कविता
अंतर्मन
अपूर्वा दीक्षित
एक धुन है, एक आवाज़ है,
अन्तर्मन में उठता गुंजार है।
मानो चिरंतन का मृदुल आलाप,
मानो अनहद का गूढ़ विलाप।
जैसे नभ में निनाद का संचार,
जैसे शून्य में जन्मे मन्त्राधार।
यह केवल स्वर-लहरी न प्रतीत,
यह तो ब्रह्म का सूक्ष्म संगीत।
जैसे प्रज्ञा का प्रथम आह्वान,
जैसे चेतना का गुप्त गान।
अंतर्यामी की अनिवर्चनीय पुकार,
जैसे आत्मा का अमृताधार।
प्रत्येक स्पन्दन में जग का आलोक,
प्रत्येक निनाद में छिपा विवेक-शोक।
यह ध्वनि सृष्टि की आरम्भ रेखा,
यह गान-समापन का भी संकेत।
यही है जीवन का मौन संवाद,
यही है मृत्यु का अंतिम प्रसाद।
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