मजदूर दिवस पर धर्मेन्द्र आजाद की कविता: ऐ मजदूर भाई 

श्रमिक दिवस पर विशेष

ऐ मज़दूर भाई!

धर्मेन्द्र आजाद

 

मज़दूर भाई!

तेरे हथौड़े की गूंज,

सिर्फ कानों में नहीं —

पूरे इतिहास में बजती है।

तू जो आग से खेलता है,

लोहे को ढालता है,

कारखानों का धुआँ पीकर,

सपनों को साकार करता है।

ऐ मज़दूर भाई!

तू कोई जंग खायी मशीन नहीं —

तू वह धड़कता दिल है

जिससे मिलें, फैक्ट्रियाँ, चिमनियाँ,

जीवन पाती हैं।

तेरी हथेलियों में

इमारतों के नक़्शे उगते हैं,

तू वह भूमि है

जिस पर दुनिया खड़ी है।

ऐ मज़दूर भाई!

तू ही है जो खेतों में

बीज की तरह गलता है,

फसलें उगाता है,

अपने पसीने से सोना उगलता है,

फिर भी,

तेरे घर में भूख का अंधेरा है,

तेरे कदमों में

क़र्ज़ की जंजीरें लिपटी हैं।

तेरे सपने

कभी साकार नहीं हो पाते।

ऐ मज़दूर भाई!

तू ही है जो

शहरों का शिल्पकार है,

जो रेलों की रफ्तार है,

जो पुलों का विस्तार है —

फिर भी तेरे पास

कोई छत नहीं, कोई अधिकार नहीं।

तेरी पसीने की बूँदों से

पूँजी के महल सजे हैं,

तेरे श्रम की तपिश से

मालिकों की रातें रोशन हैं।

उनका ऐश्वर्य,

तेरी लाचारी की नींव पर खड़ा है।

ऐ मज़दूर भाई!

अब और मत बँट

ना जात में, ना धर्म में,

ना भूगोल की रेखाओं में —

तू वह वर्ग है, तू वह शक्ति है,

तू वह ज्वाला है

जो पूँजी के दुर्गों को गला सकती है।

याद कर शिकागो के शहीदों को,

जो तेरे ही जैसे

मज़दूरों की सांसों से भड़की थी,

वो चिंगारी जिसने

आज़ादी का रास्ता दिखाया था,

जिन्होंने तेरे लिए

अपनी जान दी थी —

ताकि तू झुक न सके,

तू बिक न सके।

ऐ मज़दूर भाई!

मई का ये दिन

तेरे रक्त से रँगा हुआ परचम है —

उसे थाम,

उसे लहरा,

उसे आग बना,

तू वह रोशनी है

जो दुनिया के अंधेरे को चीर सकती है!

अब तू ही इंक़लाब है,

अब तू ही वह इतिहास है

जो फिर से लिखा जाएगा।

आज तेरा संघर्ष,

कल की दुनिया बनाएगा।

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