गए थे। उसमें सूरजभान भी शामिल थे। दो साल बाद यह उत्पीड़न दूर हुआ। सन् 2018 में रोडवेज की हड़ताल में भी सक्रिय रहे। सन् 2020-21 में किसान आन्दोलन के मोर्चे पर लगातार बार्डर पर जाते रहे।
24.सितंबर 1989 की दिल्ली रैली की तैयारियां चल रही थीं। भाई की मृत्यु हो गई थी। ये दाह संस्कार के बाद प्रचार में चले गए। इससे परिवार के लोग बहुत नाराज हुए।
सूरजभान खोखर आर एस एस के नफरती प्रचार का विरोधी रहे हैं। ये नीतीश कुमार, सतपाल मलिक और राममनोहर लोहिया के समाजवादी विचारों को मानते थे। युवावस्था में ही उनसे मिलने लगा थे। चौधरी चरणसिंह के विचारों के भी कायल रहे। गांव में समाज सुधार मंच की स्थापना की थी। मेधाव्रत शास्त्री इनके प्रेरणा स्रोत रहे।
चौधरी बंसीलाल से थोड़ा संपर्क आकस्मिक रूप से हो गया था। वे बात के धनी थे। निजी काम नहीं लिया लेकिन कॉडर का ग्रेड ठीक करवाने में उन्होंने मदद की। बहुत पहले मेरा समरगुहा से परिचय रहा। अब भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भी जानते हैं। इनका परिवार हल्के में उनका समर्थक है। मैं स्वभाव से वामपंथी विचारों का समर्थक रहा हूँ, हालांकि वामपंथी दल में शामिल नहीं हुए। अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा वामपंथ से मिलती है।
वे साफगोई से बात करते हुए अपनी आत्मालोचना भी करते हैं। उन्होंने खुले दिल से स्वीकार किया कि मतभेद होने के बावजूद अलग यूनियन बनाना उचित नहीं था। एकता बड़ी बात है। इसका अहसास होने पर फिर एकजुटता के पक्ष में ठोस कदम उठाया।
वे वर्तमान दौर के कार्यकर्ताओं से जागरूक होने की उम्मीद करते हैं। आज के जमाने में समाज की चिंता कम है। हर कोई नेता बनना चाहता है। उनके विचार से यह अनुचित है।
- सामाजिक चेतना जरूरी है ;
- आर्थिक हालात और परिस्थितियों का विश्लेषण करना चाहिए।
- विद्वानों द्वारा रचित साहित्य पढ़ना चाहिए।
- ठोस परिस्थितियों का ठोस अध्ययन करते हुए संघर्ष की योजना बनानी चाहिए। सौजन्य ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक- सत्यपाल सिवाच
