अमूर्त के मूर्त होने का कला बोध ही सौन्दर्य है!

अमूर्त के मूर्त होने का कला बोध ही सौन्दर्य है!

 मंजुल भारद्वाज

कला का अहसास ही सौन्दर्य है! दृष्टि,विचार,चेतना का अमूर्त जब मूर्त होता है तब कला जन्मती है. कला का जन्म ही सौन्दर्य है. कला के जन्मने का शास्त्र ही उसका सौन्दर्य शास्त्र है. कला मनुष्य को मनुष्य बनाती है.

मनुष्य की आत्महीनता, विकार और विध्वंसक वृति को कला आत्मबल,विचार और विवेक में परिवर्तित करती है.थिएटर ऑफ़ रेलेवंस कला के मूल उद्देश्य के क्रियान्वन के लिए प्रतिबद्ध है. थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के नाटकों का सौन्दर्य उसके मूल उद्देश्य से उत्प्रेरित होता है. रंगमंच की प्रस्थापित रूढ़ियों को तोड़ता है. दर्शक की चेतना को अमूर्त से जोड़ता है. कल्पना शक्ति से नाटक के अमूर्त को मूर्त करते हुए कलाकारों की देह और अभिनय प्रतिभा को तरंगित कर स्थूल सभाग्रह को स्पंदित करता है.

इस प्रकिया में देह के दृश्य बंध,मंच की भूमिति, नाटक के दृष्टिकोण के अनुसार रंगमंच के कोण का उपयोग अद्भूत होते हैं. कलाकारों की आवाज़,मंच आवागमन,मंच कार्य सिद्धि,आपसी समन्वय, रंगमंच के स्पर्श से स्पंदित होते हैं यह स्पंदन नाटक के मूल पाठ और मंचन के ध्येय से उत्प्रेरित होता है.

नाटक जड़ नहीं,स्थूल नहीं, जीवन का ‘एक जीवित घटनाक्रम है’ इस घटनाक्रम की आत्मा होती है कल्पना.दर्शक जानता है वो नाटक यानी झूठ देख रहा है. सम्प्रेष्ण की कल्पना सिद्धि से थिएटर ऑफ़ रेलेवंस असत्य से अ का मुखौटा  हटा दर्शकों को सत्य से रूबरू करता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *