कर्मचारी आन्दोलन के ख्यातनाम नेता – बनवारीलाल बिश्नोई

हरिय़ाणाः जूझते जुझारू लोग – 2

कर्मचारी आन्दोलन के ख्यातनाम नेता – बनवारीलाल बिश्नोई

सत्यपाल सिवाच

छियासी साल की उम्र में भी हिसार शहर की सड़कों पर घूमते इस शख्स से किसी सार्वजनिक जनहित के प्रोग्राम में मिल सकते हैं। हिसार जिले के चिकणवास गांव में 15.जून 1938 को शिवराज व सुश्री शान्ति के यहाँ जन्मे बनवारीलाल बिश्नोई हरियाणा कर्मचारी आन्दोलन के उन गिने चुने नामों में से एक हैं जिनके नेतृत्व में बड़ी-बड़ी लड़ाइयां लड़ी गईं। वे 14 दिसंबर 1986 को गठित सर्वकर्मचारी संघ हरियाणा की एक्शन कमेटी के सह-संयोजक बनाए गए थे और सेवानिवृत्त होने तक संघ के महासचिव रहे। उनके तीन भाई और दो बहनें हैं। सन् 1956 मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद वे 5 अक्टूबर 1956 को बिजली बोर्ड में एल.डी.सी.पद पर नियुक्त हुए और 30 जून 1996 को हेड क्लर्क पद से सेवानिवृत्त हुए।

बनवारी लाल नौकरी लगने के शुरुआती समय से ही यूनियन से जुड़ गए थे। उन्हें 1973 में एच एस ई बी वर्करज यूनियन का यूनिट सचिव बनाया गया था। वे 1974 के बिजली कर्मचारियों के आन्दोलन में अच्छे संगठनकर्ता के रूप में उभरे। संगठन में जनतांत्रिक कार्यप्रणाली को लेकर विवाद छिड़ा तो बिश्नोई ने स्थापित नेतृत्व की मनमानियों को चुनौती दी। एकता बनाए रखने की तमाम कोशिशों के असफल हो जाने के बाद एच.एस.ई.बी. वर्करज यूनियन (हेड ऑफिस हिसार) के रूप में अलग संगठन बनाकर संघर्षों की विरासत को बचाने का प्रयास किया गया। 1981 में 18 जनवरी को गठित इस संगठन में उन्हें महासचिव का उत्तरदायित्व सौंपा गया।

बिजली कर्मचारियों के आन्दोलन के साथ-साथ वे राज्य में प्रगतिशील और जुझारू कर्मचारी आन्दोलन खड़ा करने के इरादे से अन्य संगठनों के तालमेल में रहे। जब कुरुक्षेत्र के नॉन – टीचिंग कर्मचारियों के संघर्ष में मदद देने का मुद्दा आया तो उसमें बिजली बोर्ड के कर्मचारी भी शामिल हो गए। वे शुरुआती दौर में सहयोग का वातावरण बनाने के लिए एफ.सी.आई. के नेता ओमसिंह और एल.आई. सी. ओ.पी. बख्शी को विशेष श्रेय देते हैं। यह भी ध्यान में रखने की बात है कि विकास प्रक्रिया में अहम् क्षेत्र होने के कारण बिजली कर्मचारियों के संगठन का अन्य क्षेत्रों में भी अच्छा प्रभाव था। जब दिसंबर 1986 में सर्व कर्मचारी संघ का गठन हुआ तो बनवारी लाल को ग्यारह सदस्यीय एक्शन कमेटी में सह – संयोजक का दायित्व सौंपा गया। संघ के संयोजक फूलसिंह श्योकंद ने 30 मार्च 1987 को आमरण अनशन शुरू कर दिया। उन्हें 5 अप्रैल 1987 को गिरफ्तार कर लिया तो बनवारी लाल बिश्नोई ने आमरण अनशन शुरू कर दिया जो 14 मई 1987 को समझौता होने तक जारी रहा। वे 40 दिन तक अनशन पर रहे। उन्हें भी गिरफ्तार करके पुलिस हिरासत में चंडीगढ़ सेक्टर 16 के जनरल अस्पताल में रखा गया था।

सन् 1993 के ज्वाइंट एक्शन कमेटी के आन्दोलन में भी उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई। उन्हें इस दौरान चंडीगढ़ से गिरफ्तार कर लिया गया था। बिश्नोई जी कुशल वार्ताकार हैं और उन्होंने मुख्यमंत्री को सहज किन्तु साफ शब्दों में बता दिया था कि ज्वाइंट एक्शन कमेटी की मांगें स्वीकार किए बिना आन्दोलन के निपटारे कोई रास्ता नहीं था।

बनवारीलाल बिश्नोई ने संघर्षों के दौरान कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्हें बहुत बार उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उन्हें 1974 की बिजली हड़ताल और 1993 की ज्वाइंट एक्शन कमेटी की हड़ताल के दौरान बर्खास्त कर दिया गया था। 1981-82 में बिजली कर्मचारियों के आन्दोलन में कई महीनों तक निलंबित रहे। सन् 1987 में 40 दिन भूखहड़ताल की। सन् 1987 और 1993 में वे कुल 57 दिन जेल में रहे।

नौकरी लगने के बाद सन् 1965 में हिसार शहर में रहने लगे थे। पत्नी व बच्चों की ओर से उन्हें पूर्ण सहयोग मिला। उन्हें भरोसा था कि वे समाज के काम लगे हुए हैं। यूनियन के काम से चंडीगढ़ जाते थे। कभी किसी व्यक्ति से गाड़ी या किराया नहीं लिया। आमतौर पर तो रोडवेज की बस में सफर करते थे।

आज नयी पीढ़ी के कार्यकर्ताओं की आदतों में जमाने के हिसाब से काफी बदलाव आया है। समय बदलता रहता है। फिर भी मैं कार्यकर्ताओं से उम्मीद रखता हूँ कि शराब और दूसरे नशे से दूर रहें; सादगी और पारदर्शी जीवन बनाएं; अपनी ड्यूटी अच्छे से करें और समाज में ऐसी छवि बनाएं कि जब भी आपका या यूनियन का जिक्र हो  तो अच्छाई में चर्चा की जाए।

बनवारी लाल बिश्नोई अनुभव साझा करते हुए वे बताते हैं कि वह जेल में प्रतिदिन मीटिंग करते थे। जेल सुपरिंटेंडेंट ने दबाव बनाने की कोशिश की लेकिन कर्मचारियों के सामूहिक प्रतिरोध के आगे उनकी दाल नहीं गली। आमरण अनशन के दौरान कभी मृत्यु का भय नहीं हुआ। उन्होंने बेबाक ढंग से कहा कि सोच विचार कर ही इसका निर्णय लिया था। मृत्यु सत्य है। एक दिन हमें जाना ही है। तब भय कैसा? समाज के लिए प्राण चले भी जाते तो पछतावा न था। आन्दोलन को उठाने यानी कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने के लिए भूख हड़ताल जरूरी थी। ऐसा निर्णय करते समय ठोस स्थिति के आधार पर ही संघर्ष के स्वरूप का फैसला लेना होता है। उनका कहना है कि भूख हड़ताल के समय अध्यापिका रामरती और बीमा निगम के गुरबचन सिंह ने उनको बहुत बार भावात्मक बल प्रदान किया। (सौजन्य-ओम सिंह अशफ़ाक)

लेखक -सत्यपाल सिवाच

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