पुरस्कार स्वीकृति रचनाकार का सत्ता अनुकूलन है!
– मंजुल भारद्वाज
किसी भी पुरस्कृत लेखक को पढ़ना सत्ता के षड्यंत्र में फंसना है। सत्ता उसे ही पुरस्कृत करती है जो उसकी व्यवस्था का मोहरा है,पोषक है,पैरोकार है।
पुरस्कार दअरसल किसी भी रचनाकार को पूर्वग्रहों से भर देता है। पुरस्कार लेखक की रचनाओं की समय से पहले हत्या कर देता है।
हां, पुरस्कार से सत्ता का नाम रोशन होता है। प्रकाशकों का मुनाफा होता है। कई उत्साहित पुरस्कृत लेखक की किताबें अपनी अलमारियों में सजा कर गौरवान्वित हो जाते हैं।
दरअसल पुरस्कार किसी भी रचनाकार का सत्ता अनुकूलन है। सत्ता अनुकूलन रचनाकार की हत्या है। जब तक रचनाकार सत्ता से अलग सत्य को रचता है तब तक वो जीवित है।
जैसे ही सत्ता उसके सत्य की बोली लगाती है रचनाकार संदिग्ध हो जाता है। उसकी रचनाएं प्रसार पाती हैं पर असर खो देती हैं!
सत्य और सत्ता एक साथ नहीं चलते ! चाहे भले ही सत्ता सूत्र ‘सत्यमेव जयते हो ‘ !