कार्ल सैंडबर्ग अमेरिका के एक महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें हम जनवादी कवि कह सकते हैं। सैंडबर्ग ने शिकागो के बारे में यह कविता 1914 में लिखी थी। शिकागो की स्थापना 1833 में एक शहर के रूप में हुई थी, इसलिए इस शहर को बने हुए लगभग 70 हुए थे। यह दुनिया के कई अन्य महान शहरों, जैसे लंदन, पेरिस और टोक्यो की तुलना में काफी युवा था। यही कारण है कि सैंडबर्ग ने शिकागो को एक युवा व्यक्ति के रूप में वर्णित किया है।
शिकागो की इस रूपक तुलना का उपयोग करके, सैंडबर्ग दिखा सकते हैं कि कैसे शिकागो एक अपरिपक्व युवा के समान कई गुण हैं: दोनों जीवंत और सक्रिय हैं, लेकिन दोनों में कई खामियां भी हैं। हालाँकि, सैंडबर्ग अपने पाठकों को यह बताना चाहते हैं कि उन खामियों के बावजूद, शिकागो जिस तरह से विकास कर रहा है, उसमें प्रशंसा करने लायक बहुत कुछ है।
शिकागो (Chicago)
कार्ल सैंडबर्ग
दुनिया के वास्ते सूअर गोश्त क़साई
औजार बनाने वाला लुहार, गेहूं ढोने वाला काश्तकार,
रेलमार्ग संचालक, राष्ट्र का माल ढोने वाला मज़दूर
जोशीला, प्रचण्ड, झगड़ालू,
चौड़े कंधों का शहर:
वो कहते हैं: तुम दुष्ट हो और मैं उन पर यकीन कर लेता हूं,
क्योंकि मैंने देखा है गैस लैंपों के नीचे
तुम्हारी सजी-धजी कामुक औरतों को
नादान लड़कों को फुसलाते ।
और वो कहते हैं मुझे कि तुम घाघ हो
और मैं कहता हूं: हाँ, यह सच है
क्योंक्ति मैंने देखा है हत्यारे को हत्या करते हुए
और उसे छूटते हुए फिर से हत्या करने के लिए।
और वो कहते हैं मुझे कि तुम ज़ालिम हो
और मैं भी कहता हूँ: हाँ मैंने देखें हैं
स्त्रियों और बच्चों के चेहरे पर
ख़ौफ़नाक भुखमरी के निशान।
और ऐसा जवाब देकर
मैं एक बार फिर मुड़ता हूँ उन लोगों की तरफ
जो मेरे शहर की उड़ाते हैं खिल्ली
और मैं भी उन्हीं के अंदाज़ में मज़ाक उड़ाते हुए कहता हूँ:
आओ दिखाओ मुझे भी कोई और ऐसा शहर
जो सिर उठाकर गाता हो गर्व से
अपने जीवंत, बेलगाम, मजबूत और शातिर होने का नग्मा।
मुख्तलिफ़ काम के बोझ में दबा
दिनभर भागदौड़ करते हुए
फँस जाता है और भी भयानक मुसीबतों में
फिर भी खड़ा है सशक्त खिलाड़ी-सा
छोटे सुस्त-धीमे शहरों के सामने।
भयानक कुत्ते की तरह लपलपाती जीभ
वहशी जानवर सा खड़ा है
बयाबान के खिलाफ़ संघर्ष करने के लिए
खुले सिर
बेलता चलाते हुए
तोड़फोड करते हुए
ख़ाका बनाते हुए
निर्माण, विध्वंस, पुननिर्माण
धुंए से घिरा, धूल से लथपथ चेहरा
बदनसीबी के भयानक बोझ में दबा
खिलखिलाकर हँसता है
जैसे कोई युवा हँसता हो अपनी बत्तीसी दिखाते हुए
वो भी हँसता है ऐसी हँसी
जैसे कोई अनजान योद्धा जिसने कभी कोई युद्ध न हारा हो
गुमान करता है और हँसता है
कि उसकी बाजु में अभी भी जान है
और उसके सीने में धड़कता है दिल अपने लोगों के लिए।
खिलखिलाकर हँसता
ठहाका लगाकर हँसता है बेधड़क, ककर्श युवा हँसी,
नंग-धड़ंग, पसीने से तर-बदर, गर्व करते हुए
कि वो सूअर गोश्त क़साई, औजार बनाने वाला लुहार, गेहूं ढोने वाला काश्तकार,
रेलमार्ग का संचालक और राष्ट्रीय माल ढुलाई मज़दूर है।
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पढ़ें मूल कविता …
Chicago
BY CARL SANDBURG
Hog Butcher for the World,
Tool Maker, Stacker of Wheat,
Player with Railroads and the Nation’s Freight Handler;
Stormy, husky, brawling,
City of the Big Shoulders:
They tell me you are wicked and I believe them, for I have seen your painted women under the gas lamps luring the farm boys.
And they tell me you are crooked and I answer: Yes, it is true I have seen the gunman kill and go free to kill again.
And they tell me you are brutal and my reply is: On the faces of women and children I have seen the marks of wanton hunger.
And having answered so I turn once more to those who sneer at this my city, and I give them back the sneer and say to them:
Come and show me another city with lifted head singing so proud to be alive and coarse and strong and cunning.
Flinging magnetic curses amid the toil of piling job on job, here is a tall bold slugger set vivid against the little soft cities;
Fierce as a dog with tongue lapping for action, cunning as a savage pitted against the wilderness,
Bareheaded,
Shoveling,
Wrecking,
Planning,
Building, breaking, rebuilding,
Under the smoke, dust all over his mouth, laughing with white teeth,
Under the terrible burden of destiny laughing as a young man laughs,
Laughing even as an ignorant fighter laughs who has never lost a battle,
Bragging and laughing that under his wrist is the pulse, and under his ribs the heart of the people,
Laughing!
Laughing the stormy, husky, brawling laughter of Youth, half-naked, sweating, proud to be Hog Butcher, Tool Maker, Stacker of Wheat, Player with Railroads and Freight Handler to the Nation.
ऑस्टरलिट्ज़: एक गांव, जिसका नाम अब स्लावकोव है, जहां 2 दिसंबर, 1805 को
नेपोलियन ने ऑस्ट्रियाई और रूसी सेनाओं पर जीत हासिल करने के लिए एक फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व किया था।
वाटरलू: ऑस्ट्रिया, ग्रेट ब्रिटेन, प्रशिया और रूस सहित यूरोपीय गठबंधन द्वारा 18 जून, 1815 को बेल्जियम के इस शहर के पास नेपोलियन की अंतिम हार हुई।
गेटिसबर्ग: 1-3 जुलाई, 1863 को इस पेंसिल्वेनिया शहर के पास अमेरिकी गृहयुद्ध में संघ सेना द्वारा एक निर्णायक जीत हासिल की गई थी।
Ypres: बेल्जियम का एक शहर जहां प्रथम विश्व युद्ध (1914, 1915 और 1917) में तीन लड़ाइयाँ लड़ी गईं थीं। ) जिसके परिणामस्वरूप 600,000 से अधिक लोग हताहत हुए
वेडर्न: 1916 के अधिकांश समय के दौरान मित्र देशों और जर्मन सेनाओं ने इस फ्रांसीसी शहर और महल पर लड़ाई लड़ी, लगभग 700,000 हताहतों के साथ लड़ाई अनिर्णायक रूप से समाप्त हुई।
घास
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ऑस्टरलिट्ज़ मिटा दो और वाटरलू में लगा दो शवों का ढेर
उनके नीचे चला दो फावड़ा और मेरी हरियाली अपना काम करेगी –
मैं घास हूँ; मैं हर जगह उग आऊंगा।
और गेटीसबर्ग को कर दो नेस्तनाबूद
और ईप्रा को मिटा दो और वेडर्न को कर दो राख
उनके नीचे फावड़ा चला दो फावड़ा
और मैं उग आऊंगा
दो साल, दस साल बाद फिर यात्री किसी कंडक्टर से पूछेगा यह कौन-सी जगह है।
मुझे उतार देना जहाँ हरे घास का जंगल है।
मैं घास हूँ; मैं हर जगह उग आऊंगा।
अवतार सिंह पाश द्वारा रचित कविता: घास, जिसका उन्होंने कार्ल सैंडबर्ग की कविता का भारतीयकरण किया और शहरों के नाम भी उन्होंने पंजाब के गांवों के नाम लिख दिए।
मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा
बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर
बना दो होस्टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मेरा क्या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊँगा
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी…
दो साल… दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है
मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूँगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा
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अनुवाद: दीपक वोहरा
अनुवादक दीपक वोहरा पेशे से शिक्षक हैं। हिंदी में कविताएं लिखते हैं। देशी-विदेशी भाषाओं की कविताएं पढ़ने और अनुवाद करने का शौक है। अब तक कई विदेशी कवियों की कविताओं का अंग्रेजी से हिंदी में रूपांतरण कर चुके हैं। वह जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, हरियाणा लेखक मंच, डॉक्टर ग्रेवाल अध्ययन संस्थान से जुड़े हुए हैं। इसके साथ ही महात्मा ज्योतिबा फुले पुस्तकालय करनाल के संचालन मंडल से भी जुड़े हैं।