कविता
तूफानों से घिरा शख्स
ओमप्रकाश तिवारी
देखो भाई
ज्यादा हुज्जत मति करो
नहीं तो
हम भी अड़ जाएंगे
पिल जाएंगे भाई
तो पिलपिला बना देंगे
जानता हूँ
भूख बड़ी है
जिन्दगी बचाने के लिए
लड़ना पड़ता है
भूख से
लेकिन स्वाभिमान से
बड़ी नहीं है भूख
पूरी जद्दोजहद करेंगे
भूख से मरने से पहले
फिर भी विफल रहे तो
कुछ तूफानी कर जाएंगे
जिम्मेदार को भी
हमसफ़र बनाएंगे
आग के अंगारों पर चलाएंगे
संवेदनाएं यदि
तुम्हारी मर जाएंगी तो
जिन्दा मेरी भी नहीं रहेंगी
इसलिए कहता हूं
हुज्जत मति करो
नहीं तो पिल जाएंगे
यदि पिल गए तो
पिलपिला बना देंगे।
कसम से कह रहा हूँ
भरा पड़ा है बहुत कुछ
धुआं धुआं सा हो रिआ
हवा देने की जरूरत है
आग भड़क जाएगी
तूफानों से घिरा शख्स
कभी भी तूफानी हो सकता है।
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