आलोक वर्मा
चुनाव के तीन दिन के भीतर ही केंद्रीय खेल मंत्रालय ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष संजय सिंह समेत पूरे संगठन को निलंबित कर दिया गया। इसबीच भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष और सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने कहा है कि वह अब इस खेल की राजनीति से दूर रहेंगे। माना जा रहा है कि आगामी लोक सभा चुनाव के चलते केंद्र सरकार ने मजबूरी में यह कदम उठाया है। क्या कुश्ती संघ के निलंबन से खिलाड़ियों और जाटों की भाजपा से नाराजगी दूर हो जाएगी।
भाजपा सांसद बृज भूषण शरण सिंह के करीबी संजय सिंह गत 21 दिसंबर को भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष चुने गए थे। उनका पैनल भारी अंतर से जीता था। संजय सिंह के अध्यक्ष बनने के तुरंत बाद जिस तरह से ओलंपियन साक्षी मलिक ने प्रेस कांफ्रेंस कर अश्रुपूरित नेत्रों से कुश्ती करिअर को अलविदा करने की घोषणा की और इशारों-इशारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर खेल मंत्रालय तक पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि मुझसे कहा गया था कि बृजभषण शरण सिंह और उनके सहयोगियों को भारत कुश्ती संघ का चुनाव नहीं लड़ने दिया जाएगा तथा इसकी जिम्मेदारी किसी महिला खिलाड़ी को दी जाएगी। इसके बाद खेल मंत्रालय के फैसले से पहले उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर संजय सिंह के फैसले पर सवाल खड़े किए थे। अगले दिन साक्षी मलिक ने लिखा, ‘मैंने कुश्ती छोड़ दी है पर कल रात से परेशान हूँ। वे जूनियर महिला पहलवान क्या करें जो मुझे फोन करके बता रही हैं कि दीदी इस 28 तारीख़ से जूनियर नेशनल होने हैं और वो नयी कुश्ती फेडरेशन ने नन्दनी नगर गोंडा में करवाने का फैसला लिया है।’ उन्होंने आगे लिखा था, ‘गोंडा बृजभूषण का इलाका है, अब आप सोचिए कि जूनियर महिला पहलवान किस माहौल में कुश्ती लड़ने वहां जाएंगी। क्या इस देश में नंदनी नगर के अलावा कहीं पर भी नेशनल करवाने की जगह नहीं है क्या, समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ।’ उससे लगा था कि यह मामला यहीं नहीं रुकेगा, दूर तलक जाएगा।
साक्षी की घोषणा के दूसरे ही दिन दूसरे ओलंपिक पदक विजेता बजरंग पूनिया ने साक्षी मलिक का समर्थन करते हुए केंद्र सरकार को अपना पद्म श्री अवॉर्ड वापस करने की घोषणा कर दी। वह पद्म श्री अवार्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लौटाना चाहते थे, लेकिन अप्वाइंटमेंट न होने की बात कहकर पुलिस ने बजरंग को प्रधानमंत्री से नहीं मिलने नहीं दिया तो वह अपना अवार्ड प्रधानमंत्रा आवास के बाहर सड़क पर रखकर चले आए थे। उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर प्रधानमंत्री के नाम एक पत्र पोस्ट किया और कुश्ती संघ को लेकर केंद्र सरकार के रवैये पर दुख जताया था। इसके साथ ही पैरा बाक्सर विजेंद्र सिंह ने भी पदमश्री लौटाने की घोषणा करते हुए साक्षी मलिक का समर्थन किया। पैरा ओलंपिक खेलों में भारत के लिए कई गोल्ड मेडल जीत चुके बधिर बाक्सर वीरेंद्र सिंह ने हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर से गुहार लगाई। उन्होंने कहा है कि राज्य में उनके जैसे बधिर खिलाड़ियों को पैरा एथलीट का दर्जा मिलना चाहिए। वह पहले भी इसके लेकर मांग करते रहे हैं। वीरेंद्र सिंह ने सीएम मनोहर लाल खट्टर को टैग करते हुए अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, ‘माननीय मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जी क्या मैं पाकिस्तान से हूं। कब बनेगी कमेटी, कब मिलेंगे समान अधिकार। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, जब मैं आपसे मिला, आपने ही कहा था हम आपके साथ अन्याय नही होने देंगे, अब आप ही देख लो।’ वीरेंद्र सिंह कोई सामान्य खिलाड़ी नहीं हैं। हरियाणा के झज्जर में जन्में वीरेंद्र यादव भारत के पूर्व पहलवान हैं। उन्होंने 2005 मेलबर्न डेफलंपिक्स में गोल्ड मेडल और 2009 तायपेई डेफलंपिक्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। 2008 और 2012 में बधिरों की विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में भी वीरेंद्र सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीत चुके हैं। उन्हें राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। इस तरह से लगातार ओलंपिक पदक विजेताओं द्वारा केंद्र सरकार की नीयत पर संदेह जताने और खुलकर विरोध करने से सरकार दबाव में आ गई।
