कर्मचारी यूनियन की एक समर्पित नेत्रीः शकुंतला शर्मा

हरियाणाः जूझते जुझारू लोग-18

कर्मचारी यूनियन की एक समर्पित नेत्रीः शकुंतला शर्मा

सत्यपाल सिवाच

कुरुक्षेत्र जिले के खरींडवा गांव में  22 मई 1950 को जन्मीं शकुंतला शर्मा वर्षों तक अध्यापक संघ और सर्वकर्मचारी संघ की नेता एवं कार्यकर्ता रहीं। सन् 1968-69 जेबीटी प्रशिक्षण के दौरान ही वे यूनियन के संपर्क में आ गई थीं। उन्होंने 13 अक्तूबर 1971 को अस्थायी शिक्षक के रूप नौकरी शुरू कर दी और 01 जनवरी 1980 को उनकी सेवाएं नियमित हुई। उन्होंने सेवाकाल के दौरान ही बी ए, बी एड, एम ए और पीएचडी की उपाधियां प्राप्त कीं। वे पदोन्नति के जरिए मास्टर और प्राध्यापक पद पर पहुंचीं । सन् 2004 में उन्होंने समयपूर्व प्राध्यापक पद से सेवानिवृत्ति ले ली।

शकुंतला शर्मा जब अध्यापिका बनीं तो यूनियन से जुड़ने के लिए अनुकूल वातावरण मिल गया था। उनके परिवार से ही स्वर्गीय शुगनचन्द शर्मा कुरुक्षेत्र जिले में अध्यापक संघ के जाने-माने नेता रहे। शकुंतला जी उन्हें पिता समान बड़ा भाई मानती थीं। वे उनके व्यक्तित्व के अनुरूप स्वयं को ढालने के सचेत प्रयास करती थी। विवाह के बाद उनका घर यूनियन का केन्द्र ही बना रहता था। उनके जीवन साथी मोहनलाल शर्मा भी यूनियन के समर्पित कार्यकर्ता रहे। इसलिए इन दोनों का संग आन्दोलन के लिए बहुत प्रेरणादायक और उपयोगी रहा। वे सन् 1972 में खण्ड, 1980 में जिला और 1988 में राज्य पदाधिकारी बन गईं। वे हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ में राज्य उपाध्यक्ष और वरिष्ठ उपाध्यक्ष पदों पर रहीं।

सन् 1973 से सेवानिवृत्ति तक वे लगातार सक्रिय रहीं। बहुत बार उत्पीड़न भी झेला। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के 1986 के नॉन-टीचिंग कर्मचारियों के संघर्ष में वे पूरी तरह सक्रिय सहयोगी रही थीं। इसी प्रकार 1998 के नर्सिंग आन्दोलन में भी अग्रणी रहीं। उन्हें दो बार जेल जाना पड़ा, कई विभागीय उत्पीड़न झेला और 1993 में सेवा से बर्खास्त कर दी गई थीं। संकट के समय पर भी वे विचलित नहीं हुईं तथा धैर्य से समस्याओं के समाधान तलाशती रहीं।

शकुंतला जी मेरी पहली मुलाकात लाडवा में एक बैठक में सन् 1981 में हुई। बाद में तो घरेलू संपर्क बन गए थे। मेरी जीवन साथी शान्ति से भी शकुंतला जी को बहुत स्नेह था। जब भी उन्हें जीन्द आना होता तो शान्ति से मिलकर ही आती थीं। वे स्वभाव से आत्मीय और दूसरों का ख्याल रखने वाली थीं। जब 1987 के आन्दोलन के बाद आंगनबाड़ी वर्कर्स का संगठन बनाने की प्रक्रिया शुरू की तो उन्होंने शाहाबाद, बाबैन, लाडवा और पिपली क्षेत्रों में बैठकें करवाने में अच्छी भूमिका निभाई।

कुरुक्षेत्र जिले के पहले आंगनबाड़ी सम्मेलन में लाडवा में वही मुख्य वक्ता थीं। एक परिपक्व और समझदार महिला के साथ आंगनबाड़ी महिलाओं के घरों में तालमेल करने से विश्वास का माहौल बनाने में आसानी रही।

शकुंतला जी पिछले 17 अगस्त 2025 को दुनिया को अलविदा कह गईं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि जो उनके संपर्क में रहे वे उन्हें सहज ही भुला पाएंगे। वे बहुत नेकदिल, सच्ची और खरी थीं।

सेवानिवृत्ति के पश्चात वे भारतीय जनता पार्टी में सक्रिय हो गई थीं। इस तरह हम वैचारिक दृष्टि से दो विपरीत छोरों पर बैठे थे लेकिन उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी कि वे निजी सम्बन्धों को बहुत मान देती थीं। पिछले कुछ अरसे से वे राजनीति में बहुत अच्छा नहीं देख रही थीं लेकिन जीवन के संध्या काल में मतभेदों में नहीं उलझना चाहती थीं। उनके तीन बेटे हैं। तीनों विवाहित हैं और छह पोते-पोतियां हैं। यद्यपि नौकरी के दौरान उनका कार्यक्षेत्र शाहाबाद रहा। अब अनेक वर्षों से कुरुक्षेत्र में ही रह रही थीं।

मुझे लगता है कि हरियाणा का अध्यापक और कर्मचारी आन्दोलन उनके कामों और सद्व्यवहार को याद करता रहेगा। संभव परिजनों को उनके साधारण कलेवर छिपे बड़ी शख्सियत के अनेक पहलुओं का अभी पता चले। सौजन्यः ओम सिंह अशफ़ाक

लेखकः सत्यपाल सिवाच

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