ओम प्रकाश तिवारी की कहानी – काली कुतिया

प्रतीकात्मक फोटो 

ओम प्रकाश तिवारी 

देव को शहर से गांव गए तीन-चार दिन हो गए थे। इस बीच उसे काली कुतिया नहीं दिखी। वह अक्सर घर में या घर के सामने वाले दरवाजे पर बैठी रहती थी। उसकी जगह अब खाली थी। जानने के लिए देव ने अपनी मां से पूछ लिया।

-मां काली कुतिया नहीं दिख रही है? मां अब 70 साल की उम्र से अधिक की हो गई हैं। उन्हें कम सुनाई देता है। देव की बात को उन्होंने नहीं सुना तो उसे फिर से वही वाक्य दोहराना पड़ा। इस बार थोड़ा तेज आवाज में बोलना पड़ा। सुनकर मां बोलीं।

– अरे भैया, पता नहीं कहां चली गई।

– चली गई? देव को आश्चर्य हुआ। इसकी वजह यह थी कि वह आज तक कहीं अकेले नहीं गई थी। बचपन से ही कमजोर काया की थी। पैदा होने के बाद उसके भाई-बहन मां का दूध पीने लगते तो वह किसी तरह मां के पास तक पहुंचती थी। इसी बीच उसकी मां बच्चों से पीछा छुड़ाकर चली जाती। वह कुछ दूर तक मां के पीछे भागती फिर रुक जाती। लौटकर अपनी सुरक्षित जगह चली जाती। गैरपालतू कुतिया के लिए पांच छह बच्चों के लिए दूध पिलाने भर की खुराक मिलना वैसे भी मुश्किल होता है। उसकी मां दिनभर भटकती रहती थी। माैका मिलने पर बच्चों को दूध पिलाने आ जाती थी। इसमें भी काली कुतिया पीछे रह जाती।

समय के साथ उसके भाई-बहन एक एक करके मर गए। बची केवल वह। उसकी दशा पर तरस खाकर देव की मां काैरा देने लगीं। वह भी इसी आस में कहीं न जाती। पूरे दिन घर के बाहर पड़ी रहती। जब कच्चा घर था तो आंगन में रसोई के सामने बैठी रहती। उसे घर में देखकर देव के चाचा डंडा मारकर भगाते। साथ ही बहुत भद्दी गाली देते। उन्हें देखते ही वह अक्सर भाग जाती।

कमजोर थी, लेकिन उसे जान बचाना आता था। वह अक्सर छिपकर बैठती। घर में भी ऐसी जगह बैठती जहां पर चाचा की निगाह न पड़े। घर के बाहर वह किसी ऊंचाई वाली जगह पर बैठती, ताकि वहां तक कोई पहुंच ही न पाए। वहीं से वह अपनी ओर बढ़ने वाले खतरे को भांपती रहती। खतरे का आभास पाते ही वह घर की तरफ भागती। उसकी बिरादरी के कुत्ते-कुतिया अक्सर उसे मारने-काटने का प्रयास करते। वह इन सब से बचने के लिए छिपती रहती। कच्चे मकान के कोठे तक पर छिपी रहती थी।

नया मकान बना तो वह अक्सर घर की छत पर जाकर बैठती। जीने पर बैठी रहती। वहां पर वह खुद को सुरक्षित महसूस करती। इसके अलावा वह गाय बांधने के लिए बनाए गए कमरे में भी बैठी रहती। इस कमरे का इस्तेमाल वह बच्चा जनने के लिए करती।

किसी को देखकर भाैंकना उसने शायद सीखा ही नहीं था। दरवाजे पर कोई भी आए या जाए उसे परवाह नहीं रहती थी। रात में भी वह छिपकर ही बैठी रहती। कभी-कभी कोई आहट पाने पर बेहद धीमी आवाज में दो-चार बार भाैंक देती, मानो अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रही हो। चाचा अक्सर कहते कि भौंक नहीं रही है कर्ज उतार रही है।

