लावारिस डॉग्स बनाम सुप्रीमकोर्ट
डॉ. एम एल परिहार
देश में लावारिस डॉग्स की अंधाधुंध बढ़ती संख्या. रैबीज के कारण दुनिया में सबसे ज़्यादा मौतें भारत में… सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला कि लावारिस डॉग्स की नसबंदी ऑपरेशन (Sterilisation) कर शेल्टर होम में रखा जाए. इसमें भावनाओं के लिए कोई स्थान नहीं है क्योंकि देश में रैबीज यह एक विकराल समस्या है.
इस गंभीर मुद्दे से मेरा व्यक्तिगत गहरा जुड़ाव है, बहुत रूचि है, कैसे ?आइए विस्तार से बताता हूं.
दरअसल मैं एक वेटनरी सर्जन हूँ और मेल में castration और फ़ीमेल डॉग्स में ovario-hystrectomy नसबंदी ऑपरेशन का विशेषज्ञ हूँ. हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट, स्टेट गवर्नमेंट राजस्थान से मैंने 2016 में वॉलंट्री रिटायरमेंट लिया था.
पूरी दुनिया में जानलेवा रेबीज़ के कारण सबसे ज़्यादा मौतें भारत में होती है. इसका कोई इलाज नहीं है सिर्फ़ बचाव ही उपाय है रोग हो जाने पर पशु हो या मनुष्य, मृत्यु निश्चित है. भारत के ग्रामीण ग़रीब ही अधिक दर्दनाक मौत के शिकार होते हैं.
देश में लावारिस डॉग्स में अंधाधुंध बढ़ती संख्या और रेबीज़ पर कंट्रोल करने के लिए नसबंदी ऑपरेशन की मॉडर्न तकनीक को सीखने के लिए मैं 1993 में जयपुर से एडिलेड, ऑस्ट्रेलिया गया था सीखने के बाद मैं वहाँ डॉग्स की यह सर्जरी करता था. भारत में इस अभियान को शुरू करने के लिए 1994 में भारत लौटा.
डॉग्स बर्थ कंट्रोल की यह टेक्नीक जयपुर में बड़े स्तर पर शुरू की. सारा मैनेजमेंट खर्च भारतीय समाज या सरकार नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया की एक संस्था और कुछ मानवतावादी लोग वहन करते थे जो भारत को रैबीज के भयानक विकराल हालात से मुक्ति दिलाना चाहते थे. यहाँ के धार्मिक रुढ़िवादी लोग उनको सहयोग करने की बजाए कई तरह की परेशानियाँ पैदा करते थे.
मैं अकेला सर्जन था और दिनभर सर्जरी करता था जयपुर में कुछ ही वर्षों में लावारिस डॉग्स की संख्या में भारी कमी आई. देश के अन्य भागों में भी इस संस्था के लिए सेंटर है वहाँ के डॉक्टर्स जयपुर ट्रेनिंग लेने आते थे .
बाद में कई राज्यों की सरकारों ने नगर निगम के माध्यम से यह कार्यक्रम शुरू किया लेकिन धार्मिक कट्टरता, बेपरवाह ब्यूरोक्रेसी , भ्रष्टाचार , राजनेता और सरकारों की अरुचि के कारण कई शहरों में यह कार्यक्रम सफल नहीं हो पाया.
इस कार्यक्रम की सफलता में सबसे बड़ी बाधा धार्मिक कट्टरता और कथित पशु प्रेमियों का ढोंग है. पशु क्रूरता निवारण की ओट में ऐसे लोग न डॉग्स को पकड़ने में भी नही देते हैं जबकि इस अभियान के तहत बहुत आधुनिक और मानवीय ढंग से डॉग्स को पकड़ कर एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर पर लाया जाता हैं. बड़े पैमाने पर प्रतिदिन मेल फ़ीमेल डॉग्स की नसबंदी की जातीं है.लगभग सप्ताहभर तक ऐसे साफ़ सुथरे कैनल्स में रखकर पोस्ट ओपरेटिव केयर की जाती है. अच्छा आहार दिया जाता है और आख़िर में एंटिरैबीज वैक्सीन लगाकर फिर से उसी जगह पर छोड़ दिया जाता है जहाँ से पकड़ा जाता है. यह सारा काम बहूत प्रशिक्षित टीम और और सर्जन्स द्वारा किया जाता है.
मैं वापस स्टेट गवर्नमेंट की सेवा में लौटा तो डिपार्टमेंट और स्टेट गवर्नमेंट को को बड़े पैमाने पर इस इस बेहद ज़रूरी कार्यक्रम को पूरे राज्य के गाँवों ,कस्बों और शहरों में चलाने के लिए आग्रह किया लेकिन उस समय किसी ने इसमें रुचि नहीं ली. हालाँकि यह कार्यक्रम जयपुर व देश के कई शहरों में अभी भी सरकार के सहयोग से संचालित हो रहा है लेकिन पढ़ें पैमाने पर नहीं हो रहा है.
देश के हर कोने में बढ़ती हुई लावारिस डॉग्स की संख्या को और रैबीज ज़ कंट्रोल के लिए यह एक बहुत ही प्रभावशाली कार्यक्रम है. इस जानलेवा रोग सबसे ज़्यादा गांव के गरीब लोग दर्दनाक मौत के शिकार होते हैं लेकिन बेपरवाह ब्यूरोक्रेसी, धार्मिक कट्टरता और कथित पशु प्रेमियों का ढोंग इसमें सबसे बड़ी बाधा है.
Key hole Ovario-Hystrectotomy. यानी बहुत ही छोटे चीरे द्वारा फ़ीमेल की ओवरी व यूटेरस को बाहर निकालने की नसबंदी ऑपरेशन की टेक्नीक. यह मैने पहली बार शुरू की थी . यह मेरी रुचि का अभियान था लेकिन समाज, राजनेता और सरकारों की बेरूखी के कारण इसको बहुत आगे नहीं बढ़ा पाया. जबकि मेरी बहुत इच्छा थी. फिर वॉलंटरी रिटायरमेंट के बाद मानव कल्याण के लिए मैं भगवान बुद्ध की वाणी के प्रचार प्रसार में रम गया.
सबका मंगल हो… सभी प्राणी सुखी हो
लेखक डॉ. एम एल परिहार पाली, जयपुर में रहते हैं।
