ग़ज़ल
दिल पर असर होने लगा
सुरेन्द्र कंवल
आपका, दिल पर मिरे जबसे असर होने लगा।
जिंदगी का हर सफर आशां सफर होने लगा।
रंग बदला सा लगा है जिसको भी देखा यहां,
आस्थाओं का असर सब बे असर होने लगा।
मर रहा हर रोज भीतर आदमी में आदमी,
आदमी रिश्तों से जबसे बेखबर होने लगा।
चैन से जीना मय्यसर हो गया उस दिन मुझे,
गैर का घर भी यहां जब अपना घर होने लगा।
रह गई सारी कवायद बस यहां यूं ही धरी,
आदमी की जान जबसे माल-जर होने लगा।
प्यार की पूंजी बची है आज जो दिल में मेरी,
आजकल मुझको वही खोने का ड़र होने लगा।
ग़म से हर रिश्ता यहां उसने निभाया था मगर,
क्यूं सुरेंदर आज ग़म से बेखबर होने लगा।