वह चाचा को कभी पसंद नहीं रही। वह उसे डंडा मारने और गाली देने के अलावा कभी कुछ नहीं दिए।

मां ही थीं जो उसे सुबह-शाम खाने के लिए देतीं। उसे लेकर चाचा और मां में अक्सर बतकही हो जाती थी। कुतिया को भगाते समय चाचा अक्सर मां को भी निशाने पर रखते। मां भी पीछे नहीं रहतीं। वह भी चाचा को खूब सुनाती।

इस तरह से करीब दस सालों से वह घर पर जमी थी। उसकी वजह से कोई दूसरा पिल्ला या पिल्ली नहीं पल पाया। वह किसी काम की नहीं थी। कभी कोई वफादारी नहीं दिखाती थी। इसके बावजूद मां उसे खिलाती-पिलाती रहती थीं। बीमार पड़ने पर दवा भी करा देती। यदि कोई कुत्ता या कुतिया उसे परेशान करता तो मां उसे बचातीं।

जब वह मां बनने लायक हुई तो हर साल बच्चा जनती। हालांकि उसके बच्चे अधिक समय तक जिंदा नहीं रहते। वह सभी को दूध नहीं पिला पाती थी। उनका संरक्षण भी नहीं कर पाती थी। 10-15 दिन में ही वह फिर से बिन बच्चे की मां हो जाती। इन दिनों में मां उसे अतिरिक्त भोजन देने की कोशिश करतीं, लेकिन उनकी ममता काम न आती। उसके बच्चे एक-एक करके मर ही जाते।

गर्भवती होने से पहले के दिनों में वह अक्सर घर से बाहर निकल जाती। कई-कई दिनों तक न दिखती। हालांकि, भोजन के समय वह उपस्थित हो जाती थी।

चाचा के अलावा घर के हर सदस्य उसे खाना देते। उसका बचाव भी करते। हालांकि, वह सभी के सामने डरी और सहमी रहती। बचपन से ही उसकी यही आदत थी, जो अंत तक बनी रही।

अब जबकि वह गायब हो गई तो घर वालों को आश्चर्य हो रहा था।

– लगता है कि वह मर गई मां। देव ने घर के बाहर रास्ते की तरफ देखते हुए कहा।

– हां, लगता तो ऐसा ही है। यदि जिंदा होती तो घर ही आती। कहां जाती? मां ने बेहद संजीदगी से कहा। उन्हें उसकी चिंता होने लगी थी।

– वह कहीं रुक ही सकती। किसी जानवर ने उसे मार डाला। देव ने कहा।

– जानवर से बचना उसे आता था। मां ने कहा।

– फिर किसी आदमी ने मार डाला होगा। देव ने आशंका व्यक्त की।

– आदमी ने क्यों मारा होगा? उसने किसी का क्या बिगाड़ा था। मां ने सवाल किया।

– किसी का कुछ नुकसान पहुंचा दिया होगा। देव ने आशंका जताई।

– जब वह किसी के यहां जाती नहीं थी तो नुकसान कैसे पहुंचाती? मां ने कहा।

– ऐसा लगता है कि वह ट्रेन वगैरह से कट गई। देव ने कहा।

– हो सकता है भैया। पांच-छह महीना हो गया है। जिंदा होती तो अब तक आ गई होती। मां ने लंबी सांस लेते हुए कहा।

देव के सामने काली कुतिया की तस्वीर तैरने लगी।

वह सामने बैठी है। जमीन पर मुंह रखे है, लेकिन उसकी आंखें उसे ही देख रही हैं।

देव को ख्याल आया। काली कुतिया काया से कमजोर थी। दीन-हीन भी थी, लेकिन कभी किसी के सामने पूंछ नहीं हिलाती थी। उसकी आंखों में कभी याचना जैसा भाव नहीं दिखता था। मां के भी जोर से डांटने पर वह निर्विकार भाव से धीमे कदमों से घर से बाहर चली जाती थी। जाते समय उसकी चाल में एक ठसक होती थी, जोकि किसी भी स्वाभिमानी में होती है।