संविधान और कानून का शासन खत्म और अघोषित आपातकाल लागू 

 मुनेश त्यागी

    विपक्षी दलों के नेताओं को संभल की घटना के बारे में जानकारी हासिल करने और उन्हें संभल के लोगों से न मिलने देने की घटना बहुत कुछ बयां कर रही है। सरकार का कहना है कि भारत में संविधान और कानून का शासन है। इसी के तहत यहां सारी कार्यवाहियां की जा रही है और सरकार भी इन्हीं के तहत कायम है और इन्हीं के अंतर्गत कार्यवाही कर रही है। मगर आजकल हम देख रहे हैं कि सरकार एक के बाद एक जनता के संवैधानिक और कानून के तहत दिए गए जनवादी अधिकारों पर भयानक हमले कर रही है और उनका खुलेआम हनन कर रही है और संविधानिक प्रक्रियाओं के तहत विपक्षी दलों को संसद में भी और संसद के बाहर भी काम करने पर पूरी रोक लगा रही है। जैसे उसने विपक्षी दलों के सारे अधिकार छीन लिए हैं।

      इन दिनों संभल का मामला पूरे देश और दुनिया में छाया हुआ है। इस मामले में सरकार का कहना है कि वहां पर मुस्लमान दंगाइयों द्वारा शांति और सुरक्षा बिगाड़ी गई है और इन्हीं दंगाई लोगों ने शासन, प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों पर हमला किया है, उन्हें घायल किया है। जबकि दूसरी तरफ दंगा पीड़ितों और विपक्षी दलों के नेताओं का कहना है कि संभल की घटना सरकार द्वारा अंजाम दी गई है ताकि उत्तर प्रदेश के चुनावों की धांधलियों पर जनता के बीच कोई चर्चा ना हो सके और दूसरे अडानी मामले पर पूरे देश की जनता का ध्यान भटकाया जा सके, उस पर कोई चर्चा ना हो। सरकार लगातार अपनी सोची समझी रणनीति के तहत, इन्हीं मुद्दों और नीतियों को आगे बढ़ा रही है।

पिछले दिनों हमने संसद में देखा है कि सरकार संभल के मामले पर विपक्षी पार्टियों को चर्चा करने की कोई इजाजत नहीं दे रही है और वह इस मामले पर जनता की और विपक्षी दलों की कोई आवाज सुनना ही नहीं चाहती। यहीं पर सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर क्या कारण है कि वह पत्रकारों और लेखकों को संभल के दंगा पीड़ितों से मिलने नहीं दे रही है, उनसे बातचीत करने नहीं दे रही है और अब तो हद हो गई है कि जब विपक्ष के नेता राहुल गांधी और उनकी पार्टी के लोगों को, सरकार ने संभल के दंगा पीड़ितों से मिलने की मनाही कर दी और हद तो तब हो गई, जब राहुल गांधी ने शासन और पुलिस प्रशासन के अधिकारियों से कहा कि वह अकेले ही दंगा पीड़ितों से मिलना चाहते हैं, उन्हें इसकी अनुमति दी जाए, मगर उनकी तमाम कोशिशें के बाद उत्तर प्रदेश सरकार और उसके अधिकारियों ने संसद में विपक्षी नेता राहुल गांधी को संभल के दंगा पीड़ितों से मिलने की इजाजत नहीं दी।

आखिर क्या कारण है? सरकार पत्रकारों, लेखकों और विपक्षी दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को संभल जाने से क्यों जो रोक रही है? वह क्या छुपा रही है? सरकार की पिछले दस दिनों की तमाम चालबाजियों से यह बात मुख्य रूप से सामने आ रही है कि वहां सरकार का रुख गलत है। वह बहुत कुछ छुपा रही है। वह सच्चाई और हकीकत को जनता के सामने आने से रोक रही है। उसे डर है कि अगर पत्रकार, लेखक और विपक्षी दलों के नेता वहां जाएंगे और दंगा पीड़ितों से बात करेंगे और दंगों में हुई हिंसा और हत्याओं की सच्चाई और हकीकत जानने की कोशिश करेंगे तो सरकार की सारी मनमानी हरकतें और कानून विरोधी गतिविधियां देश और जनता के सामने आ जाएंगी।

अपनी इन्हीं जनविरोधी, मनमानी और सांप्रदायिक सौहार्द को गंभीर ख़तरा पैदा करने वाली साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की नफरत की नीतियों को आगे बढ़ते हुए, केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने संविधान के प्रावधानों और कानून के शासन को ताक पर रख दिया है। अब उन्होंने अघोषित रूप से भारत में आपातकाल और फासीवाद लागू कर दिया है। उसने संविधान की तमाम मर्यादाएं और कानून के शासन को ताक पर रख दिया है। अपनी इन्हीं नीतियों के कारण वह संभल की सच्चाई और हकीकत को देश और दुनिया के सामने आने से रोक रही है और जानबूझकर जनता की आवाज दबा रही है।

अब वह खुलकर और बिना किसी खौफ-ओ-लिहाज संवैधानिक अधिकारों और आम जनता के और विपक्षी दलों के संवैधानिक आजादियों पर हमला कर रही है। वह उन्हें बोलने, लिखने, पीड़ित जनता से मिलने और हकीकत जानने के बुनियादी अधिकारों से रोक रही है और यह भी एक सच्चाई है कि उसे अपनी इन समस्त कारस्तानियों पर कोई अफसोस नहीं है। उसे भारत के संविधान, कानून के शासन, लोक-लिहाज और संवैधानिक राजनीतिक मर्यादाओं की कोई परवाह नहीं है। अब पूरा शासन प्रशासन उसके नक्शे कदम पर नाच रहा है।

सरकार और तमाम अधिकारी भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को भी खुलकर धाराशाई कर रहे हैं जिसमें संभल मामले की सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पूरी स्पष्टता के साथ कहा था कि पूरी सरकार और शासन प्रशासन के अधिकारियों को सच्चाई और निष्पक्षता से काम करना चाहिए। इस सबसे से साफ हो गया है कि केंद्र और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार के लिए संवैधानिक प्रावधानों और कानून के शासन के कोई मायने नहीं रह गए हैं। अब उन्होंने खुले तौर पर भारत में अघोषित आपातकाल और फासीवादी नीतियों और तौर तरीके लागू कर दिए हैं। सरकार के ये तमाम संविधान विरोधी, कानून विरोधी, जन विरोधी और मनमाने हालात और तौर-तरीक बता रहे हैं कि भारत की जनता को एकजुट होकर उनके खिलाफ संघर्ष करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह गया है। ऐसा करके ही संविधान और कानून के शासन को बचाया जा सकता है।