मंजुल भारद्वाज की कविता- मुझे चांद नहीं चाहिए!

कविता

मुझे चांद नहीं चाहिए!

 

– मंजुल भारद्वाज

 

मुझे चांद नहीं

एक अदद सम्मान जनक

रोज़गार चाहिए!

 

मुझे दिल फ़रेब

ख़्वाब नहीं

हसीन यथार्थ चाहिए!

 

जगमगाते

सितारे नहीं

जगमगाता

भविष्य चाहिए!

 

मुझे स्वर्ग नहीं

भूख से

निजात चाहिए!

 

जन्नत के

ऐशो आराम नहीं

दो जून सुकून की

रोटी चाहिए !

 

महल नहीं

एक सुकून

भरा घर चाहिए!

 

मुझे महका महका

इत्र नहीं

सांस लेने के लिए

शुद्ध हवा चाहिए!

 

मुझे हिंसा,युद्ध

खून से लथपथ

बदसूरत दुनिया नहीं

एक खूबसूरत

ज़िंदगी चाहिए!

 

मुझे भ्रम की

भुलभुलैया नहीं

सत्य का

पथ चाहिए!

 

मुझे इंद्रधनुषी

आसमां नहीं

शांति की सफ़ेद

चादर चाहिए!

 

मुझे सत्ता की

कुर्सी नहीं

मुक्ति के लिए

दो गज़

ज़मीन चाहिए!

 

चांद,तारे,आसमां

तुम मुझे क्या दोगे

मेरी इल्तिजा है

बस इस हरी भरी

धरती को बख़्श दीजिए!

 

 चांद,सितारे,

इंद्रधनुषी आसमां से

कुदरत ने पहले ही

मेरी झोली भरी है

बस मुझे

एक प्रेम भरी

दुनिया चाहिए!