गहरे आक्रोश के साहित्य लेखन पर ‘चिंता’

गहरे आक्रोश के साहित्य लेखन पर ‘चिंता’

आलोक वर्मा

28 दिसंबर को चंडीगढ़ प्रेस क्लब में  आयोजित एक पुस्तक विमोचन समारोह में केंद्रीय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने शिकायती स्वर में कहा कि वर्तमान में देश में तीखे आक्रोश की कविताएं लिखी जा रही हैं। संदर्भ था जारी की जा रही पुस्तक में प्रेम कविताओं का। कौशिक जी ने कवि राजेंद्र धवन को बधाई देते हुए कहा कि पूरे देश में (हर भाषा में ) गहरे आक्रोश की कविताएं लिखी जा रही हैं। आप प्रेम की कविताएं लिख रहे हैं, यह एक अलग धारा है, लीक से हटकर लिखना है, इसे छोड़िएगा नहीं।

माधव कौशिक केंद्रीय साहित्य अकादमी का अध्यक्ष होने के नाते देशभर में घूमते हैं, विभिन्न भाषाओं के आयोजन करते हैं। इन आयोजनों में लेखक, साहित्यकार मिलते हैं।  हिंदी से लेकर अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य से भी वह रूबरू होते हैं। उनकी बात सही होने में कोई संदेह नहीं है। लेकिन जिस चिंता के भाव से उन्होंने शिकायती लहजे में कहा कि गहरे आक्रोश की कविताएं (इसे साहित्य पढ़ें) लिखी जा रही हैं, इसके कारण नहीं बताए।

मीडिया में रोजाना कहीं न कहीं से विद्वेषपूर्ण घटनाओं से भरी खबरें आती रहती हैं। उसमें भी कार्रवाई में पक्षपातपूर्ण आचरण साफ दिखाई पड़ता है।  रचनाकार समय और समाज से प्रभावित होता है ।  वही रचता है जो देखता या महसूस करता है। फिर आक्रोश व्यक्त होना गैरजरूरी कैसे है। समाज की बेहतरी के लिए हमेशा साहित्य में आक्रोश स्थायी भाव रहा है, यह नई बात नहीं है । फिर सवाल यह उठता है कि अगर गहरे आक्रोश की कविताएं लिखी जा रही हैं तो क्यों? प्रेम की कविताएं नहीं लिखी जा रही हैं तो क्यों नहीं लिखी जा रहीं हैं?
इस पर मंथन होना चाहिए कि देश के हालात कैसे हैं? साहित्यकारों के लेखन में आक्रोश बनावटी है, थोपा हुआ है  या समय से प्रभावित। विद्वेष के वातावरण में साहित्यकार से किस तरह की रचना की अपेक्षा की जा सकती है?

विरोध के स्वर दबाने के लिए सरकारी संस्थाओं पर क्या दबाव नहीं काम कर रहा है? जो संस्थाएं, शिक्षा संस्थान अब तक विद्वानों को बुलाकर सेमिनार कर लेती थीं, उन्होंने भय वश बंद कर दिया है। अगर कहीं से किसी ने ऐसा आयोजन कर भी लिया तो एक वर्ग विशेष के लोग किसी न किसी बहाने उसे रद्द करवाने में कामयाब हो जाते हैं? पश्चिम बंगाल में अकादमियों के दो कार्यक्रम स्थगित करने को मजबूर होना पड़ा है।

केंद्रीय अकादमी के कार्यक्रमों को लेकर विवाद हो चुका है। आईआईटी मुंबई, टाटा इंस्टीट्यूट को क्यों आयोजन रद करने पड़े हैं? कई विश्वविद्यालयों ने अपने आयोजन रद्द कर दिए हैं। विदेशी मेहमानों को एयरपोर्ट से क्यों लौटना पड़ा है? अभी हाल ही में केंद्रीय साहित्य अकादमी ने भी अंतिम समय में पुरस्कारों की घोषणा स्थगित कर दी है, क्यों कर दी, यह अकादमी के कर्ता-धर्ता ही बता सकते हैं। अब तक उनकी कोई सफाई नहीं आई है।

क्या यह सब आक्रोशित होने के कारण नहीं हैं? देश भर में क्या सुख शांति का माहौल है? क्या ऐसे ही माहौल में प्रेम-गीत रचे जा सकते हैं? हालांकि हम सबकी सदिच्छा है कि प्रेम-गीत लिखे जाएं!

इन  प्रश्नों के उत्तर विद्वतजनों को तलाशने होंगे। माधव कौशिक ने जो बात कही है उस पर मंथन होना चाहिए।

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