भूपसिंह बेनीवाल – कर्मचारी हितों के लिए निलंबन, तबादले झेले, जेल गए 

हरियाणा के जूझते जुझारू लोग- 6

भूपसिंह बेनीवाल – कर्मचारी हितों के लिए निलंबन, तबादले झेले, जेल गए

सत्यपाल सिवाच

हरियाणा की जमीन ने बहुत से आंदोलनकारी और जुझारू कर्मचारी नेता दिए हैं। उनमें से एक भूपसिंह बेनीवाल भी थे। कर्मचारियों के हित की आवाज उठाने के कारण उनको बार -बार निलंबन और तबादले का उत्पीड़न झेलना पड़ा लेकिन वह अपने आदर्शों से नहीं डिगे। इस बार उनके बारे में जानिये।

भूप सिंह बेनीवाल का जन्म 4 जनवरी 1950 को गांव किशनगढ़, तहसील आदमपुर मंडी, जिला हिसार (हरियाणा) में हुआ। वे चौधरी बीरबल बेनीवाल एवं श्रीमती हरकोरी देवी के इकलौते पुत्र थे। उनके पिता खेती-बाड़ी करते थे। हालांकि उनके पिता सात भाई थे, परंतु भूपसिंह अपने माता-पिता के इकलौते बेटे थे। उनकी तीन बहनें भी थीं।

परिवार में उन्हें सब “नवाब साहब” कहकर पुकारते थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई गाँव सादलपुर से की और 1966 में 10वीं उत्तीर्ण की। इसके बाद जाट कॉलेज हिसार से स्नातक एवं बी.एड. की पढ़ाई पूरी की।

शुरुआत में उन्होंने सहकारिता विभाग में एलवीओ के पद पर नौकरी ज्वॉइन की, लेकिन राजनीतिक कारणों से हटा दिए गए। फिर 7 अक्टूबर 1972 को उन्होंने धूलकोट में हरियाणा स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (एचएसईबी) में अपर डिवीजन क्लर्क (यूडीसी) के पद पर ज्वॉइन किया। इसके बाद सिरसा, फरीदाबाद, कलांवाली, हिसार, फतेहाबाद में सेवाएं दीं और अंत में 31 नवम्बर 2008 को फरीदाबाद से सर्कल सुपरिंटेंडेंट पद से रिटायर हुए।

भूप सिंह बेनीवाल नौकरी की शुरुआत से ही वे कर्मचारी आंदोलनों में सक्रिय रहे। सन् 1980 में रोहतक में एचएसईबी यूनियन सम्मेलन में उन्हें केंद्रीय समिति के लिए चुना गया। वे एचएसईबी स्टेट कमेटी के आयोजक भी रहे। मैं भूप सिंह बेनीवाल को 1981 में बिजली कर्मचारियों के एक प्रबुद्ध नेता की तरह जानने लगा था। भले ही वे जिला और क्षेत्रीय स्तर पर सक्रिय रहे लेकिन उनकी शख्सियत बड़ी थी। विचारवान व्यक्ति थे।

सन् 1983 या 1984 मुझे सही याद नहीं है, सर्वकर्मचारी संघ के गठन से पहले ट्रेड यूनियनों के स्तर पर राज्य के कर्मचारियों को एकजुट करने के प्रयास शुरू हो गए थे। चार सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई थी जिसमें भूपसिंह बेनीवाल व यादराम (बिजली), भीमसिंह सैनी (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय नॉन टीचिंग एम्प्लाइज एसोसिएशन) और मैं (सत्यपाल सिवाच) शामिल थे। कामरेड रघुवीर सिंह हुड्डा व पृथ्वीसिंह गोरखपुरिया इस विमर्श में शामिल रहे थे।

