भारत का संविधान और न्यायपालिका की स्वतंत्रता सर्वोपरि 

 

भारत का संविधान और न्यायपालिका की स्वतंत्रता सर्वोपरि

मुनेश त्यागी

आजकल बीजेपी नेता निशिकांत दुबे और उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ के बयानों को लेकर देश में हलचल मची हुई है। पिछले दिनों भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि संविधान की धारा 142 परमाणु मिसाइल बन गया है जो न्यायपालिका के पास है और वह कभी भी इसका इस्तेमाल कर सकता है। इसी के साथ-साथ भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय पर धार्मिक युद्ध छेड़ने और देश में हो रहे गृह युद्ध के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को जिम्मेदार बताया है।

भाजपा सांसद ने कहा है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय को ही कानून बनाना है तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए। दुबे ने कहा है कि शीर्ष अदालत ने विधायिका की ओर से पारित कानून को निरस्त करके संसद की विधायी शक्तियों को अपने हाथ में ले लिया है और अब वह राष्ट्रपति को निर्देश दे रहा है। उन्होंने कहा कि नियुक्ति करने वाले अधिकारी पर सवाल कैसे उठाया जा सकता है? राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश को नियुक्त करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि संसद इस देश का कानून बनाती है। कोई भी जज संसद को निर्देश नहीं दे सकता। उन्होंने आगे कहा की राष्ट्रपति को तीन महीने के अंदर फैसला लेने का आदेश कैसे दिया जा सकता है? इसका मतलब है कि आप इस देश को अराजकता की ओर ले जा रहे हैं।

इस सांसद के बयान का विरोध करते हुए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा है कि हमारी पार्टी न्यायपालिका का सम्मान करती है। सोसल मीडिया पर अपने बयान में उन्होंने कहा है कि निशिकांत का यह निजी बयान है, भाजपा का उससे कोई संबंध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का हमेशा सम्मान है। सुप्रीम कोर्ट संविधान के संरक्षण का मजबूत स्तंभ है। सभी कोर्ट लोकतंत्र का अभी हिस्सा है। पार्टी ऐसे बयान का समर्थन नहीं करती। हम ऐसे बयान को खारिज करते हैं। निशिकांत दुबे को ऐसे बयान देने से बचना चाहिए।”

इसके अलावा भी देखा गया है कि भाजपा और आरएसएस के लोग संविधान और कानून के शासन पर हमले करते रहते हैं। जो फैसले सरकार के पक्ष में होते हैं, सरकार उनका समर्थन करती है। मगर जब न्यायपालिका सरकार के मनवाने फसलों का विरोध करती है और उनके खिलाफ फैसला देती है तो भारत की न्यायपालिका पर हमले शुरू हो जाते हैं। यह मनुवादी ताकतों का एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है। वह संविधान के प्रावधानों के तहत चुनकर सरकार में आई है, मगर संविधान के रहते ही संविधान विरोधी कार्य कर रही है। जनता को इसे समझने की जरूरत है।

ये बयान सर्वोच्च न्यायालय को कमजोर करने की साजिश है। सर्वोच्च न्यायालय को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है, उसके लिए चुनौतियां पैदा की जा रही है और उसे डराया धमकाया जा रहा है। यह भारत की न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला है। ये हमले बता रहे हैं कि सरकार न्यायपालिका को नियंत्रण में रखना चाहती है। ये बयान बता रहे हैं कि सरकार और न्यायपालिका के बीच दूरी बढ़ती जा रही है, उनका आपसी विश्वास खत्म होता जा रहा है। इन हमलों से सर्वोच्च न्यायालय के जजों और न्यायपालिका को कमजोर किया जा रहा है, उसे डराया जा रहा है, उसकी निष्पक्षता और आजादी से काम करने की उसकी क्षमता पर हमला किया जा रहा है जो संविधान विरोधी और नाकाबिले बर्दाश्त हैं।

भारत का संविधान कहता है कि संसद और विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानूनों पर भारत की न्यायपालिका, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय हस्तक्षेप कर सकते हैं। अगर ये कानून संविधान के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है तो न्यायपालिका इन कानूनों को निरस्त करने का आदेश दे सकती है। अगर कोई कानून संविधान के विरोध में है तो इसे निरस्त किया जा सकता है। ऐसा संविधान में लिखा है। सरकार की मनमानी चालों पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा सकती है और सरकार की मनमानी को रोक सकती है।