नवनिर्वाचित भारतीय कुश्ती संघ को निलंबित करते हुए खेल मंत्रालय ने कहा है कि इस फैसले में डब्ल्यूएफआई के संविधान के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया था। डब्ल्यूएफआई के नवनिर्वाचित कार्यकारी निकाय का फैसला डब्ल्यूएफआई के प्रावधानों और नेशनल स्पोर्ट्स डेवलेपमेंट कोड का उल्लंघन हैं। ऐसे फैसले कार्यकारी समिति लेती है। इस फैसले में नए अध्यक्ष की मनमानी दिखाई देती है, जो कि सिद्धांतों के खिलाफ है। खेल मंत्रालय ने कहा कि ऐसा लगता है कि नया कुश्ती संघ खेल संहिता की पूरी तरह अनदेखी कर रहा है और इस पर पिछले पदाधिकारियों का कंट्रोल है।
इसबीच, एक और डेवलपमेंट हुआ जो दर्शाता है कि न सिर्फ केंद्र सरकार बल्कि भाजपा भी खिलाड़ियों के फैसले से दबाव में है। सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने कुश्ती संघ के निलंबित होने की घोषणा के बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की और इसके बाद कहा कि भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लोकतांत्रित प्रक्रिया के तहत संपन्न हुए थे। अब मैं इस खेल की राजनीति से दूर रहूंगा। कुश्ती को लेकर जो कुछ भी करना होगा वह नई संस्था करेगी। मेरा इससे कोई लेना देना नहीं है। सभी मेंबर चुने जा चुके हैं। अब उन्हें सरकार से बात करनी है या कानूनी सलाह लेनी है। अब इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है। लेकिन अचानक बीजेपी अध्यक्ष से मिलने के बाद उनकी भाषा बदल गई।
निश्चित है कि बृजभूषण शरण सिंह की अचानक आत्मा तो जग नहीं गई होगी कि वह ऐसी बातें कह रहे हैं। जब महिला खिलाड़ियों ने कई दिनों तक जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया और उनके इस्तीफे की मांग की तब उनकी वाणी और व्यवहार सबने देखा था। संजय सिंह और अपने पूरे गुट की भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव में जीत के बाद ‘दबदबा है, दबदबा रहेगा’ का पोस्टर-बैनर उनके घर के बाहर लगा था, वह बृजभूषण सिंह के अतिविश्वास या अहंकार का ही द्योतक था कि उनका कोई कुछ कर नहीं सकता।
बृजभूषण शरण सिंह का जेपी नड्डा से मिलना और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और पूरी नवनिर्वाचित टीम को आनन-फानन में निलंबित करने से साफ पता चलता है कि नरेंद्र मोदी सरकार यह आकलन करने में चूक गई कि भारतीय कुश्ती संघ पर बृजभूषण शरण सिंह के गुट के जीत जाने से देश में इस तरह का बवाल मच जाएगा। न सिर्फ खिलाड़ी नाराज होंगे बल्कि जाट समुदाय भी इसके खिलाफ खड़ा हो जाएगा।
तृणमूल कांग्रेस के श्रीरामपुर से निर्वाचित सांसद कल्याण बनर्जी द्वारा उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री को पहले खुद उप राष्ट्रपति और बाद में पूरी भाजपा द्वारा मुद्दा बनाते हुए जाट समुदाय और किसानों के अपमान होने की बात प्रचारित की गई। लेकिन यह घटना को मुद्दा बनाने की उप राष्ट्रपति से लेकर पूरे केंद्रीय मंत्रिमंडल तथा भाजपा और उनकी सोशल मीडिया टीम ने तो मीडिया के साथ मिलकर पूरी कोशिश की। लेकिन भारतीय कुश्ती संघ में सांसद बृजभूषण सिंह के गुट के चुनाव जीतने पर साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट ने प्रेस कांफ्रेंस कर दी और इसके खिलाफ साक्षी ने कुश्ती खेलने से संन्यास लेने की घोषणा कर दी। इसने सारा खेल बिगाड़ दिया और सब कुछ उलट गया।
कांग्रेस समेत विपक्षी दलों और बाद में जाट समुदाय और खापों ने बृजभूषण सिंह के खिलाफ जंतर-मंतर पर आंदोलन कर रहे खिलाड़ियों की सुनवाई न होने, उन पर पुलिस बर्बरता तथा तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों को आंदोलनजीवी, खालिस्तानी, आतंकवादी आदि कहे जाने व आंदोलन के दौरान सात सौ किसानों की शहादत के लिए केंद्र सरकार को न सिर्फ दोषी माना बल्कि उप राष्ट्रपति से भी पूछ लिया कि तब आपका जाट और किसान अभिमान कहां चला गया था? आपने इनके लिए आवाज क्यों नहीं उठाई?
इससे यही लगता है कि लोकसभा चुनाव के निकट होने के चलते जाट और किसानों के वोट बीजेपी के खिलाफ जाने के भय से ही केंद्र सरकार ने यह बृजभूषण शरण सिंह की मंडली के खिलाफ यह कदम उठाया है। यह ठीक वैसे ही है जैसे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के चलते प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया था। अब यह देखना होगा कि क्या नाराज जाट समुदाय और किसान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को माफ कर देगा और उनके साथ हो जाएगा। साथ ही कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन जाटों और किसानों की इस नाराजगी को कितना भुना पाते हैं। जो भी हो, इस प्रसंग से भाजपा को नुकसान तो हुआ है।