आज जल,जंगल,ज़मीन बचाना ही सबसे बड़ी देश,मानवता और पृथ्वी सेवा है
– मंजुल भारद्वाज
मनुष्य विशेष कर मध्यमवर्ग संतुलन बनाने की मानसिकता में जीता है। उसे लगता है कि एक नुकसान की भरपाई दूसरी तरह से हो सकती है। पर जंगल काटने की भरपाई पेड़ लगाकर नहीं हो सकती ।
जंगल प्राकृतिक है। प्रकृति ने उसे सैकड़ों,हजारों वर्षों में बनाया और सहेजा है। जंगल मनुष्य नहीं बना सकता । मनुष्य पेड़ लगाकर बगीचा बना सकता है।
एक पेड़ और जंगल के फ़र्क को समझिए। पेड़ जंगल की इकाई है, पर अपने आप में जंगल नहीं है। जंगल केवल पेड़ से नहीं बनता । जंगल में जैव विविधता होती है। पानी के झरने,झील,नदियों के स्रोत और नदियां होती हैं। जंगल पूरा जीवन चक्र है।
जंगल है तो शेर है, बाघ है, चीता, हिरण और अनेक प्रकार के जंगली जीव हैं। खरगोश से अजगर तक । यह सब मिलकर हमारे जीवन को बचाते हैं। जहां घना जंगल है वहां हवा,पानी स्वच्छ होता है। तापमान संतुलित होता है। मनुष्य का मस्तिष्क महानगरों की बजाय शांत और निर्मल होता है।
जंगल एक बड़े भूभाग को अपने अंदर समाए रहता है। यह भूभाग किसी भी पर्यावरणीय विध्वंस का मुकाबला निर्णायक तरीके से करता है। एक पेड़ यह मुकाबला नहीं कर सकता।
भारत में जंगल नष्ट किए जा रहे हैं उसी का परिणाम हिमालय क्षेत्र में हो रही तबाही है। बादल फटना,तूफानी बारिश होना,भूस्खलन इसी का परिणाम है।
आज बारिश का चक्र, वेग बदल गया है। किसान इसकी सबसे ज़्यादा मार झेलता है। गांव के गांव और खड़ी फसलें बर्बाद हो रही हैं। यह हम सबके आसपास घटित हो रहा है। हम लोगों को मरते हुए देख रहे हैं।
सवाल है क्या हम मौत का तांडव देखते रहेंगे या उससे जीवन बचाने का उपाय करेंगे ?
प्रदूषण इतना भयावह और विकराल हो गया है कि आप एक सांस शुद्ध हवा का नहीं ले पा रहे हो। हर दिन सत्ता आपको नए ख़्वाब दिखा रही है। सत्ता का नया शगूफा है सौर ऊर्जा । छोटी छोटी घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने में सौर ऊर्जा फायदेमंद है। लेकिन उसका व्यापारिक उपयोग करने में विध्वंशक है। पूंजीपति हमारी आपकी ज़रूरत पूरा नहीं करते वो मुनाफे के लिए काम करते हैं।
सौर ऊर्जा के बाजारीकरण का अर्थ है तापमान का बढ़ना। एक योजना थी की राजस्थान में बड़े पैमाने पर सौर संयत्र लगाए जाएं । पर उसका बुरा असर होगा, तापमान 4 से 5 डिग्री बढ़ जाएगा । यानी जहां 50 डिग्री तक पहले से तापमान हो वहां 5 डिग्री बढ़ने का मतलब है विनाश !
फ़िर लद्दाख को चुना गया। पर यही परिणाम लद्दाख में होगा । सोचो 4 से 5 डिग्री तापमान बढ़ने का मतलब हिमालय के पूरे इको सिस्टम का विध्वंस। ग्लेशियर पिघल जायेगें । नदियों का प्रवाह बाधित होगा और मैदानी इलाकों में तापमान असहनीय!
विकास के नाम पर बाजारीकरण घातक है। पर्यावरण पहले से बिगड़ा हुआ है उससे और छेड़छाड़ मौत है। यहां कोई गुमान में ना रहे कि वो अमीर है। जब बाढ़, तूफ़ान,आग बेकाबू होती है तब किसी को नहीं छोड़ती । याद कीजिए कोरोना काल को, क्या पैसा आपको बचा पाया ? एक एक सांस के लिया तरस गए थे आप !
पेड़ लगाएं,पर महत्वपूर्ण है जंगल बचाएं। जंगल अपने भीतर बहुत खनिजों का खज़ाना छुपाए हुए हैं। उन खजानों पर पूंजीपतियों की नज़र है। वो आपकी चुनी हुई सरकार को खरीद लेते हैं। और जिस सरकार ने आपको सुरक्षा का वादा किया है वो सरकार,आपकी सरकार, विकास का मुखौटा लगाकर आपको विनाश परोसती है। जंगल पूंजीपतियों को बेच देती है।
आपको लगता है जंगल छत्तीसगढ़,झारखंड,कोंकण में कट रहे हैं, हमें क्या फ़र्क पड़ता है? तो अपनी मूर्छा तोड़िए उसका असर आप भुगत रहे हो।
अपना जीवन बचाना है तो समुद्र तट ,जल,जंगल, ज़मीन बचाइए !
एक पेड़ लगाने की भावनात्मक अपील को मानते हुए पेड़ लगाएं पर सरकार पर जंगल नहीं काटने का निर्णायक दबाव,डर बनाएं!
आज जल,जंगल, ज़मीन बचाना ही सबसे बड़ी देश,मानवता और पृथ्वी सेवा है। जीवन से बड़ा और क्या है?
थोड़ा मनन करिए हम सब पंच तत्वों से बने हैं। आज विकास के भ्रम जाल में फंस कर हम अपने पंच तत्वों से युद्ध कर रहे हैं। क्या यही हमारी शिक्षा है ? क्या यही हमारी चेतना है? क्या यही हमारा अध्यात्म है?
प्रकृति जब नाराज़ होती है तब आपको, आपकी अपनी पसंदीदा सरकार भी नहीं बचा सकती !
इसलिए प्रकृति के साथ खड़े हों । अपने पंच तत्वों के साथ युद्ध बंद करें। जंगल बचाएं।
पर्यावरण का संरक्षण कर जैव विविधता,जीवन,पृथ्वी , इकोलॉजी और मानवता को बचाएं।
आपके जीवन की रक्षा करता
नाटक : द… अदर वर्ल्ड ( मराठी)थियेटर ऑफ़ रेलेवंस
प्रस्तुत
लेखक – निर्देशक : मंजुल भारद्वाज
कब : 12 अक्टूबर, 2025, रविवार, शाम 5.30 बजे
कहां : स्व. भैय्यासाहेब गंधे नाट्यगृह ,ला. ना. हायस्कूल , जलगांव
लेखक मंजुल भारद्वाज