कुरुक्षेत्र से ओमसिंह ने बताया कि 1985 में किसी मीटिंग के सिलसिले में जब कामरेड रघुवीर सिंह हुड्डा कुरुक्षेत्र आए तो ओम सिंह उनसे कहा कि कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी नॉन टीचिंग कर्मचारियों की दो बार लंबी हड़ताल हो चुकी है। दोनों बार अधिकारियों ने यूनियन की मांगों पर सहमति जताई, समझौता हुआ लेकिन विश्वविद्यालय ने समझौते का सम्मान नहीं किया और मांगें कार्यान्वित नहीं कीं। नॉन टीचिंग कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने के लिए यूनिवर्सिटी और सरकार मजबूर कर रही है क्योंकि अंबाला डिवीजन के कमिश्नर के पास यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर का चार्ज भी है। दो बार समझौते के बाद भी मांगें लागू न करने से कर्मचारियों में मायूसी है और उनका मनोबल कमजोर हुआ है। आप सलाह दें क्या किया जाए?

कामरेड हुड्डा ने साफ कहा कि सिर्फ एक रास्ता है कि आप लोग यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों के हित में सभी सरकारी, अर्ध-सरकारी विभागों की यूनियनों का समर्थन जुटा लें तो फाइनल संघर्ष जीता जा सकता है और यूनिवर्सिटी तथा सरकार को समझौते को इंप्लीमेंट करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। तभी से हम लोग यूनियनों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने के काम में जुट गए थे।

किसी रैली के दौरान नारे लगाते भूपसिंह बेनीवाल

कुरुक्षेत्र जिला में पहले ट्रेड यूनियन काउंसिल बनाई गई जिसमें 21 यूनियनें शामिल हुईं। “कामन चार्ट ऑफ़ डिमांड” बनाया गया। अंततः 1986 में कुरुक्षेत्र नॉन टीचिंग यूनियन (KUNTIA) की हड़ताल शुरू हुई और 86 दिन चली। कुरुक्षेत्र के काली कमली मैदान में एक बड़ी संयुक्त रैली का आयोजन हुआ। रैली में मौके पर ही करीब 21000 रुपये चंदा इकट्ठा किया जो कि स्टेज पर ही यूनिवर्सिटी के नॉन टीचिंग कर्मचारियों के डेलिगेशन को सौंप दिया गया। नॉन टीचिंग कर्मचारियों ने स्टेज से घोषणा कर दी कि अब अगले और 86 दिन वे लड़ाई लड़ सकते हैं। नतीजतन अगले ही दिन सरकार ने घुटने टेक दिए और मांगे लागू करने के निर्देश दे दिए। नॉन टीचिंग यूनियन ने जीत के साथ हड़ताल खत्म कर दी। इस आंदोलन की जीत हरियाणा के सर्व कर्मचारी  संघ के निर्माण की बुनियाद बन गई। अगले कुछ महीनों में हमने अलग-अलग संगठनों और आन्दोलनों की समीक्षा करते हुए विमर्श जारी रहा। उसी की परिणति दो साल बाद एक जुझारू आन्दोलन के निर्माण में हुई।

भूप सिंह राजनीतिक रूप से बहुत जागरूक थे। सन् 1986 में सर्व कर्मचारी संघ के गठन में बिजली कर्मचारियों ने अहम् भूमिका निभाई। भूप सिंह का जीवन सिर्फ नौकरी तक सीमित नहीं रहा। वे कर्मचारी हितों के संघर्ष में अग्रणी रहे। जब सर्व कर्मचारी संघ का गठन हुआ, वे शुरू से ही इससे जुड़ गए थे। वे बिजली बोर्ड वर्कर यूनियन में सर्कल सचिव के पद पर कार्यरत थे । सर्व कर्मचारी संघ के गठन के समय जिला हिसार की पहली तालमेल कमेटी के सदस्य थे। जब सर्व कर्मचारी संघ जिला हिसार का विधिवत् पहला चुनाव हुआ तो उसमें उनको सर्वसम्मति से जिला सचिव चुना गया। वे लंबे समय तक जिला सचिव के पद पर सक्रिय रहे।

