छप्पन इंची सीना
रमेश जोशी
सुख के सपनों वाला मौसम
दिखता आज कहीं ना भगतो
हवा हो गए सब अच्छे दिन
मुश्किल सबका जीना भगतो
अंगद के पाँवों के नीचे
दिखती कहीं ज़मीं ना भगतो
भगवा भेष धरे फिरता था
निकला बड़ा कमीना भगतो
आँख दिखाने वाले को अब
आने लगा पसीना भगतो
आज तीस तक सिकुड़ गया है
छप्पन इंची सीना भगतो
प्रोफेसर सुरेंद्र कंवल की हिंदी ग़ज़ल और रमेश जोशी जी की की रचना/गीत दोनों पढ़ें हैं। दोनों ही बहुत सटीक, सार्थक और सामयिक रचनाएं हैं। ऐसी रचनाओं को प्रकाशित करते रहिए।
-ओम सिंह अशफ़ाक, कुरुक्षेत्र।