कविता
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सीमाएं
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ओमप्रकाश तिवारी
विदेश जाना
मैं भी चाहता हूं
नौकरी करने
या घूमने नहीं
किसी जलसे में
शामिल होने नहीं
कोई फ्राड करने
छिपाने भी नहीं
वश सीमाओं को
देखना चाहता हूं
जो एक से दूसरे देश को
करती हैं विभाजित
पासपोर्ट है मेरे पास
जब्त नहीं किया है
किसी न्यायालय ने
किसी भी अपराध में
दरअसल मैं पहले
देश में बनी सीमाओं का
दीदार करना चाहता हूं
महसूस करना चाहता हूं
विभजित करने वाली
खुरदुरी रेखाओं को
मुझे यकीन है पूरा
दो देशों की सीमाएं
कुछ इसी तरह होंगी
कुछ सीमाएं मन में हैं
कर रहा हूं कोशिश
इन्हें भी समझने की
मिटाने और हटाने की।