देवेन्द्र सिंह हुड्डा- असीम क्षमताओं से लैस और लड़ाकू

हरियाणा: जूझते जुझारू लोग – 34

देवेन्द्र सिंह हुड्डा- असीम क्षमताओं से लैस और लड़ाकू

सत्यपाल सिवाच

ऑल हरियाणा पावर कारपोरेशनस् वर्करज् यूनियन के सर्वाधिक चर्चित एवं लोकप्रिय नेता देवेन्द्र सिंह हुड्डा के किसी औपचारिक परिचय के मोहताज नहीं हैं। मैं उन्हें तीन दशक से जानता हूँ और इस अरसे में उनसे निकटता का अहसास गहरा होता गया है। एकाध अल्पकालीन विषय को छोड़कर कभी कोई ऐसी बात सामने नहीं आई जब मुझे उन्हें समझने में दिक्कत रही हो। वे बहुत गतिशील, जुझारू, तर्कशील और अधिकारियों से कर्मचारियों के सामूहिक व निजी काम निकलवाने के हुनर में बेजोड़ हैं।

देवेन्द्र सिंह का जन्म रोहतक जिले के चमारियां गांव में सुश्री शान्ति और श्री सूबेसिंह के घर दिनांक 20 अक्तूबर 1964 को हुआ था। चचेरे भाई धर्मपाल के साथ स्कूल में दाखिल करवाते समय दादा ने इनकी जन्म तिथि 12 जून 1962 लिखवा दी। शरीर से अच्छे डीलडौल के थे। इसलिए कम उम्र में पढ़ाई शुरू हो गई। उन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद आई.टी.आई. से स्टेनोग्राफी में डिप्लोमा किया। वे चार भाई थे। परिवार में जीवन साथी निर्मला के अलावा एक बेटी और एक बेटा हैं। दोनों विवाहित हैं। एक पोता नैतिक व एक पोती अक्षरा हैं।
आईटीआई डिप्लोमा करने के बाद देवेन्द्र हुड्डा थर्मल पानीपत में 26 फरवरी 1981 को एडहॉक आधार पर स्टेनोग्राफर नियुक्त हो गए। सर्वकर्मचारी संघ के संघर्ष फलस्वरूप 01 नवंबर 1986 से उनकी सेवाएं नियमित हो गईं। वे 30 जून 2020 को यूडीसी पद से सेवानिवृत्त हुए। देवेन्द्र सिंह के चाचा श्री धूपसिंह हुड्डा भी थर्मल में नौकरी करते थे और एच.एस.ई.बी.वर्करज यूनियन के पदाधिकारी थे। उन्हीं के प्रभाव से ये यूनियन से जुड़ गए। उस समय तक संगठन में आपसी विवाद हो गया था और ये हेड ऑफिस हिसार की लाइन को सही मानकर उनसे जुड़ गए।

सन् 1986 में उनकी पोस्टिंग सोहना में थी। वहाँ वे पहले सब यूनिट चुनाव में सचिव बने। पंद्रह दिन बाद हुए यूनिट चुनाव में 20 जून 1986 को यूनिट प्रधान चुन लिए गए। बाद में 1991 में जोन के संगठन सचिव बने। उससे अगले चुनाव में उन्हें राज्य स्तर डिप्टी चीफ ऑर्गेनाइजर चुना गया। वे दोबार इस पद पर रहे। इसके बाद चार बार चीफ ऑर्गेनाइजर रहे। सन् 2000 में उन्हें राज्य प्रधान बनाया गया और 2018 तक आठ बार इस पद के लिए चुने जाते रहे। सन् 2018 से अब तक चेयरमैन पद पर काम कर रहे हैं। वे 1986-87 उन्हें सोहना ब्लॉक अध्यक्ष बनाया गया। बाद में रोहतक आने 1990 आने पर दो बार जिला सचिव रहे। सन् 1994 के बाद लगातार छह बार जिला प्रधान रहे। उन्हें सन् 2003 से लगातार छह बार एसकेएस की केन्द्रीय कमेटी का सदस्य बनाया गया। वे दो बार इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष और चार बार नेशनल काउंसिल के सदस्य रहे।

देवेन्द्र सिंह हुड्डा उत्साह के साथ मुश्किल स्थितियों से उलझने के स्वभाव के चलते अनेक बार जेल गए। उनकी जेल अवधि 137 दिन है। पहली बार मोहन स्पीनिंग मिल के आन्दोलन में 57 दिन जेल में रहना पड़ा। सन् 1986 में अस्थायी थे तो सेवाएं टर्मिनेट कर दी गईं। सन् 1988 में बिजली के स्थानीय आन्दोलन में उनकी और देवीसिंह की सेवाएं समाप्त की गईं। सन् 1989 में उन्हें मंगलसैन के आवास पर धरना देते हुए गिरफ्तार किया गया। सन् 1992 में एसकेएस की केन्द्रीय कमेटी की गिरफ्तारी में भी वे शामिल थे और चार दिन जेल में रहे। सन् 1993 में उनकी सेवाएं एस्मा के तहत समाप्त की गईं और 28 दिन जेल में रहे। सन् 1996-97 पालिका आन्दोलन में भी उन्हें हिसार जेल भेजा गया।
जब बिजली में दिग्गज नेताओं प्यारेलाल और धारासिंह आदि को चुनौती देते हुए अलग संगठन बना। वह बेहद मुश्किल समय था। बहुत बार सीधे शारीरिक हमलों का सामना करने की स्थिति पैदा हो जाती। यही वह दौर था जिसमें वे धीरे-धीरे वामपंथी विचारों की ओर आकर्षित होने लगे। पृष्ठभूमि से उनका परिवार लम्बे समय से कांग्रेस से जुड़ा हुआ था। उनके दादा-परदादा के समय से ही चौधरी मातूराम, चौधरी रणबीर सिंह के परिवार से संपर्क बने रहे हैं। अभी भी उस परिवार में निजी संपर्क हैं। ऐसे पारिवारिक माहौल से वामपंथ की ओर आना यूं तो सहज नहीं था लेकिन कामरेड रघुवीर सिंह हुड्डा से संपर्क होने के कारण वे प्रभावित हो गए। इसके चलते वे नौकरी करते हुए भी पूर्णकालिक कार्यकर्ता जैसे स्वभाव के बनते गए। घर की परवाह किये बिना संगठन के काम खुद को झोंक देते हैं।

स्वभाव से बेबाक-बेलाग, कुछ ओट लिया तो उसे पूरा करना, गलत बात हुई तो मानने में पल भर का भी समय न लेना, लेकिन गलत बात बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करना आदि उनकी निजी विशेषताएं हैं। लालच से दूर रहते हैं। जब भूपेन्द्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री बने तो इन्हें अपने कार्यालय या निवास पर मुख्य जिम्मेदारी देना चाहते थे लेकिन इन्होंने विनम्रता से मना कर दिया। निजी सम्बन्धों और मित्रता को निभाने में लाजवाब हैं। आगे बढ़कर बात कहने के चलते कुछ लोग उन्हें व्यक्तिवादी भी कह देते हैं। मेरे विचार से यह आरोप सभी असाधारण क्षमताओं वाले व्यक्तियों पर लगाया जा सकता है। वे बहुत संवेदनशील इन्सान हैं। लाइनों पर काम करते हुए साल में बिजली कर्मचारियों की सैकड़ों दुर्घटनाएं हो जाती हैं। ऐसे मौके पर ये अस्पताल में व पीड़ित परिवार की सुधबुध लेने के लिए अवश्य पहुंचने की कोशिश करते हैं। सौजन्य -ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक – सत्यपाल सिवाच

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *