अहमदाबाद विमान दुर्घटना: गीता बच गई, इंसान क्यों नहीं?
धर्मेन्द्र आज़ाद
12 जून 2025 को एयर इंडिया की फ्लाइट AI‑171 अहमदाबाद एयरपोर्ट से उड़ान भरते ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई। बोइंग 787-8 विमान टेकऑफ़ के तुरंत बाद ही एक मेडिकल कॉलेज हॉस्टल की इमारत पर जा गिरा। इस दर्दनाक हादसे में कुल 274 लोग मारे गए — जिनमें 241 विमान यात्री और चालक दल के सदस्य, और 33 ज़मीनी लोग शामिल थे। यह त्रासदी आज़ाद भारत के इतिहास की सबसे भयावह हवाई दुर्घटनाओं में से एक बन गई।
लेकिन क्या हो रहा है? टीवी चैनलों, सोशल मीडिया और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में बहस इस पर नहीं है कि इतने लोग क्यों मरे, कैसे मरे, और सरकार की ज़िम्मेदारी क्या है… बल्कि चर्चा इस बात पर हो रही है कि “एक गीता की किताब बच गई — ये चमत्कार है!”
सवाल यह बनता है कि अगर वहाँ सच में कोई चमत्कारी शक्ति मौजूद थी, तो उसने 274 जानें क्यों नहीं बचाईं? क्या मरे हुए सारे लोग पापी थे? क्या उनका जीवन कोई मूल्य नहीं रखता था? अगर गीता की एक किताब बची और उसे चमत्कार मान लिया जाए, तो फिर इंसानों की मौत को उस चमत्कारी शक्ति की विफलता क्यों न माना जाए?
असलियत यह है, वह गीता की किताब विमान में नहीं थी। वह तो हॉस्टल के एक कमरे में रखी थी। जिस हिस्से में विमान टकराया, वहाँ आग की सीधी पहुँच नहीं हुई, वहाँ पहुँचा धुएँ का गहरा गुबार जिसने वहाँ के ऑक्सीजन की जगह ले ली, किसी भी वस्तु को जलने के लिये ऑक्सीजन चाहिये होती है, वैसे भी बंद किताब के अंदर ऑक्सीजन नहीं पहुँचती — इसलिए उसका जलना कठिन होता है। हॉस्टल में कई अन्य किताबें भी सुरक्षित रहीं, जिनमें विज्ञान की किताबें भी थीं, लेकिन उन्हें अनदेखा किया जा रहा है। ना यह कोई चमत्कार है, ना देवी कृपा — यह है फिजिक्स (भौतिकी), यह है विज्ञान।
वहीं इंसान सांस लेते हैं। दुर्घटना के बाद कई छात्र ज़िंदा थे, लेकिन गर्मी, धुआँ और ऑक्सीजन की कमी ने उनकी जान ले ली। धुएँ के गुबार के कारण ऑक्सीजन की वही कमी जिसने गीता और अन्य निर्जीव वस्तुओं को जलने से रोका, वही हॉस्टल के अधिकांश लोगों की मौत का कारण बन गई। कई शव पूरी तरह नहीं जले, लेकिन दम घुटने से मौत हो गई। तो क्या गीता को “चमत्कारी” कहने वालों को यह फर्क समझ में नहीं आता कि किताब को सांस नहीं चाहिए — लेकिन इंसान को चाहिए, और उसी सांस की कमी से वे मरे?
और उन बाबाओं से भी सवाल पूछना चाहिए जो पर्ची निकालकर, ग्रह-नक्षत्र देखकर देश-दुनिया के भविष्य की भविष्यवाणी करने का दावा करते हैं। जब लोग मर रहे थे, तब वे कहाँ थे? कहाँ थी उनकी “तीसरी दिव्य आँख”? किस समाधि में लीन थे, कि 274 लोगों की मौत उन्हें दिखाई नहीं दी?
अगर उन्हें सब कुछ पहले से पता होता है, तो उन्होंने चेतावनी क्यों नहीं दी?
या तो वे झूठे हैं, या फिर उन्हें फर्क ही नहीं पड़ता कि आम जनता मरे या बचे।
उनका असली “धंधा” तो बस चमत्कार बेचने और भावनाओं से खेलने का है।
अब बात करते हैं असली गुनहगारों की — सरकार और उड्डयन मंत्रालय की।
हर बार हादसे के बाद वही घिसा-पिटा बयान आता है: “जांच की जाएगी।” अन्य सरकारों के समय हुए हादसों पर इस्तीफ़ा माँगने वाले गृहमन्त्री अमित शाह बोले हैं कि यह दुर्घटना थी और दुर्घटनाओं को रोका नहीं जा सकता। कितना शर्मनाक बयान है!
जबकि इस विमान के मेंटेनेंस रिकॉर्ड को लेकर पहले से कई संदेह थे। उड्डयन मंत्रालय और डीजीसीए (नागर विमानन महानिदेशालय) की निगरानी में ढिलाई की बातें अंदरखाने पहले से चल रही थीं। और सबसे बड़ी बात — एयर इंडिया को निजी हाथों में सौंपने के बाद, क्या अब सुरक्षा और निगरानी सिर्फ मुनाफे की तराजू में तोली जा रही है?
सरकार ने एयर इंडिया को बेचते समय वादा किया था कि सुरक्षा में कोई समझौता नहीं होगा। तो फिर सवाल यह है कि इस विमान में इतनी बड़ी तकनीकी गड़बड़ी कैसे आई?
क्या प्रिवेंटिव मेंटेनेंस (निवारक रख-रखाव) चेक में समझौता किया गया? क्या विमान अपनी क्षमता से अधिक वजन ले जा रहा था, जैसा कि कई विशेषज्ञों ने इशारा किया है?
अगर हाँ, तो इतनी बुनियादी बातों को क्यों नजरअंदाज किया गया? क्या केवल अधिक मुनाफा कमाने के लिए लोगों की जान को दांव पर लगा दिया गया?
ये सवाल सिर्फ सरकार से नहीं, पूरे पूंजीवादी सिस्टम से हैं — जो मुनाफा कमाने के नाम पर आम जनता की जान को जोखिम में डाल देता है।
नागरिकों को अब अपना विवेक जगाना चाहिए — सवाल पूछने चाहिये। क्योंकि अगर हम सवाल नहीं पूछेंगे, तो ऐसे हादसे बार-बार होते रहेंगे — अगर किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जायेगा, बस वही घिसा पिटा बयान आयेगा कि होनी को कोई नहीं टाल सकता है, यह तो विधि का विधान है’, तो यह स्थिति और भी बद से बदतर होती जायेगी। फेसबुक वॉल से साभार