संबंधित कानून के अनुसार, 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान उपासना स्थलों का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा, जैसा वह उस दिन था
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में वीरवार को अगले आदेश तक देश की अदालतों को धार्मिक स्थलों, विशेषकर मस्जिदों और दरगाहों पर दावा करने संबंधी नए मुकदमों पर विचार करने और लंबित मामलों में कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने से रोक दिया।
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘क्योंकि मामला इस अदालत में विचाराधीन है, इसलिए हम यह उचित समझते हैं कि इस अदालत के अगले आदेश तक कोई नया मुकदमा दर्ज न किया जाए।’’
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ के इस निर्देश से विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही पर रोक लग गई है। इन मुकदमों में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद समेत 10 मस्जिदों की मूल धार्मिक प्रकृति का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण का अनुरोध किया गया है।
विशेष पीठ छह याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर मुख्य याचिका भी शामिल थी। उपाध्याय ने याचिका में उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी है।
संबंधित कानून के अनुसार, 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान उपासना स्थलों का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा, जैसा वह उस दिन था। यह किसी धार्मिक स्थल पर फिर से दावा करने या उसके स्वरूप में बदलाव के लिए वाद दायर करने पर रोक लगाता है।
अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से संबंधित विवाद को हालांकि इसके दायरे से बाहर रखा गया था।
कई प्रतिवाद याचिकाएं हैं, जिनमें सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने और उन मस्जिदों की वर्तमान स्थिति को बनाए रखने के लिए 1991 के कानून के सख्त कार्यान्वयन का अनुरोध किया गया है, जिन्हें हिंदुओं ने इस आधार पर पुनः वापस किए जाने का अनुरोध किया है कि आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए जाने से पहले ये मंदिर थे।
पीठ ने कहा, ‘‘हम 1991 के अधिनियम की शक्तियों, स्वरूप और दायरे की पड़ताल कर रहे हैं।’’ पीठ ने अन्य सभी अदालतों से इस मामले में दूर रहने को कहा।
इसने कहा कि उसके अगले आदेश तक कोई नया वाद दायर या पंजीकृत नहीं किया जाएगा और लंबित मामलों में, अदालतें उसके अगले आदेश तक कोई ‘‘प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश’’ पारित नहीं करेंगी।
मामले में एक हिन्दू पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जे साई दीपक ने अन्य सभी अदालतों पर रोक लगाने वाले आदेश का विरोध किया और कहा कि ऐसा निर्देश देने से पहले सभी पक्षों को सुना जाना चाहिए था।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि क्योंकि उच्चतम न्यायालय बड़े मुद्दे पर सुनवाई कर रहा है, इसलिए अदालतों से कोई आदेश पारित न करने को कहना स्वाभाविक है।
पीठ ने कहा कि यदि पक्षकार जोर देते हैं तो मामला उच्च न्यायालय भेजा जा सकता है।
इसने पूछा, ‘‘क्या निचली अदालतें उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर जा सकती हैं?’’ पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय पहले से ही कानून की वैधता पर विचार कर रहा है।
न्यायालय ने कहा कि केंद्र के जवाब के बिना मामले पर फैसला नहीं किया जा सकता। इसने सरकार से चार सप्ताह के भीतर याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने को कहा।
न्यायालय ने केंद्र द्वारा याचिकाओं पर जवाब दाखिल किए जाने के बाद संबंधित पक्षों को भी प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।
पीठ ने सितंबर, 2022 में मुख्य याचिका पर केंद्र समेत सभी पक्षों को नोटिस जारी किया था।
सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा, ‘‘अभी कितने मुकदमे लंबित हैं?’’
इस पर एक वकील ने बताया कि देशभर की कई अदालतों में 10 मस्जिदों से संबंधित कुल 18 मुकदमे लंबित हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘अंततः हमें दलीलें सुननी होंगी।’’ इसने कहा कि प्राथमिक मुद्दा 1991 के कानून की धारा 3 और 4 से संबंधित है।
धारा 3 एक धार्मिक समूह से संबंधित उपासना स्थल को दूसरे धार्मिक समूह से संबंधित उपासना स्थल में बदलने पर रोक लगाती है जबकि धारा 4 कुछ उपासना स्थलों की धार्मिक प्रकृति की घोषणा और न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र पर रोक आदि से संबंधित है।
न्यायालय ने कार्यवाही में हस्तक्षेप करने के अनुरोध वाली मुस्लिम निकायों समेत विभिन्न पक्षों की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया।
उच्चतम न्यायालय में लगभग छह याचिकाएं विचाराधीन हैं, जिनमें से एक मुख्य याचिका में अधिनियम की धारा 2, 3 और 4 को रद्द करने का अनुरोध किया गया है।
याचिका में दिए गए तर्कों में से एक तर्क यह है कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल पर पुन: दावा करने के न्यायिक समाधान के अधिकार को छीन लेते हैं।
ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति समेत विभिन्न मुस्लिम पक्षों ने 1991 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई लंबित याचिकाओं का विरोध करने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया।
मस्जिद समिति ने पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न मस्जिदों और दरगाहों के संबंध में किए गए विवादास्पद दावों की एक सूची दी है, जिनमें मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद, दिल्ली की कुतुब मीनार के निकट कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, मध्य प्रदेश की कमाल मौला मस्जिद और अन्य शामिल हैं।