मनुस्मृति के मानव विरोधी स्वरूप पर एक नजर

मुनेश त्यागी

      आजकल पूरे देश में भारत के संविधान और मनुस्मृति को लेकर बहुत विवाद हो रहे हैं। पूरे देश में जैसे सामाजिक और राजनीतिक भूचाल आया हुआ है। यहीं पर यह जानना सबसे ज्यादा जरूरी है कि आखिर भारत की संविधान निर्माता सभा जिसके अध्यक्ष डॉ भीमराव आंबेडकर थे, ने भारत का संविधान बनाते समय मनुस्मृति का पूर्ण विरोध किया था। आखिर मनुस्मृति में ऐसी कौन सी बातें थी जिसका पूरा विरोध किया गया था? मनुस्मृति में लिखी इन मोटी मोटी बातों को जानना बहुत जरूरी है ताकि भारत की जनता मनुस्मृति की असली हकीकत को जान सके।

मनुस्मृति ऊंच नीच की वकालत करती है। मनुस्मृति कहती है कि इस दुनिया को परमात्मा ने बनाया है और परमात्मा ने ही चार वर्ण जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनाए हैं। परमात्मा सर्व व्यापक है। परमात्मा ने ही चारों वर्णों के कर्म अलग-अलग बनाए हैं। परमात्मा ने मुख से ब्राह्मणों भुजाओं से क्षत्रियों, जांघों से वैश्यों और पैरों से शूद्रों को पैदा किया है।

मनुस्मृति में इन चारों वर्णों के काम के बारे में भी बताया गया है जिसमें कहा गया है कि ब्राह्मणों का काम पढ़ना पढ़ाना, यज्ञ करना कराना, दान देना और दान लेना है। क्षत्रियों का काम रक्षा करना, वेद पढ़ना दान देना और यज्ञ करना है। वैस्यों का काम पढ़ना, दान देना, यज्ञ करना, व्यापार करना, खेती करना और ब्याज लेना है। शूद्रों का काम ब्राह्मणों, क्षत्रियों, और वैश्यों की सेवा करना है और उन्हें विद्याहीन बने रहना है यानी उनके बारे में विद्या और शिक्षा देने की बात नहीं की गई है। इसमें अआचार को ही परम धर्म बताया गया है।

मनुस्मृति की रचना वेदों के आधार पर की गई है। मनुस्मृति कहती है कि वेद और धर्मशास्त्र निर्विवाद हैं, जो कोई भी वेदों की निंदा करता है, वह नास्तिक है। शुभ अशुभ का विचार मनुस्मृति पैदा करती है। शूद्रों का नाम भी सेवा भाव पैदा करने वाले होने चाहिएं जैसे महीदास, धर्मदास, चरणदास, धर्मपाल, विजयपाल आदि। शूद्रों के लिए उपनयन संस्कार की व्यवस्था नहीं की गई है। मनुस्मृति कहती है कि विद्या को कुपात्र में न बोयें अर्थात अयोग्य को शिक्षा न दें और शूद्र त्याज्य हैं, जो विद्या में बड़ी बाधा हैं अर्थात बहुसंख्यक मेहनतकशों को विद्या और शिक्षा से दूर रखा गया।

मनुस्मृति स्त्रियों के बारे में बहुत अजीब और अविश्वसनीय सी बातें करती है। मनुस्मृति रहती है कि स्त्रियां विद्वान व्यक्ति को उसके मार्ग से उखाड़ती हैं।मनुस्मृति दहेज प्रथा का समर्थन करती है। मनुस्मृति कहती है कि सम संख्या में रात्रि में समागम करने में पुत्र और विषम संख्या में समागम करने में कन्या उत्पन्न होती है। रजस्वला स्त्री अशुद्ध होती है। मनुस्मृति आगे कहती है कि औरत कभी आजाद ना रहे। वह बाल्यावस्था में पिता के, यौवन काल में पति के और विधवा कल में पुत्रों के अधीन रहे। विधवा स्त्री को विवाह का अधिकार नहीं है, मगर यहीं पर मनुस्मृति रहती है की पत्नी की मौत के बाद पति दूसरा विवाह कर सकता है। स्त्री राजा के मंत्रिमंडल में नहीं होनी चाहिए। मनुस्मृति आगे कहती है कि जिस स्त्री के पुत्र ना हो तो पति उसे छोड़कर दूसरा विवाह कर ले। इस प्रकार मनुस्मृति औरतों के साथ सबसे बड़ा भेदभाव करती है, जैसे वे मानव प्राणी ही नहीं हैं।

