बात बेबात
कर्मचारी कोई संपत्ति नहीं, एक्सपायरी डेट वाला प्रोडक्ट है
विजय शंकर पांडेय
एसबीआई चेयरमैन सीएस शेट्टी ने बड़ा रहस्य उजागर कर दिया है—प्राइवेट बैंक कर्मचारियों पर निवेश नहीं कर रहे, इसलिए टैलेंट क्राइसिस है। अब तक माना जा रहा था कि टैलेंट खुद ही पलायन कर जाता है, लेकिन असल में उसे ट्रेनिंग के नाम पर केवल “ऑनलाइन मॉड्यूल + ऑल द बेस्ट” देकर छोड़ दिया जाता है।

एसबीआई चेयरमैन- सीएस शेट्टी
प्राइवेट बैंक का दर्शन बड़ा साफ है—कर्मचारी कोई संपत्ति नहीं, एक्सपायरी डेट वाला प्रोडक्ट है। आज जॉइन किया, कल टारगेट पूरा नहीं हुआ, परसों “थैंक यू फॉर योर सर्विस”। ट्रेनिंग? हां, जरूर मिलती है—कैसे 10 घंटे में 12 घंटे का काम करें, कैसे ग्राहक को मुस्कुराकर लूटें, और कैसे वर्क–लाइफ बैलेंस पर चुप्पी साधें।
टैलेंट क्राइसिस इसलिए भी है क्योंकि टैलेंट को “रिसोर्स” कहा जाता है और रिसोर्स का काम है—खुद को खपा देना। प्रमोशन की उम्मीद ऐसे दिलाई जाती है जैसे बारिश में इंद्रधनुष—दिखता जरूर है, मिलता नहीं।
उधर सरकारी बैंक बैठकर चाय पीते हुए अनुभव सहेजते हैं और प्राइवेट बैंक एनर्जी ड्रिंक पीकर अनुभव निचोड़ लेते हैं। फिर जब कर्मचारी थककर निकलता है तो कहा जाता है—“आजकल युवाओं में कमिटमेंट नहीं है।”
असल संकट टैलेंट का नहीं, नीयत का है। क्योंकि जहां इंसान पर खर्च बोझ लगता हो, वहां टैलेंट हमेशा संकट में ही रहेगा।

लेखक- विजय शंकर पांडेय
