ज्यों नावक के तीर-2
जयपाल की और पांच कविताएं
1.
ईश्वर के कण
यह बात तो सब जानते हैं
कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है
लेकिन वे कण कहां व्याप्त हैं
कोई नहीं जानता
इसके लिए
अभी और अधिक खून बहाना होगा
बस्तियां जलानी होंगी
घरों पर चलाने होंगे बुलडोजर
इंसानियत को करना होगा जमींदोज
कुछ देशों को तबाह करना होगा
जब कुछ नहीं बचेगा
तब जाकर मिलेगा ईश्वर
और वे कण भी
जिनमें ईश्वर रहता है
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2.
गर्व
अच्छी बात नहीं है
अपने पड़ोसी को मार देना
यह बात मैं अच्छी तरह जानता था
मानता भी था
पर इन दिनों
मैं अपने धर्म और जाति पर
बहुत अधिक गर्व महसूस कर रहा था
गर्व की ऐसी गहरी अनुभूति
मुझे आज से पहले कभी महसूस नहीं हुई
गर्व करते-करते
एक दिन मेरा पड़ोसी मेरे ही हाथों मारा गया
भीड़ ने उसका घर जला दिया
शर्म नहीं आई !
-मां ने सवाल किया
शर्म किस बात की !
-मैंने गर्व से कहा
3.
धर्म और भगवान
मैंने अपने धर्म के नारे लगाए
उसने अपने धर्म के
मैंने अपने भगवान का झंडा उठाया
उसने अपने भगवान का
बात बढ़ती ही चली गई
वहीं पहुंच गई
जहां अक्सर पहुंचती है
वो भी मारा गया
मैं भी मारा गया
घर उसका भी गया
घर मेरा भी गया
बड़ी मुश्किल से बचाए हमने
अपने धर्म और भगवान
4.
अमर हुए तानाशाह
हम धर्म-ग्रंथों को
सिर पर उठाकर घूमते रहे
धर्म-गुरुओं के चरण धोते रहे
राजाओं के लिए युद्ध लड़ते रहे
शहीद होते रहे और सम्मान पाते रहे
बस इस तरह हम मरे
अमर हुए तानाशाह
5.
स्वर्ग का रास्ता
सिर बैठ गए धर्म-ग्रन्थ
छाती पर बैठ गया ईश्वर
आंखों पर बैठ गए धर्म गुरू
हाथ बंध गए प्रार्थना में
लहुलुहान पैरों के साथ
पेट को दबाए हुए
मरी हुई आत्मा लेकर
हम चलते रहे
उन रास्तों पर
जो हमें नर्क में ले गए
स्वर्ग का वास्ता देकर
