हरियाणा के जूझते जुझारू लोग- 8
शिक्षा और समाज के लिए समर्पित कर्मचारी नेता- उदयसिंह मान
सत्यपल सिवाच
नयी पीढ़ी के लोग उन्हें नहीं जानते, लेकिन राजनीतिक रूप से जागरूक लोग आज भी उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के कायल हैं। सन् 1911 में मकर सक्रांति के दिन बहादुरगढ़ क्षेत्र लोवाकलां गांव में हरफूल सिंह और भरतोदेवी के एक सुपुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम उदय सिंह रखा गया। उदय सिंह अपनी युवावस्था में ही आजादी के आन्दोलन के नेताओं से प्रभावित हो गए। उन्होंने सन् 1928 में जाट हाई स्कूल रोहतक से दसवीं पास की। फिर करनाल से अध्यापक प्रशिक्षण प्राप्त करके 1942 में शिक्षक बन गए। आजादी के बाद 1952-56 और 1956-62 तक वे पंजाब विधान परिषद में शिक्षक क्षेत्र से एम.एल. सी. चुने गए।
उदय सिंह मान नौकरी में आते ही शिक्षक संगठन के संपर्क में आ गए। आजादी के बाद वह पंजाब के हरियाणा क्षेत्र में शिक्षक आन्दोलन का बड़ा चेहरा बन गए। जिला परिषद के स्कूलों को शिक्षा विभाग में विलय करवाने, पूरा वेतनमान दिलवाने और उसके बाद में प्रोविंसलाज्ड कॉडर के शिक्षकों के हितों Null रक्षा के आन्दोलन में वे अग्रणी नेताओं में शामिल थे। शिक्षकों के प्रतिनिधि के रूप में वे एम एल सी. चुने गए थे। नौकरी छोड़ने के बाद उन्हें जाट शिक्षण संस्थान रोहतक की प्रबंध समिति का अध्यक्ष चुना गया। यहाँ उन्होंने दस साल 1962 तक काम किया। उनके कार्यकाल में जे.बी.टी., बी.टी., पॉलिटेक्निक आदि संस्थान स्थापित किए गए। बाद में प्रबंधन में विवाद होने पर भी 1986-89 और 2003-2005 तक आग्रहपूर्वक प्रधान पद दिया गया। वे शिक्षा प्रेमी रहे। गुरुकुल झज्जर, कन्या गुरुकुल लोवाकलां और गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ के जीर्णोद्धार में भी उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। मुरथल और कंझावला में इंजीनियरिंग कॉलेज बनवाने में भी वे सक्रिय रहे। दिनांक 8 जुलाई 2016 को लगभग 105 साल की आयु में वे प्रस्थान कर गए। उनकी जीवन यात्रा समाज सेवा करने की इच्छा रखने वालों के लिए प्रेरक कथा हो सकती है। वे सौ वर्ष से अधिक आयु के समय भी नियमित रूप से गांव से बहादुरगढ़ छोटू राम धर्मशाला की देखरेख के आते रहे।
उन्होंने 1929 में वर्नाक्यूलर टीचर के रूप में काम शुरू किया और 1952 में एम.एल. सी. बनने पर सेवानिवृत्ति ले ली। वे 1946 में पंजाब (अब का पंजाब, पाकिस्तान का पंजाब और हरियाणा) में लोकल बॉडीज टीचर्स यूनियन के अध्यक्ष चुने गए थे। तब 90 प्रतिशत से अधिक टीचर लोकल बॉडीज स्कूलों में ही पढ़ाते थे। इन शिक्षकों को राजकीय सेवा में शामिल करवाने के लिए वे आन्दोलन में सक्रिय रहे और विधायक के रूप में अपने राजनीतिक प्रभाव का भी योगदान दिया। वे खुद को एम.एल ए. नहीं, अध्यापक संघ का प्रतिनिधि मानते थे। ऊर्जावान इतने थे कि सौ वर्ष की आयु में 29 मई 2011 को हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ की झज्जर में राज्य रैली में आशीर्वाद देने के पहुंच गए। वे जब तक रहे, स्वयं को शिक्षक यूनियन का आदमी मानते रहे।
हमें एक बार छोटूराम धर्मशाला बहादुरगढ़ में राज्य परिषद का सम्मेलन करना था। मास्टर शेरसिंह, बलवान सिंह राणा और मैं उनसे जगह देने के आग्रह के साथ मिले। वे बहुत खुश हुए। कहा – “खुशी के साथ आयोजन कीजिए। आपकी जगह है। कोई किराया नहीं देना है। हाँ, मेरे लिए वैसे भी खुशी होगी कि आज के अध्यापक संघ नेतृत्व से मिलने का सुअवसर मिलेगा।” वे हमारे बीच रहे। बाद में बहुत आग्रह करने धर्मशाला के लिए स्वैच्छिक दान के रूप थोड़ी राशि प्रबंधक के पास जमा करवाई।
जब हरियाणा राज्य के निर्माण के आन्दोलन चला तो चण्डीगढ़ और सीमा से सटे इलाकों को भाषायी आधार पर बांटने के लिए आन्दोलन चल पड़ा। पंजाब की ओर से दर्शन सिंह फेरूमान भूखहड़ताल पर बैठ गए। हरियाणा की ओर सभी पार्टियों के नेताओं ने सर्वमान्य रूप से उदयसिंह मान से आग्रह किया। वे सहर्ष तैयार हो गए और 01.09.1969 से 16.10.1969 तक 46 दिन अनशन पर रहे। बाद में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रयासों से समझौता हुआ और अनशन समाप्त करवाया गया।
उनके परिवार में पाँच बेटे और एक बेटी है तथा आगे तीसरी पीढ़ी के भी स्वतंत्र परिवार बन गए हैं।
लेखक- सत्यपाल सिवाच