बाबूखान – ईमानदार, कर्मठ और योद्धा की पहचान

हरियाणा: जूझते जुझारू लोग – 3

 

बाबूखान – ईमानदार, कर्मठ और योद्धा की पहचान

 

सत्यपाल सिवाच

 

बाबू खान, हाँ बाबू खान ! एक ऐसा शख्स जो बाहर-भीतर हर तरह से एक-सा है, वह अब हमारे बीच नहीं है। हरियाणा रोडवेज वर्कर्स यूनियन सम्बंधित सर्व कर्मचारी संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक 79 वर्षीय बाबू खान का लम्बी बीमारी के चलते 7 अगस्त 2025 को देहान्त हो गया। उनका पैतृक गांव करनाल जिले का सुल्तानपुर है। बाबूखान 1996 से 1998 तक हरियाणा रोडवेज वर्कर्स यूनियन के राज्य संयोजक रहे। इसके अलावा राज्य उप प्रधान व अन्य पदों पर कार्य किया। उनके नेतृत्व में कर्मचारियों की मांगों को लेकर हुए आंदोलनों में चंडीगढ़ में हरियाणा रोडवेज वर्कर्स यूनियन द्वारा 11 दिसंबर 1996 को ऐतिहासिक धरना दिया गया था, जिसमें हजारों रोडवेज कर्मचारियों ने भागीदारी की थी।

बाबूखान संघर्षशील, निडर व ईमानदार छवि के नेता थे। उनके निधन से संगठन और उनके परिवार को भारी क्षति हुई है। बाबूखान ने संगठन में हमेशा जाति व धर्म से ऊपर उठकर धर्मनिरपेक्ष समाजवादी विचारों को अपनाकर संगठन को एकजुट रखा। रिटायरमेंट होने के बावजूद वे लगातार हरियाणा रोडवेज वर्कर्स यूनियन के आंदोलनों,सम्मेलनों व हरियाणा रोडवेज कर्मचारी सांझा मोर्चा के आंदोलनों में शामिल होकर कर्मचारियों का हौसला बढ़ाते रहे।

मुझे निजी तौर पर उनसे अंतरंग बातें करने के अनेक मौके मिले। साल में एकाध बार वे पाकिस्तान में जाते रहते थे। वहाँ उनके कई करीबी रिश्तेदार रहते हैं। वहां के जनजीवन के बारे में जानने – समझने की उत्सुकता मन में बनी रहती थी। वे इसे बिल्कुल ऐसे ही देखते थे जैसे दो भाइयों का अलगौझा हो जाता है। उन्होंने बताया था कि पाकिस्तान में भी अवाम को भारत से वैसा ही प्रेम है। दो देशों के प्रति वैमनस्य निहित राजनीतिक स्वार्थों के चलते पनप रहा है।

वे ईमान को मानते थे। उनका दृढ़ मत था कि इन्सानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं हो सकता। उन्हें भारत की विविधता में बाग जैसी बहुरंगी खुशबू का अहसास होता था। अपनी आस्था के प्रति सच्चे रहकर दूसरे की आस्था को उतने ही सम्मान से देखेंगे तो टकराव पैदा ही नहीं हो सकता। टकराव के पीछे नफरत और हिकारत छिपी है। उसे धार्मिक भाव कह ही नहीं सकते।

बुनियादी रूप से बाबू खान एक कर्तव्यपरायण, ईमानदार और न्यायप्रिय शख्सियत का नाम है। यूनियन में आने का भी वे यही कारण बताते थे। सर्वकर्मचारी संघ बनने के समय से सेवानिवृत्त होने तक ही नहीं, स्वस्थ रहने तक लगातार सक्रिय रहे। वे नयी पीढ़ी के युवाओं को प्रेरित करते रहते थे। पदों की लालसा से दूर, सादगी का जीवन, सरल स्वभाव – ये आदतें सभी को उनके करीब ले आती थीं।

सलाम एक सच्चे योद्धा और अच्छे इन्सान को। आपको सदैव याद किया जाता रहेगा बाबू खान!(सौजन्य-ओम सिंह अशफ़ाक)

लेखक- सत्यवीर सिवाच

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