व्यंग्य
सेफ़्टी फर्स्ट
रमेश जोशी
आज तोताराम कुछ देर से आया । हमें क्या फ़र्क़ पड़ता है । वैसे ही जैसे जनता को रैली या रोड़ शो से । न तो बिजली कटौती पर कोई फ़र्क़ पड़ता है, न पानी की कम आपूर्ति, न बेरोजगारी, न महंगाई और न ही कानून अव्यवस्था पर । फिर भी अगर कुछ दिन ये सब न हों तो कुछ अजीब सा लगने लगता है ।
लगता है जैसे देश में सब कुछ रुक सा गया है । लगता है अचानक सब शोर बंद हो गया हो । लगता है जैसे अचानक रात्रि जागरण में लाइट चली गई हो । मुरदनी सी छा जाती है । मरघट की सी शांति । कहीं बुलडोज़र चल जाए, कहीं किसी पर पेशाब कर दिया जाए, किसी का मूंछ रखने पर सिर मूँड़ दिया जाए, किसी धार्मिक स्थान को खास रंग में पोत दिया जाए, किसी से जबरदस्ती किसी भगवान का नाम बुलवाया जाए, किसी से जबरदस्ती राष्ट्र गीत गवाया जाए तो लगता है कि देश, धर्म, संस्कृति जिंदा हैं । हमारा भविष्य उज्ज्वल है । हममें अब भी दम है । हम किसी से कम नहीं ।
तोताराम का एक चाय का ही तो खर्चा है । आता है तो कुछ देर के लिए ही सही, रौनक हो जाती है । लगता है जैसे किसी हृदय सम्राट के समारोह में सभी कुर्सियाँ भर गई हैं । नहीं तो लगता है जैसे प्रधान मंत्री रोड़ शो कर रहे हैं और कोई ‘हो ही, हो ही’ करने वाला ही नहीं । तो लगता है कि सब सजावट, सब वस्त्र विन्यास, सब गरिमा, सब रुतबा एक ही झटके में ध्वस्त हो गए ।
खैर, तोताराम आ ही गया । लेकिन यह क्या ? तोताराम ने आते ही फीता निकाला, और बरामदे की नाप-जोख शुरू कर दी । हमें शंका हुई । पूछा, क्या बात है तोताराम ? क्या हमारे बरामदे का निर्माण अवैध है ? तू क्यों इस तरह नाप रहा है जैसे कि किसी ने ‘आई लव मुहम्मद’ का बोर्ड लगा दिया हो । क्या यहाँ बुलडोज़र चलने वाला है ?
बोला- असंभव भी नहीं है । फिलहाल तो बाबर की औलादों का नंबर है । उसके बाद मैकाले, फिर मार्क्स, फिर अंबेडकर वालों का आएगा । उसके बाद अगर तुम जैसे प्रगतिशीलों ने चूँ- चपड़ बंद नहीं की तो तुम्हारा भी आ सकता है ।
हमने पूछा- तो फिर यह नाप जोख किस लिए ?
बोला- यह तो तेरे बरामदे के जाली लगवाने के लिए नाप ले रहा हूँ ।
हमने कहा- लेकिन जाली लगाने से तो ऐसा लगेगा जैसे हमें पुलिस की गाड़ी में हिरासत में लेकर बैठाया गया है ।
बोला- भले ही लगे लेकिन जूते से तो बच जाएगा । कैनवास का हल्का फुल्का हुआ तो बात और नहीं अन्यथा अगर शुद्ध चमड़े का हुआ तो सिर भी फूट सकता है । क्या कमांडो से घिरे हृदय सम्राट तुझे किसी खूँख्वार अपराधी जैसे नहीं लगते ? सेफ़्टी फर्स्ट ।
हमने कहा- हम कोई सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश थोड़े हैं जो कोई हमारे ऊपर अपना हजार रुपए का जूता फेंकेगा । और फिर इधर से गुजरने वाले सामान्य आदमियों के पास तो राम राम करके हवाई चप्पल होगी, वह भी घिसी हुई ।
बोला- यह सामान्य आदमी का मामला नहीं है । यह असामान्य आदमियों की समस्या है । वे धर्म की रक्षा के नाम पर चर्चित होकर लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं । और फिर आजकल तो सनातन पर सबसे अधिक खतरा है ।
हमने कहा- जो सनातन ही है उसे क्या खतरा हो सकता है ?
बोला- सनातन कुछ नहीं होता । वैज्ञानिकों ने सूरज, चाँद, पृथ्वी सब की उम्र निकाल रखी है । न प्रकाश सनातन है, न जीवन । सनातन है मृत्यु, सनातन है भूख, सनातन है प्यास । सुबह खाओ तो दोपहर को फिर भूख लग आती है । हजार उपायों के बाद भी मृत्यु तय है । इसलिए जीवन की रक्षा करो, प्यास बुझाने का प्रबंध करो । रोशनी के लिए दीया जलाने के लिए हजार जतन करने पड़ते हैं । बुझाने में क्या है । कोई भी सिरफिरा मार देगा फूँक ।
गाँधी बनने में साधना करनी पड़ती है । गोडसे का क्या है ?एक जुमले में हजारों तैयार ।
हमने कहा- कोई बात नहीं । अगर किसी ने फेंक ही दिया जूता तो हम भी उसे गवई जी की तरह उदारतापूर्वक क्षमा कर देंगे ।
बोला- क्षमा नहीं करेगा तो कर भी क्या सकता है ? लेकिन याद रख नफरत के बाजार में क्षमा का कोई खरीदार नहीं । ईसा ने जिनको क्षमा किया क्या उनका हृदय-परिवर्तन हुआ ? क्या गाँधी ने अपने पर प्राणघातक हमला करने वालों को क्षमा नहीं किया ? लेकिन अंत में हुआ क्या ? आज भी उन्हें कोई पछतावा नहीं है ।
हमने कहा- तोताराम अगर तुझे ज्यादा ही चिंता है तो हम एक सस्ता उपाय बताते हैं । मात्र सौ-पचास रुपए का खर्च है । एक बैनर लगवा देते हैं- हनुमान जयंती पर अखंड रामायण पाठ । आप सभी सादर आमंत्रित ।
अगर किसी की भक्ति जाग्रत हो गई तो सुरक्षा के साथ साथ दो-पाँच रुपए का चढ़ावा भी आ सकता है ।
बोला- मास्टर, अगर काम में ले तो तुझ में भी दिमाग है तो सही ।