आशा शर्मा –  कर्मचारी  आंदोलन में महिलाओं की सशक्त प्रतिनिधि

प्रतिबिम्ब मीडिया हरियाणा के कर्मचारी नेताओं पर संस्मरण प्रकाशित कर रहा है। ये समाज के वे प्रतिनिधि हैं जिन्होंने सरकारों से लोहा लेकर न सिर्फ कर्मचारियों बल्कि आम आदमी के बेहतर जीवन के लिए संघर्ष किया। वरिष्ठ साहित्यकार और हरियाणा की गतिविधियों पर नजर रखने वाले ओम सिंह अशफ़ाक ने चर्चा के दौरान बताया कि  राज्य में कर्मचारी आंदोलन की एक मजबूत परंपरा रही है। चूंकि पिछले कुछ समय से आंदोलन और आंदोलनकारियों की छवि को एक नैरेटिव के तहत मलिन करने की सोची समझी साजिश चल रही है। आज का युवा अपनी एक सशक्त विरासत से लगभग अनजान है और आंदोलन और आंदोलनकारियों को लेकर उसके भीतर एक अलग धारणा बैठा दी गई है। कर्मचारी यूनियन में सक्रिय रहे सत्यपाल सिवाच ने अपनी यादों के झरोखों से इनके जीवन और संघर्ष के कुछ हिस्से दुनिया के सामने लाने की कोशिश की है। प्रतिबिम्ब मीडिया उनके संस्मरण  को क्रमबद्ध रूप से प्रकाशित करेगा। हम उनके प्रति आभारी तो हैं ही साथ ही  ओम सिंह अशफ़ाक के भी आभारी हैं जिन्होंने हमारे एक निवेदन पर इनके संयोजन का जिम्मा संभाल लिया। -संपादक

हरियाणा: जूझते जुझारू लोग – 5

आशा शर्मा –  कर्मचारी  आंदोलन में महिलाओं की सशक्त प्रतिनिधि

सत्यपाल सिवाच

  पलवल के एक किसान परिवार में श्री प्यारेलाल शर्मा व श्रीमती रूपवती के यहाँ 15 अप्रैल 1955 को जन्मीं आशा शर्मा नारी सशक्तिकरण आंदोलन में हरियाणा का एक जाना पहचाना नाम है, उन्होंने कर्मचारी यूनियनों में महिलाओं की सशक्त प्रतिनिधि के तौर पर  अपना  सिक्का जमाया। चार भाई-बहनों में वे सबसे छोटी हैं। उन्होंने 10+2 तक शिक्षा प्राप्त करने का बादशाह खान अस्पताल फरीदाबाद से ए.एन. एम. का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद वे 7 अप्रैल 1978 को ए.एन.एम. पद पर सरकारी सेवा में आ गईं। 35 साल की नौकरी के बाद 30 अप्रैल 2013 को वह हेल्थ सुपरवाइजर पद से सेवानिवृत्त हुईं। आशा के पति सम्पूर्णानन्द मिश्रा वाकई सही मायनों में जीवन साथी हैं। कदम- कदम पर मजबूती से साथ खड़े रहने का ही परिणाम कहा जा सकता है कि आशा को कभी जोखिम उठाने में संकोच नहीं रहा। उनकी एक बेटी है।

आशा शर्मा  ने ब्लॉक खेड़ीकला की प्रधान से यूनियन में काम शुरू किया और जिला, राज्य और देश स्तर के नेता के रूप में शिखर तक पहुंचीं। उनकी सक्रियता को देखकर जल्दी ही जिला फरीदाबाद की प्रधान बना दिया गया। इसके बाद वे राज्य की वरिष्ठ उप प्रधान और  राज्य प्रधान निर्वाचित हुईं। राज्य प्रधान रहते हुए अखिल भारतीय स्वास्थ्य कर्मचारी संघ का संयोजक बनाया गया, जिसका सम्मेलन मैगपाई टूरिस्ट  कम्प्लेक्स फरीदाबाद में हुआ था। वे सर्व कर्मचारी संघ में भी अग्रिम पंक्ति में रहीं। इसी को ध्यान में रखते उन्हें सन् 1995 में पहली बार सहसचिव चुन लिया गया और उसके बाद सन् 1997, 1999, 2001, 2005 और 2010  सेवानिवृत्त होने  यानी 2013 तक उपाध्यक्ष रहीं। सर्वकर्मचारी संघ के राज्य नेतृत्व में और भी महिलाएं रही हैं।