बेनीवाल कॉलेज के दिनों में वे स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI ) से जुड़े रहे। वे सर्व कर्मचारी संघ के पहले सर्कल सचिव बने। लंबे समय तक उन्होंने कामरेड पृथ्वी सिंह गोरखपुरिया और कामरेड कृष्ण स्वरूप के साथ काम किया। 1986 में बंसीलाल सरकार के खिलाफ कर्मचारी आंदोलन में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा। कर्मचारी आंदोलनों के कारण उन्हें बार-बार तबादले और निलंबन जैसी सज़ाएँ झेलनी पड़ीं, मगर उन्होंने कभी हार नहीं मानी। कर्मचारी आंदोलन के दौरान वे हिसार जेल में भी रहे ।

भूप सिंह के पास एक स्कूटर था, जो आंदोलनों के समय पुलिस की “हिट लिस्ट” में रहता था। कई बार जब कोई और व्यक्ति भी उस स्कूटर पर निकलता तो पुलिस उन्हें ही “भूप सिंह” समझकर पकड़ लेती। इसी कारण आंदोलन के दिनों में उनका स्कूटर अक्सर “आराम” करता था। आंदोलन के दौरान उनके घर पर बार-बार पुलिस छापे पड़ते थे। घर पर ताले लग जाते, बच्चे भी डर के कारण स्कूल जाना बंद कर देते, यहाँ तक कि पुलिस स्कूल तक पहुँच जाया करती थी।

उन्होंने समाज की कुरीतियों – घूंघट प्रथा, जात-पात और मृत्युभोज – के खिलाफ खुलकर आवाज़ उठाई। सन् 1995 में बड़े बेटे की शादी के समय, जब गाँव में बहू का बिना घूँघट रहना असंभव माना जाता था, तब उनके घर की बहू घूँघट से मुक्त रही। अपने माता-पिता के निधन पर उन्होंने मृत्युभोज नहीं किया, जिससे कई रिश्तेदार नाराज़ हुए, लेकिन उन्होंने इसकी कभी परवाह नहीं की। आज तक उनका परिवार मृत्युभोज में शामिल नहीं होता।

भूप सिंह बेनीवाल बेबाक और निडर स्वभाव के थे। वे अपनी बात बिना किसी डर के सबके सामने रखते। वे खुशदिल मिजाज के थे – बच्चों के साथ बच्चों जैसे और बड़ों के साथ बड़ों जैसे व्यवहार करते। उन्होंने कभी जात-पात में विश्वास नहीं किया और बेटियों को बेटों से भी ज्यादा स्नेह दिया। पोती के जन्म पर वे बेहद खुश हुए। वे हमेशा अपने रिश्तेदारों और साथियों का हालचाल पूछते और हर हफ्ते फ़ोन कर कुशलक्षेम लेते।

उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सावित्री देवी जनवादी महिला समिति में सक्रिय रहीं, लेकिन समय के साथ वृद्ध माता-पिता की देखभाल का दायित्व उन पर आ गया। उनके दो पुत्र हैं – राजीव कुमार गाँव में रहकर खेती-बाड़ी की देखरेख करते हैं। कुलदीप कुमार गुड़गाँव में कंस्ट्रक्शन व्यवसाय में कार्यरत हैं।

सेवानिवृत्ति के बाद भी वे किसान सभा में लंबे समय तक सक्रिय रहे। सन् 2010 में उन्होंने आदमपुर में किसानों को संगठित कर अखिल भारतीय किसान सभा से जोड़ा। जब स्वास्थ्य कारणों से आना जाना कम हो गया तब किसान आन्दोलन की जानकारियां लेते रहते थे। दिनांक 11 मई 2021 को कोविड की दूसरी लहर मॆ उनका निधन हो गया। भूप सिंह बेनीवाल का जीवन साहस, संघर्ष और सामाजिक सुधार का प्रतीक है।

उनकी निडरता, खुशमिजाजी और समाज के प्रति समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणा बने रहेंगे।

सत्यपाल सिवाच

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