सुप्रीम कोर्ट सरकार को सीमाओं में रहने को कह रही है। वह किसी सरकार के खिलाफ काम नहीं कर रहा है बल्कि वह कानून के शासन और संविधान की रक्षा कर रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले दिनों जो फैसले दिए हैं जैसे इलेक्टोरल बॉन्ड, चंडीगढ़ मेयर का चुनाव और अब वक्फ अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसले दिए हैं, वे सरकार की मनमानी और गैरकानूनी नीतियों के खिलाफ हैं। सरकार उन्हें पसंद नहीं कर रही है। अतःसरकार ने एक सोची समझी साजिश के तहत अपने गिने चुने लोगों से भारत के सर्वोच्च न्यायालय और मुख्य न्यायाधीश माननीय संजीव खन्ना पर और दूसरे जजों पर हमले शुरू कर दिए हैं। ताकि भारत की न्यायपालिका को डरा कर अपनी मनमानी नीतियों को जारी रखा जा सके।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बयान एकदम संविधान विरोधी है, उनके पद और गरिमा के खिलाफ है। उनको ऐसा बयान देने का कोई अधिकार नहीं है। उनके बयान से लगता है कि उनको संविधान और कानून की आधिकारिक जानकारी नहीं है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभा रहा है, जनता के अधिकारों की रक्षा कर रहा है और वह भारत के संविधान के बुनियादी सिद्धांतों की रक्षा करने और उन्हें आगे बढ़ाने का काम कर रहा है। सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक कार्य प्रणाली पर सरकार या उसके लोग मनमाने रूप से सवाल खड़े नहीं कर सकते।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 142 स्पष्ट रूप से कहता है कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय ऐसे आदेश पारित कर सकता है कि जो पूर्ण न्याय करने के लिए जरूरी हों। भारत का सर्वोच्च न्यायालय कोई मनमानी संस्था नहीं है बल्कि वह संविधान का संरक्षक है। संविधान विरोधी जो भी कोई कानून या नीति पास की जाएगी सर्वोच्च न्यायालय उसे पूरे देश के स्तर पर गैरकानूनी और संविधान विरोधी घोषित कर सकता है। पिछले कई केसों में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा करके भारत के संविधान के बुनियादी सिद्धांतों और कानून के शासन की रक्षा की है। उसके ये फैसले स्वागत योग हैं। इन पर मनमाने रूप से कोई उंगली नहीं उठाई जा सकती।

यह भी अचंभित करने वाली बात है की भारत की न्यायपालिका पर हमला करने वाले इन दोनों लोगों के खिलाफ भारत की राष्ट्रपति, भारत के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री चुप हैं। इसका आखिर क्या कारण है? यह चुप्पी क्यों? इनके खिलाफ अभी तक कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की की गई? इन्हें अभी तक इनकी सदस्यता से निलंबित क्यों नहीं किया गया? इनके खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं की गई? यह एक सोची समझी चाल है कि दिखाने के लिए विरोध करते रहो, मगर असल में इन दोषी लोगों के खिलाफ कोई प्रभावी कार्यवाही मत करो। इन परिस्थितियों में यह जरूरी हो गया है कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय इन इन दोषियों के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर त्वरित और जरूरी कार्रवाई करें। इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश पारित करे और सरकार को इन की सदस्यता खत्म करने की तत्काल सिफारिश करे। जब तक ऐसे लोगों के खिलाफ तुरंत और प्रभावी कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक इस तरह के बयान दिए जाते रहेंगे और न्यायपालिका और सच्चाई से काम करने वाले लोगों को डराया धमकाया जाता रहेगा।

यह हकीकत भी बार-बार सामने आ रही है कि मनुवादी ओहदेदारों के लिए संविधान, कानून के शासन, निष्पक्षता, आजादी और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के कोई मायने नहीं हैं। इस विचारधारा के लोगों द्वारा इन सब का जानबूझ कर निरादर किया जा रहा है। जबकि भारत का संविधान कहता है कि हमारे देश में कोई भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, राजपाल, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक, मंत्री या अन्य कोई भी आदमी, संविधान और कानून से बड़ा नहीं है। सबको संविधान और कानून के शासन के हिसाब से काम करना पड़ेगा। यहां किसी की मनमानी नहीं चलेगी।

अब भारत के समस्त संविधान समर्थकों और जनतंत्र को फासीवादी हमलों से बचाने के लिए, समस्त दलों और जनता की अहम जिम्मेदारी है कि वे सब मिलकर न्यायपालिका की आजादी और निष्पक्षता पर हो रहे इन तानाशाहीपूर्ण और मनमाने हमलों के खिलाफ एकजुट हों और संविधान और भारत की न्यायपालिका की आजादी पर और मुख्य रूप से भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और दूसरे जजों पर हो रहे हमलों का माकूल जवाब दें और मृदुल कर भारत के संविधान कानून के शासन और न्यायपालिका की आजादी की रक्षा करें।

लेखक – मुनेश त्यागी