- पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को तीन सीटें देने पर ममता बनर्जी राजी!
आलोक वर्मा
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हारने के बाद अब कांग्रेस के तेवर ढीले पड़ गए हैं। कांग्रेस को समझ में आ गया है कि अगर उसे आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबले में रखना है तो क्षेत्रीय दलों से समझौता करना ही पड़ेगा। खबर आ रही है कि कांग्रेस ने आगामी लोकसभा चुनावों में सीट शेयरिंग के लिए इंडिया गठबंधन के दलों के साथ बगैर देरी किए बातचीत शुरू कर दी है।
गौरतलब है कि हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय दलों की कोशिशों के बावजूद कांग्रेस ने किसी भी तरह के समझौते से इनकार कर दिया था। हिंदी भाषी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में दूसरे दल कांग्रेस से गठबंधन की कोशिश करते रहे लेकिन समझौता हो नहीं सका। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के राज्य के क्षत्रपों ने समझौता नहीं होने दिया।
मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेताओं को कई घंटे बैठाने के बावजूद कमलनाथ ने बातचीत से इनकार कर दिया था। उनके इस रवैये से नाराज समाजवादी पार्टी के मुखिया और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई तो कमलनाथ ने उनके लिए अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया। इसके बाद पूरे चुनाव में दोनों दलों के नेता एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते रहे। उसका असर चुनाव परिणामों पर पड़ा और कांग्रेस बुरी तरह हार गई। अगर दोनों दलों में समझौता हो गया होता तो परिणाम अलग हो सकता था क्योंकि कांग्रेस के प्रत्याशी कई जगह बहुत कम वोटों के अंतर से हारे और समाजवादी पार्टी का वोट प्रतिशत भी घटकर एक फीसदी से कम पर आ गया।
इसी तरह राजस्थान में कांग्रेस से माकपा, चंद्रशेखर आजाद रावण की पार्टी समझौता करना चाहती थी। माकपा का राजस्थान के कुछ इलाकों में असर है और पिछले विधानसभा चुनावों में एक से अधिक विधायक चुन कर आते रहे हैं।
इसी तरह चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी और हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के बीच समझौता हुआ। एएसपी ने सात और आरएलपी ने 72 उम्मीदवार उतारे। लेकिन इनमें से केवल एक सीट ही जीत सके और हनुमान बेनीवाल खींवसर से विधायक चुने गए। इस तरह राजस्थान में भी भाजपा विरोधी वोटों को बंटवारा हो गया और भाजपा ने बहुमत हासिल कर लिया। बताया जाता है कि राजस्थान में अशोक गहलोत ने किसी दल से समझौता नहीं होने दिया।
खबर आ रही है कि इन गल्तियों से सबक लेते हुए कांग्रेस ने क्षेत्रीय दलों से आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बातचीत शुरू कर दी है। बांग्ला अखबार आनंद बाजार पत्रिका के आनलाइन रिपोर्टर के मुताबिक कांग्रेस नेता राहुल गांधी और ममता बनर्जी के बीच बातचीत हुई है।
सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि दोनों दलों में सीटों को लेकर सहमति भी बन गई है। पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं और कहा जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी कांग्रेस को तीन सीटें देने के लिए करीब-करीब राजी हो गई है। देने के लिए राजी हो गई हैं। यह तीन सीटों में बहरामपुर, मालदा दक्षिण और रायगंज शामिल हैं। बहरामपुर से लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी सांसद हैं, मालदा दक्षिण से अबु हासेम खान चौधरी और रायगंज से दीपा दास मुंशी सांसद रह चुकी हैं। मालदा दक्षिण और रायगंज को भी कांग्रेस की ही सीट माना जाता रहा है। इसलिए इस समझौते में कोई अड़चन आने की संभावना नहीं है। हो सकता है कांग्रेस एकाध सीट और मांगे लेकिन उस पर सहमति बनने की संभावना बहुत क्षीण है।
इंडिया गठबंधन का एक प्रमुख दल माकपा का भी पश्चिम बंगाल में असर है। माकपा पश्चिम बंगाल में लगातार 34 साल शासन कर चुकी है। वहां 1977 से लेकर 2011 तक वाम दलों का शासन रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और माकपा मिलकर लड़े थे। आगामी लोकसभा चुनाव में भी दोनों दलों के मिलकर चुनाव लड़ने की चर्चा चल रही थी। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि माकपा नवंबर माह में कांग्रेस के साथ समझौता वार्ता करना चाह रही थी लेकिन इसी बीच माकपा के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने बहरामपुर जाकर अधीर की कड़ी आलोचना की जिसके चलते दोनों के बीच बातचीत नहीं हो पाई। वैसे ही माना जाता है कि टीएमसी के साथ माकपा का समझौता होना मुश्किल है, क्योंकि दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं।
कहा जाता है कि इसी के चलते जब टीएमसी कार्यकर्ताओं के अत्याचार का मुकाबला माकपा के नेता नहीं कर पाये तो उसके मतदाता बीजेपी के साथ जुड़ गए और इस तरह पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी के पश्चिम बंगाल से 18 सांसद चुने गए जबकि लोकसभा ही नहीं विधानसभा चुनावों में भी माकपा का सूपड़ा साफ हो गया। उसका असर यह है कि अभी तक माकपा के परंपरागत मतदाता वापस पार्टी से नहीं जुड़ पाए हैं। इस तरह अगर टीएमसी और कांग्रेस पश्चिम बंगाल में मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो माकपा समेत वामफ्रंट अलग मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ेगा और उसका फायदा बीजेपी को होगा।