एक त्रिकोणीय प्रेमकथा

एक त्रिकोणीय प्रेमकथा

विजय शंकर पांडेय

 

खबरें पहले आती थीं, अब बिकती हैं।

जो ज़रूरी है, वो साइलेंट है।

जो ब्रांडेड है, वो ब्रेकिंग है।

“जनता जानना चाहती है” अब एक स्क्रिप्ट है।

रिपोर्टर बोले – “आपके घर में क्या चल रहा है?”

क्यों?

क्योंकि स्पॉन्सर पूछ रहा है।

एंकर अब पत्रकार नहीं, सेल्समैन हैं।

“ये देखिए… एक हादसा,

मगर पहले देखें, ये शानदार टूथपेस्ट।”

बाढ़ आई?

पहले ड्रोन शॉट,

फिर हेलीकॉप्टर से राहत

और फिर प्राइमटाइम पर डिबेट।

साउंड इफेक्ट्स ऐसे

कि लगे, न्यूज़ नहीं, वेब सीरीज़ चल रही है।

हर चैनल की अपनी सच्चाई है।

टीआरपी के थर्मामीटर से तय होती है नैतिकता।

अब खबरों में सिर्फ दो चीज़ें पक्की होती हैं —

एक, विज्ञापन।

दूसरा, “हमारे सूत्रों के हवाले से…।”

और हम?

हम दर्शक नहीं, टार्गेट ऑडियंस हैं।

हमारा दुख – उनका प्रोडक्ट।

हमारी बेचैनी – उनका बम्पर ब्रेक।

सवाल पूछो, तो स्क्रीन ब्लर।

सच देखो, तो ऐड आ जाता है।

खबरें कम हैं,

कंटेंट प्लान ज़्यादा है।

क्योंकि अब न्यूज़रूम नहीं,

ब्रैंड रूम की धूम है