एस.पी. सिंह की ग़ज़ल — सफ़र का पता

ग़ज़ल

सफ़र का पता

 एस.पी. सिंह

सफ़र के हर मोड़ पर तलाश की है मैंने

किस मंज़िल को चुन्नानी है — तुम्हें है देखना

 

मक्का की रहमत, मथुरा की रौशनी

किस राह को रोशन करनी है — तुम्हें है देखना

काबा की ताबियाँ, द्वारका के दर

किसको एतबार दिलानी है — तुम्हें है देखना

रूह की तिश्नगी में तसव्वुर की पीर

कौन सा जल पिलानी है — तुम्हें है देखना

ख़ामोश चाँदनी में हक़ीक़त का अक्स

किस सितारे को जलानी है — तुम्हें है देखना

दिल के वीराने में गुमनाम ताबीरें

किस सफ़र को बुलानी है — तुम्हें है देखना

लम्हों की धूप, साए की तवीलियाँ

कौन सी छाँव बिछानी है — तुम्हें है देखना

इश्क़ की रेत पर पैग़ाम-ए-मोहब्बत

कौन सा नाम मिटानी है — तुम्हें है देखना

सद्र-ए-महफ़िल में रह गए सिर्फ़ ख़्वाब

किस हक़ीक़त को सजानी है — तुम्हें है देखना

बेबाक अल्फ़ाज़ में रखी है आग-ए-रूहानी

किस तरह ख़ाक उड़ानी है — तुम्हें है देखना