आओ हम सब मिलकर लिखें
नूर मोहम्मद नूर
आओ, हम सब मिलकर
लिखें, कोई नई किताब
पाई पाई लेना ही हो
ख़ुद से अगर हिसाब
वो हिसाब क्या देंगें
जिनकी तबियत ठीक नहीं
दिल जिनका पत्थर का
जिनकी नीयत ठीक नहीं
जो हैं ससुरे जनम जनम के
इनसां बहुत ख़राब
हमने क्या क्या किया
नहीं क्या किया, ज़रूरी था
चाहे भाषा गलत लिखो
कैसा मजबूरी था
पहले तो ख़ुद को ही भैय्या
देना पड़े जवाब
जैसी करनी वैसी भरनी
काहे का अफसोस
दुख ही दुख क्यों भाग मे सबके
सुख क्यों है रूपोश
जब हमने बोए बबूल तो
कैसे खिले गुलाब