विरोध
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दिन के 11 बज रहे थे। शहर के एक चौक पर एक आदमी सूरज की ओर हाथ दिखाकर कुछ कह रहा था।
– भाई क्या कर रहे हो? मैंने पूछा।
-विरोध दर्ज कर रहा हूं। उसने जवाब दिया।
– किस बात का विरोध?
– आज काम नहीं मिलने का।
– लेकिन ऐसे विरोध का क्या लाभ? – लाभ है भाई साहब। कल को कोई यह तो नहीं कहेगा कि तब मैं कहां था। मेरे विरोध का गवाह ये सूरज रहेगा।
इतना कहकर वह अपना खाने का टिफिन लेकर चला गया।
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सही-गलत
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एक दंपति था। उसके दो बच्चे थे। एक लड़की और दूसरा लड़का। लड़की जब युवा हुई तो उसकी शादी कर दी। वह ससुराल चली गई। अपने पति के साथ।
कुछ साल बाद लड़का युवा हुआ तो वह नौकरी करने किसी शहर चला गया। फिर शादी की और उसके बच्चे हुए। वह शहर में रहने लगा। दंपति अब बुजुर्ग हो गए हैं। बीमार भी रहते हैं। उन्हें अक्सर यह चिंता सताती है कि एक दिन उनकी सांसें रुक जाएंगी और उनके बच्चे उनका अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाएंगे। इसके लिए वह किसी को दोषी नहीं ठहराते। क्योंकि उनकी समझ में ही नहीं आता कि कौन गलत है?
लेखक परिचय:
ओम प्रकाश तिवारी वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेकिन वह मूलतः कथाकार हैं। उनकी कई कहानियां चर्चित रही हैं। उनके दो उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। तिवारी जी की कहानियों में समाज के आए बदलाव के साथ रिश्तों की गहराई से पड़ताल होती है। पिछले कुछ समय से पूरी दुनिया में जो बदलाव आया है निश्चित तौर पर उसका असर भारत पर भी पड़ा है। रिश्तों में दरार आ रही है। संवेदना लुप्त होती जा रही है। रूढ़िवादिता और धर्मांधता तेजी से पैर पसार रही है या यों कहें कि मदद देकर उनका प्रसार किया जा रहा है। सच कहने की हिम्मत कम होती जा रही है। उपन्यास हंस प्रकाशन दिल्ली से छपा है साल 2023 में। दो पाटन के बीच उपन्यास इसी साल अक्तूबर में न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से प्रकाशित हुआ है। कहानी संग्रह किचकिच इसी पब्लिकेशन से आने वाला है। कविता संग्रह डरा हुआ पेड़ notnul.com ऑन लाइन वेबसाइट पर मौजूद है। पहली कहानी 1995 वैचारिकी संकलन में छपी थी। कविताएं भी तभी से लिखते रहे हैं। लेकिन ज्यादातर कहानी। साल 2021 के बाद कविताएं लिखने लगे। कविताओं का विषय सामयिक ही होता है। इसे राय, नजरिया, सुझाव, सलाह या हस्तक्षेप जैसा कुछ कह सकते हैं।