मनुस्मृति धर्म के दस लक्षणों की बात करती है जैसे 1.धैर्य, 2. क्षमा, 3.मन नियंत्रण, 4.चोरी ना करना, 5.पवित्रता,  6.इंद्रिय वशीकरण, 7.शास्त्रों का ज्ञान, 8. विद्या,9. सत्य और 10.अक्रोध। मनुस्मृति आगे कहती हैं कि परमात्मा ने राजा को बनाया है। दुष्टों को मारने पर कोई पाप नहीं होता। वह आगे कहती है कि शूद्रों का काम है द्विजों यानी ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों की सेवा और रक्षा करना।

मनुस्मृति शूद्रों, अधर्मियों और चांडालो का बहिष्कार करने की बात करती है और उनके देश में ना रहने की बात करती है। वह कहती है कि शूद्रों के साथ बैठकर ना पढें यानी उनसे दूर रहें। मनुस्मृति कहती है कि मछली खाना वर्जित नहीं है। कामना होने पर ब्राह्मण मांस खा सकता है। यज्ञ विधि विधान करके मांस खाया जा सकता है। वेद विहित हिंसा हिंसा नहीं होती। मनुस्मृति आगे कहती है कि  परमात्मा ने राजा को बनाया है। वह कहती है कि दुष्ट पुरुषों को मारने पर कोई पाप नहीं होता। शूद्रों का काम है द्विजों यानि,,, ब्राह्मण, क्षत्रियों और वैश्यों की सेवा और रक्षा करना।

मनुस्मृति के इस संक्षिप्त विवरण के साथ यहीं पर बहुत सारे सवाल पैदा होते हैं जैसे क्या शोषण, जुल्म, हिंसा, अन्याय, अत्याचार और भेदभाव भी परमात्मा ने ही बनायें हैं तो फिर कैसा परमात्मा? क्या गर्भ के अलावा भी कोई बच्चा पैदा हो सकता है? शूद्र सब की सेवा और गुलामी करेंगे मगर क्यों? दूसरे वर्गों के लोग अपनी सेवा और अपने काम खुद क्यों नहीं कर सकते? नास्तिकों की निंदा क्योंकि उनसे वैरभाव क्यों? विवेक और विश्लेषण और तर्क की बात करना क्या गलत है? शूद्रों को शिक्षा और विद्या क्यों नहीं? वे तो मेहनतकश हैं, उनके बिना तो यह दुनिया चल ही नहीं सकती। वही सारा काम करते हैं तो फिर उनसे नफरत क्यों? उनके साथ अन्याय, शोषण, जुल्म और भेदभाव क्यों? औरतें को दूसरे दर्जे का नागरिक क्यों बना दिया गया, उनके समान अधिकार क्यों नहीं है?

अगर किसी देश की औरतें तमाम सुविधाओं और समान अधिकारों से वंचित रहेंगी तो फिर वह समाज और देश कैसे आगे बढ़ सकता है? और फिर यहीं पर मुख्य सवाल है कि मनुस्मृति में देश और दुनिया को आगे बढ़ाने वाले तमाम मेहनतकशों से ये समस्त भेदभाव, शोषण और अन्याय क्यों? मनुस्मृति में बहुत सारी अज्ञानता, अविवेकशीलता और अवैज्ञानिक बातों का प्रचार प्रसार क्यों? यह बहुत बड़े अचंबे की बात है कि धर्म की जिन बातों का उल्लेख मनुस्मृति में किया गया है उनके आज कहीं भी दर्शन नजर नहीं आते और चारों तरफ धर्मांता और अंध विश्वासों का साम्राज्य क्यों कायम किया जा रहा है? इन तमाम सवालों का कोई जवाब मनु और मनुवादियों के पास नही था, इसीलिए भारत के संविधान निर्माता समिति ने, जिसकी अध्यक्षता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर कर रहे थे, मनुस्मृति का बहिष्कार किया था और संविधान में गौतम बुध्द के विचारों, रुसी क्रांति की उपलब्धियों और स्वतंत्रता संग्राम के आधुनिक मूल्यों को शामिल करके, सबको शिक्षा, समता, समानता और आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों और आजादी की बात की थी जो आज मनुवादी ताकतों को मंजूर नहीं है। इसी कारण ये मनुस्मृति की समर्थक  ताकतें, भारत के संविधान और बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के विचारों का विरोध करती रही हैं। लेखक के निजी  विचार हैं।

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