मंजुल भारद्वाज की कविताः भारत हर रोज़ हार रहा है

 कविता

भारत हर रोज़ हार रहा है

– मंजुल भारद्वाज

भारत हर रोज़ हार रहा है

जीत रहे हैं

मुठ्ठी भर पूंजीपति

जो लूट रहे हैं भारत के

जल,जंगल,ज़मीन और आसमान

सब लूटकर बांट रहे हैं

भूख,गरीबी,बेरोजगारी और कर्जबाजारी !

भारत हर रोज़ हार रहा है

जीत रहे हैं

चंद विकारी,झूठ,नफ़रत फैलाने वाले

जुमलेबाज नेता

हर रोज़ हार रही है भारतीयता

सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारा

हार रही है धर्मनिरपेक्षता और विविधता !

भारत हर रोज़ हार रहा है

जीत रहे हैं

सत्ता की आस्तीन में पलते

मासूम बच्चियों,बहनों ,बेटियों

माताओं का मांस नोचते

लहू पीते गिद्ध

हार रहा है भारत हर रोज़

अपनी बेटियों की अस्मिता लुटता देखकर

उनकी चीखें सुनकर स्तब्ध है भारत !

भारत हार रहा है हर रोज़

जीत रहे हैं

न्याय का गला घोंटते

मुठ्ठी भर न्यायधीश

न्याय व्यवस्था और न्याय को सलीब पर चढ़ा

देश के सारे संसाधनों का उपभोग करते

यह मिलोर्ड

चंद अमीरों और नेताओं को न्याय बांटते हैं

करोड़ो जनता न्याय की राह तकते ताकते

मर जाती है!

भारत हार रहा है हर रोज़

जीत रहे हैं

संसद में बैठे मूर्ख,गंवार,धर्मांध गुंडे

हार रही है संसदीय गरिमा

परंपरा और संसद!

भारत हर रोज़ हार रहा है

जीत रहे हैं

चंद अफ़सर

जो संविधान की रक्षा की कसम खा कर

चंद रुपयों के बदले

संविधान खा गए हैं!

भारत हर रोज़ हार रहा है

जीत रहा है मुनफाखोर मीडिया

झूठ,अफ़वाह,नफ़रत,दलाली और चापलूसी बेचकर

दे रहे हैं धोखा देश के लोकतंत्र को

सत्य को,जनता के विश्वास को

पत्रकारिता को !

भारत हार रहा है हर रोज़

जब जनता मुफ़्त अनाज के बदले

अपना वोट बेचती है

सरकार से सवाल करने की बजाए

लुटेरी सरकार का जयकारा लगाती है!

भारत हर रोज़ हार रहा है

जीत रही है अज्ञानता

धर्म और पाखंड !