अंबाला की अधूरी तस्वीर : तीन सांसद, मुख्यमंत्री और जनता की निराशा

अंबाला की अधूरी तस्वीर : तीन सांसद, मुख्यमंत्री और जनता की निराशा

एस.पी. सिंह

 

हरियाणा की राजनीति में अंबाला संसदीय क्षेत्र इस समय एक अनूठी विडंबना का प्रतीक है। यहाँ से न केवल तीन सांसद—रेखा शर्मा, कार्तिकेय शर्मा और वरुण चौधरी—सक्रिय हैं, बल्कि प्रदेश की सत्ता भी भारतीय जनता पार्टी के हाथों में है और केंद्र में भी भाजपा का राज है। इसके अतिरिक्त मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी का पैतृक गाँव मिर्ज़ापुर, नारायणगढ़ हल्के में अंबाला जिले के अंतर्गत आता है। वे यहाँ से विधायक भी रह चुके हैं, राज्य मंत्री भी बने और कई बार इस क्षेत्र से चुनावी संबंध बनाए। स्वाभाविक था कि मुख्यमंत्री और तीन-तीन सांसदों के रहते अंबाला के हिस्से में विकास की गंगा बहती। परंतु हकीकत यह है कि घोषणाओं और शिलान्यास के पत्थरों से आगे ठोस कार्य धरातल पर दिखाई नहीं देता। अधूरे प्रोजेक्ट, लटकी हुई योजनाएँ और जनता की बढ़ती नाराज़गी इस क्षेत्र की पहचान बन चुकी हैं।

रेखा शर्मा पंचकूला से भाजपा संगठन में सक्रिय रहीं और राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष के तौर पर महिला सुरक्षा व अधिकारों के प्रश्न पर उन्होंने अच्छा काम किया। लेकिन स्थानीय जनता उनसे यह अपेक्षा करती है कि उनकी पहचान केवल मंचों और वक्तव्यों तक सीमित न रहकर अंबाला की ज़मीन पर भी विकास योजनाओं में झलके। जनता का कहना है कि सांसद यदि अपनी ही ज़मीन पर अदृश्य लगें तो उनकी राष्ट्रीय पहचान का क्या लाभ?

दूसरी ओर, कार्तिकेय शर्मा का प्रवेश राजनीति में परंपरागत कार्यकर्ता-पथ से नहीं हुआ, बल्कि उद्योग और मीडिया के क्षेत्र से वे सीधे राज्यसभा तक पहुँचे। पिता विनोद शर्मा लंबे समय तक हरियाणा की राजनीति में मंत्री और कांग्रेस के प्रभावशाली नेता रहे। माता शक्ति रानी शर्मा भाजपा विधायक हैं और पहले अंबाला नगर निगम की मेयर भी रह चुकी हैं। भाई मनु शर्मा चर्चित नाम हैं। इतनी प्रभावशाली पृष्ठभूमि के बावजूद जनता सवाल करती है कि राज्यसभा सांसद कार्तिकेय शर्मा ने अंबाला के लिए कौन-सा बड़ा विकास कार्य करवाया? अभी तक उनका ध्यान कॉरपोरेट व मीडिया क्षेत्र में ही अधिक दिखाई देता है।

तीसरे हैं कांग्रेस के युवा चेहरा वरुण चौधरी। वे पूर्व मंत्री फूल चंद मुल्लाना के पुत्र हैं, स्वयं विधायक रह चुके हैं और पेशे से वकील हैं। 2024 के चुनाव में भारी मतों से जीतकर उन्होंने अंबाला से कांग्रेस को नई ऊर्जा दी। उनकी पत्नी भी मुलाना से विधायक हैं, जबकि पिता फूल चंद मुल्लाना कई बार विधायक, सांसद और हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हैं। यह परिवार लंबे समय से राजनीति में सक्रिय रहा है, परंतु जनता की राय में इनके खाते में भी कोई बड़ा विकास-कार्य नहीं दर्ज है। हाँ, वरुण चौधरी यह कह सकते हैं कि वे विपक्ष में हैं, इसलिए उनकी सुनवाई सत्ता के गलियारों में सीमित है, परंतु जनता अब बहानों से ज़्यादा परिणाम चाहती है।

विडंबना यह है कि तीन सांसद, मुख्यमंत्री का पैतृक संबंध और भाजपा का “ट्रिपल इंजन” होने के बावजूद अंबाला की हालत जस की तस है। रोजगार की स्थिति बिगड़ी हुई है, महँगाई ने जीवन को बोझिल बना दिया है, औद्योगिक निवेश ठप है और आधारभूत ढाँचे के बड़े प्रोजेक्ट केवल घोषणाओं में सिमटे हैं। अंबाला, जो हरियाणा का सबसे पुराना जिला है, राजधानी चंडीगढ़ के नज़दीक है और पड़ोसी राज्यों से सीधे जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण जंक्शन है, आज भी उपेक्षा का शिकार है।

जनता का आक्रोश अब विपक्ष तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सत्ताधारी दल के समर्थक भी असंतोष व्यक्त करते हैं। गाँव-कस्बों में चर्चाएँ यही हैं कि “इतनी ताक़तवर राजनीतिक स्थिति होने के बावजूद अंबाला को क्या मिला?” लोग कहते हैं कि चुनावी मौसम में धरना-प्रदर्शन और वादे तो होते हैं, परंतु चुनाव बीतते ही नेता गायब हो जाते हैं।

अंबाला की त्रासदी यह नहीं कि यहाँ संभावनाएँ नहीं हैं, बल्कि यह है कि यहाँ राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है। तीन सांसद और मुख्यमंत्री के पैतृक नाते से जुड़े होने के बाद भी यदि अंबाला विकास की मुख्यधारा में नहीं है, तो यह लोकतांत्रिक विफलता का सबसे बड़ा उदाहरण है।

आज अंबाला की जनता यही कहना चाहती है कि “अब वादों से नहीं, कार्यों से विश्वास अर्जित करो।” अगर तीन सांसद और मुख्यमंत्री मिलकर गंभीर प्रयास करें तो अंबाला हरियाणा का चमकता हुआ क्षेत्र बन सकता है। लेकिन यदि यह अवसर भी व्यर्थ गया, तो इतिहास इसे सबसे बड़ी राजनीतिक चूक के रूप में याद रखेगा।

राजनीति दरअसल दीपक और अंधकार का खेल है। दीपक छोटा हो तो भी अंधेरे को चुनौती देता है, परंतु यदि दीपक ही बुझा दिया जाए तो अंधेरा और गहरा हो जाता है। अंबाला की जनता अपने दीपकों के बुझने से डरी हुई है। सवाल यह नहीं कि अंधेरा कितना गहरा है; सवाल यह है कि जब तीन-तीन दीपक और मुख्यमंत्री की रोशनी मौजूद है, तब भी उजाला क्यों नहीं फैल रहा। यही प्रश्न अंबाला की राजनीति का सच और उसका भविष्य तय करेगा।

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