एक धरने के दौरान कर्मचारियों के हक की आवाज बुलंद करतीं आशा शर्मा। फाइल फोटो

ऐसे अनेक जन आंदोलन एवं कर्मचारियों के आंदोलन हैं जिन्हें आशा शर्मा ने तार्किक परिणति पर पहुँचाने में अहम् भूमिका निभाई। देश को टोलमुक्त कराने के लिए उन्होंने “टोल‌ हटाओ देश बचाओ  आंदोलन चलाया” जिसे व्यापक जन समर्थन मिला। जन आंदोलनों में भागीदारी करते हुए उन्होंने 8 बार जेल काटी एवं लाठीचार्ज, सर्दियों में पानी की बौछार, आंसू गैस जैसे उत्पीड़न झेले। इन आंदोलनों में महिलाओं से संबंधित संगठन जैसे आशा वर्कर, आँगनवाडी वर्कर, स्टाफ नर्स, मिड डे मील वर्कर, शिक्षक आंदोलन, रोडवेज वर्कर्स आंदोलन, बहुद्देशीय स्वास्थ्य कर्मचारी संगठन, किसान आंदोलन, बैंक स्टाफ आंदोलन, औद्योगिक वर्कर्स आंदोलन प्रमुख हैं। फरीदाबाद के चंदावली में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ चले लंबे आंदोलन में आशा शर्मा ने अपनी सशक्त भागीदारी दी।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने सोहना में स्वास्थ्य कर्मियों का राज्य सम्मेलन आयोजित करवाया। यूनियन में विमर्श के उपरांत आशा शर्मा ने कर्मचारियों के पक्ष को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने सरकार के ही मंच पर सरकार की कमियां गिनाईं और केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज को उनकी मांगों और मुद्दों के औचित्य को स्वीकार करना पड़ा। आशा शर्मा प्रशासन, सरकार और संगठन – सभी जगह अपनी बात बिना लाग लपेट कहने का साहस रखती हैं। वे केवल बातों या भाषणों के बल पर नेता नहीं रही, बल्कि सीमा पर लड़ने वाले जवान की मुद्रा में रही हैं। उन्होंने एमपीएचडब्ल्यू एसोसिएशन के अलावा स्वास्थ्य विभाग के समस्त कर्मचारियों को भी आन्दोलन की मुख्य धारा में जोड़ने में बेहतरीन काम किया है।

वे स्वभाव से जुझारू, बेबाक और साहसी हैं। इसीलिए वे बहुत बार पुलिस लाठीचार्ज का भी शिकार हुई। नर्सिंग आन्दोलन के दौरान 10 जुलाई 1998 को जनपथ दिल्ली में गाड़ी पर चढ़कर दमन पर उतारू पुलिस को उनकी ललकार आज भी लोगों की स्मृति में है। उन्हें सेक्शन 7 में चार्जशीट मिली ; 18 बार अलग-अलग ज़िलों में इन्क्वायरी, चार बार ट्रांसफर, दो बार निलंबन, 8 बार गिरफ्तारी आदि अनेक प्रकार के उत्पीड़न का सामना किया। सन् 1996-97 के पालिका आन्दोलन में वे लम्बे समय तक जेल में रहीं। वे फरीदाबाद में निजी स्कूलों की फीस की लूट के खिलाफ चले आन्दोलन में भी सक्रिय रहीं।

70 साल की आयु में भी न्याय के लिए संघर्ष के प्रति उनका जज्बा कायम है। वे फरीदाबाद व दूसरे इलाकों में रिटायर्ड कर्मचारियों को लामबंद करने के लिए सक्रिय हैं। जब मैंने उनसे बात की तो पता चला कि स्वास्थ्य विभाग में अपनी यूनियन की ताकत को फिर से संगठित करने के लिए नये साथियों की मदद करने में समय लगा रही हैं। महिलाओं के लिए बराबरी के अधिकारों को लेकर वे काफी जागरूक रही हैं और जहाँ भी मौका मिलता है जरूर हस्तक्षेप करती हैं।

लेखक- सत्यपाल सिवाच

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